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जैव विविधता और पर्यावरण

संरक्षित क्षेत्र में परियोजनाओं को मंज़ूरी

  • 17 Aug 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवेर्तन मंत्रालय (MOE & FCC) द्वारा संरक्षित क्षेत्र के बफर ज़ोन (Buffer Zone) में विकासात्मक गतिविधियों के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी की प्रक्रिया में संशोधन किया गया है।

प्रमुख बिंदु 

  •  MOE & FCC द्वारा जारी कार्यालय आदेश के अनुसार, वन्यजीव अभ्यारण्य या नेशनल पार्क के अधिसूचित इको-सेंसिटिव ज़ोन (Eco-Sensitive Zone-ESZ) की सीमा के बाहर परंतु  नेशनल पार्क की परिधि के 10 किमी. के अंदर तक शुरु होने वाली परियोजनाओं के लिये राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife-NBWL) की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।
  • इस क्षेत्र में स्थापित होने वाली परियोजनाओं के लिये MOE & FCC  की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (Expert Appraisal Committee-EAC) द्वारा अनुमति प्रदान की जाएगी।
  • नए नियमों के अनुसार, अधिसूचित ESZ में या नेशनल पार्क की सीमा के एक किलोमीटर के भीतर, दोनों में से जो ज्यादा होगा में खनन कार्यो पर प्रतिबंध रहेगा।
  • उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार अनेक राज्यों ने संरक्षित क्षेत्र के चारों ओर 10 किमी. तक के क्षेत्र को ESZ घोषित नही किया है। कुछ राज्यों में कुछ मीटर से लेकर एक किलोमीटर तक के बफर ज़ोन हैं, जबकि कुछ राज्यों ने ESZ घोषित ही नहीं किया है। 
  • ऐसे मामलों में जहाँ ESZ की अधिसूचना प्रारूप चरण (Draft Stage) में है वहाँ भी NBWL की अनुमति आवश्यक होगी।
  • वर्ष 2002 की वन्यजीव संरक्षण रणनीति (The Wildlife Conservation Strategy of 2002) द्वारा अभ्यारण्य के चारों ओर 10 किमी. के बफर ज़ोन (Buffer Zone) की स्थापना की अनुशंसा की गई। 

नए नियमों का नकारात्मक पक्ष 

  • नए नियम संरक्षित क्षेत्र के चारों ओर 10 किमी परिधि के क्षेत्र के संरक्षण मूल्यों और उनके  महत्त्व को कम कर सकते है। 
  • ये नियम पर्यावरणीय मंजूरी के समय वन्यजीवों से संबंधित समीक्षा को सुनिश्चित करने के महत्त्व को कम करते हैं।  

वन्यजीव संरक्षण रणनीति, 2002

(The Wildlife Conservation Strategy of 2002)

  • इस रणनीति को वर्ष 2002 में आयोजित भारतीय वन्य जीव बोर्ड की 21 वीं बैठक में अपनाया गया।  
  • इस रणनीति के तहत नेशनल पार्क व वन्य जीव अभ्यारण्य की सीमा से 10 किमी की परिधि के क्षेत्र को पारिस्थितिकी  संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) घोषित करना शामिल है।  
  • ESZ को MoEFCC द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित किया जाता है।  
  • इस रणनीति के मुलभुत उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र के चारों ओर कुछ गतिविधियों का विनियमन करना ताकि संरक्षित क्षेत्र के सवेदेंशील परितंत्र पर इन गतिविधियों यथा खनन, पॉवर प्रोजेक्ट आदि  के नकारात्मक प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

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