रेलवे में निजी ट्रेनों का परिचालन | 03 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये:

स्वर्णिम चतुर्भुज, स्वर्ण विकर्ण

मेन्स के लिये:

रेलवे का निजीकरण और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों:

हाल ही में रेल मंत्रालय ने यात्री ट्रेन सेवाओं के संचालन के लिये निजी क्षेत्र हेतु 'अर्हता के लिये अनुरोधों' (Request for Qualifications- RFQ) को आमंत्रित कर रेलवे परिचालन के निजीकरण की दिशा में पहला कदम उठाया है।

प्रमुख बिंदु:

  • RFQ के तहत कम-से-कम 151 आधुनिक ट्रेनों की शुरुआत की जाएगी और 109 दोहरी रेल लाइनों/रेल मार्गों को निजी ट्रेनों के परिचालन हेतु तैयार किया जाएगा।
  • रेल मंत्रालय के अनुसार, फरवरी-मार्च 2021 तक परियोजना के लिये वित्तीय बोली की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी तथा अप्रैल 2021 तक उन्हें अंतिम रूप दिया जाएगा। अप्रैल 2023 तक निजी ट्रेनों का परिचालन शुरू होने की उम्मीद है।
  • परियोजना में 30,000 करोड़ रुपए तक का निजी निवेश होने की संभावना है।

चिंता के विषय:

  • ऐसी आशंका है कि निजी ट्रेनों के परिचालन से रेल यात्रा की कीमतों में वृद्धि होगी।
  • इससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग जिन्हें सरकारी नौकरियों के तहत आरक्षण मिल हुआ है, उनके हित प्रभावित हो सकते हैं।  

निजी ट्रेनों के पक्ष में तर्क:

  • मांग तथा आपूर्ति में अंतर:
    • आज़ादी के 70 से अधिक वर्षों के बाद भी सभी यात्रियों को यात्रा सेवाएँ प्रदान करने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे का विकास नहीं हो पाया है। 
    • प्रतीक्षा-सूची में टिकट कराने वाले अनेक यात्रियों के (व्यस्त मौसम के दौरान लगभग 13.3% यात्रियों) के टिकट की कंफर्म बुकिंग नहीं हो पाती है।
    •  निजी ट्रेनों के परिचालन द्वारा यात्रियों द्वारा की जा रही ट्रेन सेवाओं की मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी। 
  • किराए में वृद्धि नहीं:
    • निजी ट्रेन संचालकों द्वारा यात्रा किराया तय करते समय बस तथा हवाई यात्रा किराये के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी होगी। अत: निजी ऑपरेटरों के लिये बहुत अधिक किराया वसूलना व्यवहार्य नहीं होगा।
    • चूँकि निजी ट्रेनों के संचालन के बाद भी रेलवे द्वारा 95% ट्रेनों का परिचालन किया जाएगा इसलिये इन ट्रेनों के किराए में वृद्धि नहीं की जाएगी, साथ ही इन ट्रेनों में बेहतर सुविधाएँ प्रदान करने की दिशा में कार्य किये जाएँगे। इससे आम जन को कम कीमत पर बेहतर सुविधाएँ मिल सकेंगी।
  • नौकरियों को कोई खतरा नहीं:
    • रेलवे द्वारा वर्तमान में उपलब्ध ट्रेनों के अलावा नवीन निजी ट्रेनें चलाई जाएँगी। रेलवे को वर्ष 2030 तक अनुमानित 13 बिलियन यात्रियों के लिये और अधिक ट्रेनों के संचालन की आवश्यकता होगी। 
    • निजी ट्रेनों के परिचालन से नौकरी खोने का तर्क आधारहीन है।
  • तकनीकी महत्त्व:
    • वर्तमान समय 4000 किमी. दूरी तय करने के बाद ट्रेनों के कोचों के रख-रखाव की आवश्यकता होती है, लेकिन आधुनिक कोचों को हर 40,000 किमी के बाद या 30 दिनों में एक या दो बार ही रख-रखाव की आवश्यकता होगी। 
    • इसके अलावा ये कोच गति, सुरक्षा और सुविधा के दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।
  • रेलवे को राजस्व की प्राप्ति:
    • निजी संस्था रेलवे को तय ढुलाई शुल्क, ऊर्जा शुल्क और बोली प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित सकल राजस्व में हिस्सेदारी का भुगतान रेलवे को करेगी। अत: वर्तमान में यात्री ट्रेनों को जहाँ नुकसान का सामना करना पड़ रहा है भविष्य में उसे राजस्व की प्राप्ति होगी। 
  • मेक इन इंडिया के अनुकूल:
    • RFQ मेक इन इंडिया’ नीति के तहत जारी किया गया है। इसलिये कोचों का निर्माण भारत में किया जाएगा तथा इसके लिये स्थानीय घटकों का उपयोग किया जाएगा।
  • ट्रेनों की गति में वृद्धि:
    • पूरे रेल नेटवर्क में ट्रेनों की गति बढ़ाने पर बल दिया जाएगा तथा अगले 5-10 वर्षों के भीतर अधिकांश रेल-मार्ग 160 किमी./घंटे की गति से चलने वाली ट्रेनों के लिये अनुकूल होंगे।
    • वित्तीय वर्ष 2020-21 के अंत तक ‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ (Golden quadrilateral) विकर्ण (Diagonal) मार्गों पर 130 किमी./घंटे की गति से ट्रेनें चल सकेगी।

निष्कर्ष:

  • रेलवे का आधुनिकीकरण करना आवश्यक है, इसलिये इस प्रक्रिया के दौरान सामाजिक लागतों की प्रतिपूर्ति के भी उपाय किये जाने चाहिये ताकि रेलवे के संसाधनों का बेहतर प्रबंधन किया जा सके।

स्रोत: द हिंदू