भारतीय इतिहास
महिला शिक्षा में सावित्रीबाई फुले का योगदान
- 04 Jan 2020
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प्रीलिम्स के लिये:
सावित्रीबाई फुले, ज्योतिराव फुले, सत्यशोधक समाज, महिला अधिकार, बाल गंगाधर तिलक, भारत का सामाजिक और शैक्षणिक इतिहास
मेन्स के लिये:
महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दे, भारतीय इतिहास में महिला सुधारों की दिशा में उठाए गए कदम, महिला शिक्षा में सावित्रीबाई फुले का योगदान
चर्चा में क्यों?
3 जनवरी, 2020 को सावित्रीबाई फुले की 189वीं जयंती मनाई गई। सावित्रीबाई फुले को भारत की प्रथम आधुनिक नारीवादियों में से एक माना जाता है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को हुआ था।
- उनकी उपलब्धियों के कारण उन्हें विशेष रूप से भारत की पहली महिला शिक्षक के रूप में याद किया जाता है। सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्राचार्या बनी थीं।
- उन्होंने सदैव शिक्षा और साक्षरता के क्षेत्र में महिलाओं और अछूतों उत्थान के लिये काम किया।
- महिला अधिकारों के लिये जीवन समर्पित करने वाली सावित्रीबाई ने वर्ष 1848 में पुणे में देश का पहला कन्या विद्यालय खोला था।
सावित्रीबाई फुले के बारे में
- फुले का जन्म 1831 में महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ था। उनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। वर्ष 1840 में 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह एक्टिविस्ट और समाज-सुधारक ज्योतिराव फुले से कर दिया गया था।
- विवाह के बाद अपने पति के सहयोग से सावित्रीबाई फुले ने लिखना-पढ़ना सीखा और अंततः दोनों ने मिलकर वर्ष 1848 में पुणे में भिडेवाड़ा नामक स्थान पर लड़कियों के लिये भारत का पहला विद्यालय खोला।
- उस समय लड़कियों को पढ़ाना एक कट्टरपंथी विचार माना जाता था। जब वह स्कूल जाती थीं तो लोग अक्सर उन पर गोबर और पत्थर फेंकते थे लेकिन फिर भी वह अपने कर्त्तव्य पथ से विमुख नहीं हुईं।
- गौरतलब है कि सावित्रीबाई फुले के लिये महिलाओं की शिक्षा और अछूतों की वकालत करना आसान नहीं था क्योंकि महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में वर्ष 1881-1920 के मध्य एक राष्ट्रवादी विमर्श चल रहा था जिसमें तिलक सहित इन राष्ट्रवादियों ने राष्ट्रीयता की क्षति का हवाला देते हुए लड़कियों और गैर-ब्राह्मणों के लिये स्कूलों की स्थापना का विरोध किया था।
- वह एक कवयित्री भी थीं, उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है।
- 10 मार्च, 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। गौरतलब है कि प्लेग महामारी के दौरान सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। प्लेग से प्रभावित एक बच्चे की सेवा करने के कारण वह भी प्लेग से प्रभावित हुईं और इसी कारण से उनकी मृत्यु हो गई।
- उनके सम्मान में वर्ष 2014 में पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय कर दिया गया।
सावित्रीबाई फुले के कार्य
- ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले दोनों का मानना था कि शिक्षा ही वह माध्यम है जिससे महिलाएँ और दबे-कुचले वर्ग सशक्त बन सकते हैं और समाज के अन्य वर्गों के साथ बराबरी से खड़े होने की उम्मीद कर सकते हैं।
- भारत के सामाजिक और शैक्षणिक इतिहास में महात्मा जोतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले एक असाधारण युगल के रूप में विख्यात हैं। वे पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता और सामाजिक न्याय के लिये एक आंदोलन का निर्माण करने हेतु आवेग-पूर्ण संघर्ष में लगे हुए थे।
- सावित्रीबाई फुले और ज्योतिराव फुले ने मिलकर वर्ष 1854-55 में भारत में साक्षरता मिशन भी शुरू किया था।
- दोनों ने सत्यशोधक समाज (सत्य की तलाश के लिये समाज) की शुरुआत की जिसके माध्यम से वे सत्यशोधक विवाह प्रथा शुरू करना चाहते थे जिसमें कोई दहेज नहीं लिया जाता था।
- उनका उद्देश्य समाज में विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना था।
- सावित्रीबाई फुले को आधुनिक भारत में एक ऐसी महिला के रूप में भी श्रेय दिया जाता है जिन्होंने ऐसे समय में जब महिलाओं को दबाया जा रहा था और वे उप-मानव के अस्तित्व में जी रही थीं फुले ने स्वयं की आवाज़ को बुलंद किया और महिला अधिकारों के लिये संघर्ष किया।
- उनकी कविताएँ भले ही मराठी में लिखी गई थीं किंतु उन्होंने मानवतावाद, स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, तर्कवाद और दूसरों के बीच शिक्षा के महत्त्व जैसे मूल्यों की पूरे देश में वकालत की।
- उनके द्वारा स्थापित संस्था 'सत्यशोधन समाज' ने वर्ष 1876 और वर्ष 1879 के अकाल में अन्न सत्र चलाया और अन्न इकटठा करके आश्रम में रहने वाले 2000 बच्चों को खाना खिलाने की व्यवस्था की।
- उन्होंने देश के पहले किसान स्कूल की भी स्थापना की थी। वर्ष 1852 में उन्होंने दलित बालिकाओं के लिये एक विद्यालय की स्थापना की।
- उन्होंने कन्या शिशु हत्या को रोकने के लिये प्रभावी पहल की थी, इसके लिये उन्होंने न सिर्फ अभियान चलाया बल्कि नवजात कन्या शिशुओं के लिये आश्रम भी खोले ताकि उनकी रक्षा की जा सके।