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सामाजिक न्याय

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत समलैंगिक विवाह

  • 26 Nov 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, विशेष विवाह अधिनियम, 1954, LGBTQ+ समुदाय

मेन्स के लिये:

ट्रांसजेंडर से संबंधित मुद्दे, विशेष विवाह अधिनियम, 1954।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाले दो समलैंगिक जोड़ों की याचिका पर केंद्र और भारत के महान्यावादी को नोटिस जारी किया है।

  • कई याचिकाओं के परिणामस्वरूप भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली दो-न्यायाधीशों की पीठ ने नोटिस जारी किया।
  • समलैंगिक विवाह की गैर-मान्यता प्राप्त भेदभाव के बराबर थी, जो LGBTQ+ जोड़ों की गरिमा का अपमान करती थी।

याचिकाकर्त्ताओं का पक्ष:

  • यह अधिनियम संविधान से उस सीमा तक अधिकारातीत है जिस हद तक यह समलैंगिक जोड़ों और विपरीत लिंग वाले जोड़ों के बीच भेदभाव करता है, समलैंगिक जोड़ों को कानूनी अधिकारों के साथ-साथ विवाह से मिलने वाली सामाजिक मान्यता और स्थिति दोनों से वंचित करता है।
    • वर्ष 1954 का विशेष विवाह अधिनियम किसी भी दो व्यक्तियों के बीच विवाह पर लागू होना चाहिये, चाहे उनकी लिंग पहचान और यौन अभिविन्यास कुछ भी हो।
  • यदि नहीं, तो अधिनियम को अपने वर्तमान रूप में गरिमापूर्ण जीवन और समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाना चाहिये क्योंकि "यह समलैंगिक जोड़े के बीच विवाह करने का प्रावधान नहीं करता है"।
  • अधिनियम को समलैंगिक जोड़ों को भी वही सुरक्षा प्रदान करनी चाहिये जो अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को मिलती है।
  • समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने में अपर्याप्त प्रगति हुई है; LGBTQ+ व्यक्तियों के लिये समानता का विस्तार जीवन के सभी क्षेत्रों में होना चाहिये जिसमें घर, कार्यस्थल और सार्वजनिक स्थान शामिल हैं।
    • LGBTQ+ की वर्तमान जनसंख्या देश की जनसंख्या का 7% से 8% है।

भारत में समलैंगिक विवाह की वैधता:

  • विवाह के अधिकार को भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक या संवैधानिक अधिकार के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है।
  • यद्यपि विवाह को विभिन्न वैधानिक अधिनियमों के माध्यम से विनियमित किया जाता है लेकिन मौलिक अधिकार के रूप में इसकी मान्यता केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है। संविधान के अनुच्छेद 141 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय का निर्णय पूरे भारत में सभी अदालतों के लिये बाध्यकारी है।

सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय:

  • मौलिक अधिकार के रूप में विवाह (शफीन जहान बनाम असोकन के.एम. और अन्य, 2018):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 16 और पुट्टस्वामी मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद के अनुसार विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
      • अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार, राज्य के अधीन किसी भी पद के संबंध में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इसमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
    • विवाह करने का अधिकार आंतरिक विषय है। इस अधिकार को संविधान में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत सुरक्षा प्रदान की गई है। विश्वास और निष्ठा के मामले, जिसमें विश्वास करना भी शामिल है, संवैधानिक स्वतंत्रता के मूल में हैं।
  • LGBTQ समुदाय सभी संवैधानिक अधिकारों (नवजेत सिंह जोहर और अन्य बनाम केंद्र सरकार, 2018) के हकदार हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि LGBTQ समुदाय के सदस्य अन्य नागरिकों की तरह संविधान द्वारा प्रदान किये गए सभी संवैधानिक अधिकारों के हकदार हैं, जिसमें “समान नागरिकता” और "कानून का समान संरक्षण" भी शामिल है।

विशेष विवाह अधिनियम (SMA), 1954:

  • परिचय:
    • भारत में विवाह संबंधित व्यक्तिगत कानूनों- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955; मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1954, या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत पंजीकृत किये जा सकते हैं।
    • इसके अंतर्गत यह सुनिश्चित करना न्यायपालिका का कर्तव्य है कि पति और पत्नी दोनों के अधिकारों की रक्षा की जाए।
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भारत की संसद का एक अधिनियम है जिसमें भारत और विदेशों में सभी भारतीय नागरिकों के लिये विवाह का प्रावधान है, चाहे दोनों पक्षों द्वारा किसी भी धर्म या आस्था का पालन किया जाए।
    • जब कोई व्यक्ति इस कानून के तहत विवाह करता है तो विवाह व्यक्तिगत कानूनों द्वारा नहीं बल्कि विशेष विवाह अधिनियम द्वारा शासित होता है।
  • विशेषताएँ:
    • दो अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों को शादी के बंधन में एक साथ आने की अनुमति देता है।
    • जहाँ पति या पत्नी या दोनों में से कोई हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख नहीं है, वहाँ विवाह के अनुष्ठापन तथा पंजीकरण दोनों के लिये प्रक्रिया निर्धारित करता है।
    • एक धर्मनिरपेक्ष अधिनियम होने के कारण यह व्यक्तियों को विवाह की पारंपरिक आवश्यकताओं से मुक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

आगे की राह:

  • LGTBQ समुदाय के लिये एक ऐसे भेदभाव-रोधी कानून की आवश्यकता है, जो उन्हें लैंगिक पहचान या यौन उन्मुखता के बावजूद एक बेहतर जीवन और संबंधों का निर्माण करने में सहायता करे और जो व्यक्ति को बदलने के स्थान पर समाज में बदलाव लाने पर ज़ोर दे।
  • LGBTQ समुदाय के सदस्यों को संपूर्ण संवैधानिक अधिकार दिये जाने के बाद यह भी आवश्यक है कि समलैंगिक विवाह के इच्छुक लोगों को भी अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार दिया जाए। ज्ञात हो कि वर्तमान में विश्व के दो दर्जन से अधिक देशों ने समलैंगिक विवाह को स्वीकृति दी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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