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भारतीय अर्थव्यवस्था

नमक गुफा आधारित तेल भंडार: SPR

  • 05 Jun 2023
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नमक गुफा आधारित तेल भंडार, चट्टान आधारित गुफा, सामरिक पेट्रोलियम भंडार कार्यक्रम, IEA, PPP

मेन्स के लिये:

चट्टान आधारित गुफा और इसकी क्षमता, नमक गुफा आधारित तेल भंडार का लाभ

चर्चा में क्यों?

सरकारी स्वामित्व वाली इंजीनियरिंग कंसल्टेंसी फर्म इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड (EIL) राजस्थान में नमक गुफा आधारित सामरिक तेल भंडार विकसित करने की संभावनाओं और व्यवहार्यता का अध्ययन कर रही है।

  • यह अध्ययन देश की सामरिक तेल भंडारण क्षमता बढ़ाने के सरकार के उद्देश्य के अनुरूप है।

नमक आधारित गुफा: 

  • परिचय: 
    • नमक की गुफाएँ भूमिगत स्थान हैं जो नमक को जल में घोलकर (प्रक्रिया के माध्यम से) बनाई जाती है जिसे विलियन खनन (Solution Mining) कहा जाता है।
    • इस पद्धति में नमक को घोलने एवं गुफाओं के निर्माण हेतु नमक भंडारित बड़े क्षेत्रों में जल को पंप किया जाता है। एक बार ब्राइन (जल में घुला हुआ नमक) निकाल देने के बाद इन गुफाओं का उपयोग कच्चे तेल को भंडारित करने के लिये किया जा सकता है।

  • चट्टान आधारित गुफा: 
    • तेल भंडार हेतु उत्खनित चट्टान आधारित गुफाएँ (Rock Based Caverns) भूमिगत भंडारण कक्ष हैं जो चट्टानी सामग्री को भौतिक रूप से खोदकर और हटाकर बनाई जाती हैं।
    • वांछित भंडारण स्थान बनाने हेतु ड्रिलिंग, ब्लास्टिंग और चट्टान की परतों को हटाकर उत्खनित चट्टानी गुफाओं का निर्माण किया जाता है। इन गुफाओं की चट्टानी दीवारें एवं छत भंडारित तेल को रखने के लिये प्राकृतिक बाधाओं में सुविधा रूप में काम करती हैं।
  • चट्टान आधारित गुफा की तुलना में नमक आधारित गुफा का महत्त्व: 
    • नमक गुफा का विकास सहज़, तेज़ और कम खर्चीला है। नमक गुफा आधारित तेल भंडारण सुविधाएँ स्वाभाविक रूप से अच्छी तरह से बंद या सुरक्षित हैं तथा कुशल तेल इंजेक्शन एवं निष्कर्षण हेतु डिज़ाइन की गई हैं। 
    • MIT के पर्यावरण समाधान पहल की एक रिपोर्ट बताती है कि नमक की गुफा में तेल का भंडारण अन्य भूगर्भीय संरचनाओं की तुलना में अधिक अनुकूल है।
    • नमक की गुफा की सतह में बहुत कम तेल अवशोषण होता है, जो तरल और गैसीय हाइड्रोकार्बन के खिलाफ प्राकृतिक अभेद्य अवरोध उत्पन्न करता है। यह विशेषता नमक गुफा को तेल भंडारण के लिये उपयुक्त बनाती है।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका का सामरिक पेट्रोलियम रिज़र्व (SPR) विशेष रूप से नमक आधारित गुफा की सुविधाओं पर निर्भर करता है जो विश्व स्तर पर सबसे बड़ा आपातकालीन तेल भंडारण है।
  • नमक आधारित गुफा की क्षमता: 
    • नमक आधारित गुफा भंडारण जिसे सस्ता एवं कम श्रम तथा चट्टानी गुफा की तुलना में लागत-गहन माना जाता है यह भारत की SPR नीति में एक नया, बहुत ज़रूरी अध्याय जोड़ सकता है।
    • प्रचुर मात्रा में नमक निर्माण के कारण, राजस्थान को नमक आधारित गुफा भंडारण सामरिक सुविधाओं के विकास में भारत के लिये सबसे उपयुक्त स्थान माना जाता है।
    • बाड़मेर में रिफाइनरी और राजस्थान में कच्चे तेल की पाइपलाइनों की मौजूदगी रणनीतिक तेल भंडार के निर्माण के लिये बुनियादी ढाँचे को अनुकूल बनाती हैं।

तेल भंडार के लिये नमक आधारित गुफा बनाने की चुनौतियाँ:

  • भारतीय कंपनियों के पास नमक आधारित गुफा बनाने हेतु सामरिक भंडारण सुविधाओं के निर्माण के लिये आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव है। 
    • हालाँकि EIL ने हाल ही में इस अंतर को पाटने के लिये जर्मनी के साथ भागीदारी की है जो गुफा स्टोरेज और सॉल्यूशन माइनिंग टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता वाली कंपनी है।
  • नमक आधारित गुफा भंडारण सुविधाओं के लिये उपयुक्त स्थलों की पहचान करना महत्त्वपूर्ण है। जबकि राजस्थान में भारी मात्रा में नमक निर्माण और बाड़मेर में कच्ची पाइपलाइनों एवं एक नई रिफाइनरी जैसे अनुकूल बुनियादी ढाँचे हैं लेकिन क्षेत्र के अंदर विशिष्ट स्थलों की उनकी भूगर्भीय और तकनीकी उपयुक्तता हेतु मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
  • परियोजना की लागत का अनुमान लगाना तब तक एक चुनौती है जब तक कि नमक आधारित गुफा भंडारण सुविधाओं के निर्माण हेतु आवश्यक तकनीक और जानकारी प्राप्त नहीं हो जाती है। अन्य संबद्ध लागतों के साथ-साथ स्थल की तैयारी, निर्माण तथा परिचालन संबंधी विचारों जैसे कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिये।

भारत का सामरिक पेट्रोलियम भंडार कार्यक्रम: 

  • परिचय: 
    • भारत में सामरिक कच्चे तेल भंडारण सुविधाओं का निर्माण भारतीय सामरिक पेट्रोलियम रिज़र्व लिमिटेड (Indian Strategic Petroleum Reserves Limited - ISPRL) द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है।
      • ISPRL पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत तेल उद्योग विकास बोर्ड (Oil Industry Development Board- OIDB) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
    • प्रथम चरण के अनुसार, सामरिक कच्चे तेल के भंडारण मैंगलोर (कर्नाटक), विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) और पादुर (कर्नाटक) में हैं। उनके पास कुल 5.33 MMT (मिलियन मीट्रिक टन) का ईंधन भंडारण है।
  • PPP के तहत अतिरिक्त रिज़र्व: 
    • भारत सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) के माध्यम से द्वितीय चरण के अनुसार, चांदीखोल (ओडिशा) तथा उडुपी (कर्नाटक) में ऐसी दो और गुफाएँ स्थापित करने की योजना बना रही है। इससे अतिरिक्त 6.5 मिलियन टन तेल भंडार मिलेगा।
    • नई सुविधाओं के शुरू होने के बाद कुल 22 दिन (10+12) तेल की खपत उपलब्ध कराई जाएगी।
  • क्षमता/औद्योगिक स्टॉक:
    • भारतीय रिफाइनर रणनीतिक सुविधाओं के साथ 65 दिनों के कच्चे तेल के भंडारण (औद्योगिक स्टॉक) को भी बनाए रखते हैं।
    • इस प्रकार SPR कार्यक्रम के दूसरे चरण के पूरा होने के बाद लगभग कुल 87 दिन (रणनीतिक भंडार द्वारा 22 + भारतीय रिफाइनर द्वारा 65) तेल की खपत भारत में उपलब्ध कराई जाएगी।
      • यह IEA द्वारा 90 दिनों के शासनादेश के बहुत करीब होगा।
    • भारत वर्ष 2017 में IEA का सहयोगी सदस्य बना और हाल ही में IEA ने भारत को पूर्णकालिक सदस्य बनने के लिये आमंत्रित किया है।

  • SPR की क्षमता विस्तार की आवश्यकता:: 
    • दुनिया में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता भारत अपनी आवश्यकता के 85% से अधिक के लिये आयात पर निर्भर करता है और SPR वैश्विक आपूर्ति संकट और अन्य आपात स्थितियों के दौरान ऊर्जा सुरक्षा और उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है।
    • भारत दो स्थानों- ओडिशा में चांदीखोल (4 मिलियन टन) और पादुर (2.5 मिलियन टन) में अपनी SPR क्षमता को संचयी 6.5 मिलियन टन तक बढ़ाने की प्रक्रिया में है।
      • भारत में वर्तमान में 5.33 मिलियन टन या लगभग 39 मिलियन बैरल क्रूड की SPR क्षमता है, जो लगभग 9.5 दिनों की मांग को पूरा कर सकता है। 

आगे की राह 

  • राजस्थान में संभावित स्थलों का व्यापक भूवैज्ञानिक और तकनीकी आकलन करना महत्त्वपूर्ण है।
  • एक व्यापक व्यवहार्यता अध्ययन करने से परियोजना की आर्थिक व्यवहार्यता और तकनीकी व्यवहार्यता का मूल्यांकन करने में मदद मिलेगी। इस मूल्यांकन में संभावित जोखिमों, परियोजना की समयसीमा, परिचालन आवश्यकताओं और नमक गुफा-आधारित भंडारण सुविधाओं की व्यवहार्यता निर्धारित करने के लिये दीर्घकालिक स्थिरता का विश्लेषण करना चाहिये।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी से सरकारी खर्च को कम करने और रणनीतिक भंडार के विकास में निजी निवेश को आकर्षित करने में मदद मिल सकती है। साझेदारी के माध्यम से भंडार की व्यावसायिक क्षमता का लाभ उठाने से परियोजना की व्यवहार्यता में वृद्धि हो सकती है और आर्थिक विकास में योगदान हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

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