सऊदी अरब-ईरान राजनयिक संबंध बहाल करने हेतु सहमत | 11 Mar 2023
प्रिलिम्स के लिये:यमन में हूती विद्रोही, मध्य-पूर्वी देशों की भौगोलिक स्थिति, पश्चिम एशिया। मेन्स के लिये:सऊदी अरब-ईरान संबंधों में भारत की भूमिका, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सऊदी अरब और ईरान के अधिकारियों ने द्विपक्षीय वार्ता की जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2016 से समाप्त राजनयिक संबंधों को बहाल करने हेतु एक समझौता हुआ। बीजिंग में चीन द्वारा महत्त्वपूर्ण राजनयिक उपलब्धि हासिल की गई।
- यह समझौता तब हुआ जब राजनयिक रूप से यमन में लंबे युद्ध को समाप्त करने की कोशिश हो रही है, एक ऐसा संघर्ष जिसमें ईरान और सऊदी अरब दोनों ही अत्यधिक उलझे हुए हैं।
प्रमुख बिंदु
- ये दोनों देश तेहरान और रियाद में अपने-अपने दूतावास फिर से खोलने की योजना बना रहे हैं।
- उन्होंने देशों की संप्रभुता का सम्मान करने और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की भी शपथ ली।
- वे वर्ष 2001 के सुरक्षा सहयोग समझौते के साथ-साथ वर्ष 1998 में हस्ताक्षरित एक सामान्य अर्थव्यवस्था, व्यापार और निवेश समझौते को सक्रिय करने पर भी सहमत हुए।
ईरान और सऊदी अरब के बीच विवाद:
- धार्मिक कारक:
- सऊदी अरब में कुछ दिनों पहले एक प्रमुख शिया धर्मगुरु की हत्या के बाद प्रदर्शनकारियों ने सऊदी राजनयिक चौकियों पर हमला किया था, जिसके बाद सऊदी अरब ने वर्ष 2016 में ईरान के साथ संबंध समाप्त कर दिये थे।
- सऊदी अरब ने लंबे समय से खुद को दुनिया के अग्रणी सुन्नी राष्ट्र के रूप में चित्रित किया है, जबकि ईरान ने खुद को इस्लाम के शिया अल्पसंख्यक के रक्षक के रूप में प्रदर्शित किया है।
- सऊदी अरब पर हमले:
- ईरान के परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने के बाद से ईरान को वर्ष 2019 में सऊदी अरब के तेल उद्योग को लक्षित करने सहित कई हमलों हेतु दोषी ठहराया गया था।
- पश्चिमी देशों और विशेषज्ञों ने ईरान पर हमले का आरोप लगाया है, हालाँकि ईरान ने हमलों से इनकार किया है।
- ईरान के परमाणु समझौते से अमेरिका के हटने के बाद से ईरान को वर्ष 2019 में सऊदी अरब के तेल उद्योग को लक्षित करने सहित कई हमलों हेतु दोषी ठहराया गया था।
- क्षेत्रीय शीत युद्ध: सऊदी अरब और ईरान जैसे दो शक्तिशाली पड़ोसी क्षेत्रीय प्रभुत्त्व हेतु संघर्षशील हैं।
- अरब में विद्रोह (वर्ष 2011 के अरब स्प्रिंग के बाद) पूरे क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता का कारण बना है।
- ईरान और सऊदी अरब ने अपने प्रभाव का विस्तार करने हेतु इस अस्थिरता का फायदा विशेष रूप से सीरिया, बहरीन और यमन के संदर्भ में उठाया, जिसने आपसी संदेह को और बढ़ा दिया।
- इसके अलावा सऊदी अरब और ईरान के बीच संघर्ष को बढ़ाने में अमेरिका एवं इज़रायल जैसी बाहरी शक्तियों की प्रमुख भूमिका है।
- परोक्ष युद्ध: ईरान और सऊदी अरब सीधे युद्ध नहीं लड़ रहे हैं, लेकिन वे क्षेत्र के चारों ओर विभिन्न प्रकार से परोक्ष रूप से युद्धों (संघर्षों में जहाँ वे प्रतिद्वंद्वी पक्षों और मिलिशिया का समर्थन करते हैं) में रत हैं।
- उदाहरण के लिये यमन में हूति विद्रोही। ये समूह अधिक क्षमताएँ हासिल कर सकते हैं जो क्षेत्र में और अस्थिरता पैदा करेगा। सऊदी अरब ने ईरान पर उनका समर्थन करने का आरोप लगाया है।
- इस्लामी दुनिया काका नेतृत्त्वकर्त्ता: ऐतिहासिक रूप से सऊदी अरब एक राजशाही और इस्लाम का जन्मस्थान, खुद को मुस्लिम दुनिया के नेता के रूप में देखता था।
- हालाँकि इसे 1979 में ईरान में हुई इस्लामी क्रांति ने चुनौती दी थी जिसने इस क्षेत्र में एक नए राज्य का निर्माण किया, एक प्रकार का क्रांतिकारी लोकतंत्र- जिसका स्पष्ट लक्ष्यइस मॉडल को अपनी सीमाओं से परे पहुँचाना था।
वैश्विक प्रभाव
- प्रतिबंधों के माध्यम से ईरान को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के अमेरिकी नेतृत्त्व के प्रयास इस सौदे के निहितार्थ हो सकते हैं क्योंकि यह सौदा ईरान के अंदर संभावित सऊदी निवेश की सुविधा प्रदान कर सकता है।
- यमन में सऊदी-ईरानी समर्थित हूति विद्रोहियों के खिलाफ आठ साल के गृहयुद्ध में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सरकार का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन ओमान हूतियों के साथ निजी वार्ता आयोजित करके युद्ध को समाप्त करने का रास्ता तलाश रहा है।
- सऊदी अरब को यह उम्मीद है कि ईरान देश पर हूती ड्रोन और मिसाइल आक्रमणों को रोक देगा और ईरान हूतियों के साथ सऊदी वार्ता में मदद करेगा।
- यह समझौता उन कई इज़रायली राजनेताओं के बीच चिंता पैदा करेगा जिन्होंने अपने कट्टर दुश्मन ईरान के लिये वैश्विक अलगाव की मांग की है। इज़रायल ने समझौते को "गंभीर और खतरनाक" विकास के रूप में वर्णित किया।
भारत पर इसके क्या प्रभाव हो सकते हैं?
- ऊर्जा सुरक्षा:
- ईरान और सऊदी अरब विश्व के दो प्रमुख तेल उत्पादक देश हैं और उनके बीच किसी भी तरह के संघर्ष से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
- इन दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने से तेल की वैश्विक कीमतों को स्थिर करने और भारत को तेल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
- व्यापार:
- ईरान और सऊदी अरब दोनों ही भारत के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार हैं। उनके बीच संबंधों को सामान्य बनाने से व्यापार और निवेश के नए रास्ते खुल सकते हैं, जिससे भारत के लिये आर्थिक अवसरों में वृद्धि होगी।
- क्षेत्रीय स्थिरता:
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) सहित मध्य-पूर्व में भारत के मज़बूत आर्थिक और रणनीतिक हित हैं।
- ईरान भारत के विस्तारित पड़ोस का हिस्सा है। इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की अस्थिरता के भारत के लिये दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। ईरान और सऊदी अरब के बीच संबंधों को सामान्य बनाने से क्षेत्र अधिक स्थिर हो सकता है, जिससे संघर्ष एवं आतंकवाद के जोखिम को कम किया जा सकता है।
- भू-राजनीति:
- ईरान और सऊदी अरब दोनों के साथ भारत का सौहार्दपूर्ण संबंध है तथा क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने में भूमिका निभाता है। इन दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने से क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों में मदद मिल सकती है।
- हालाँकि ईरान और सऊदी के बीच चीन की मध्यस्थता भारत के लिये चुनौतियाँ पैदा करेगी क्योंकि यह क्षेत्र में चीन के प्रभाव को बढ़ाने में योगदान करेगी।
आगे की राह
- भारत इन दोनों देशों के मध्य संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने में रचनात्मक भूमिका निभा सकता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता हासिल करने में मदद मिल सकती है।
- भारत को इस क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव से सतर्क रहने और मध्य पूर्व में अपने सामरिक हितों को सुरक्षित करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।
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