आरटीआई अनुरोधों की अस्वीकृति | 30 Mar 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रस्तुत केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र ने वर्ष 2019-20 में सूचना का अधिकार (Right to Information) के तहत किये गए कुल अनुरोधों में से  4.3% को अस्वीकार कर दिया है।

  • यह अस्वीकृति दर वर्ष 2005-06 में 13.9% और वर्ष 2014-15 में 8.4% थी।

प्रमुख बिंदु

  • बिना कारण अस्वीकृति: इनमें से लगभग 40% अस्वीकृति में कोई वैध कारण शामिल नहीं था, क्योंकि उन्होंने सूचना के अधिकार अधिनियम (Right to Information Act) के कुछ उन खंडों का  उपयोग नहीं किया जिसके अंतर्गत छूट दी गई है।
    • इन अस्वीकृतियों को CIC डेटा में 'अन्य' श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है।
    • अकेले वित्त मंत्रालय ने अधिनियम के तहत वैध कारण प्रदान किये बिना अपने कुल आरटीआई अनुरोधों का 40% खारिज कर दिया।
    • प्रधानमंत्री कार्यालय, दिल्ली उच्च न्यायालय, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक से संबंधित 90% से अधिक अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया गया, इन अनुरोधों को "अन्य" श्रेणी में रखा गया।
  • अधिकतम अस्वीकृतियाँ: गृह मंत्रालय की अस्वीकृति दर उच्चतम थी, क्योंकि इसने अपने पास आए कुल आरटीआई के 20% अनुरोधों को खारिज कर दिया।
    • दिल्ली पुलिस और सेना में भी आरटीआई के अस्वीकृति की दर में वृद्धि देखी गई।

आरटीआई अनुरोधों की अस्वीकृति का आधार:

  • धारा 8 (1) सूचना प्रकटीकरण में छूट से संबंधित है:
    • यह धारा सरकार को किसी भी ऐसी सूचना जो देश की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा, आर्थिक हितों आदि से संबंधित है, को अस्वीकार करने की अनुमति देती है।
    • वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक संपदा आदि जानकारियाँ।
    • ऐसी सूचना, जिसके प्रकटन से किसी भी व्यक्ति का जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड़ जाए।
    • ऐसी सूचना जो अपराधियों की जाँच या अभियोजन की प्रक्रिया को बाधित करेगी।
    • ऐसी व्यक्तिगत जानकारी जिसके प्रकटीकरण का किसी भी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है।
    • आरटीआई अनुरोधों  की अस्वीकृति के मामलों में लगभग 46% में धारा 8 (1) का उपयोग किया गया था।
  • धारा 9:
    • यह केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी को सूचना के अनुरोध को अस्वीकार करने का अधिकार देता है, जिसमें कॉपीराइट का उल्लंघन शामिल है।
  • धारा 24:
    • यह भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को छोड़कर सुरक्षा और खुफिया संगठनों से संबंधित सूचनाओं को प्रस्तुत करता है।
    • इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले पाँच में से लगभग एक (20%) आरटीआई अस्वीकार किया गया।

सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019

  • इस अधिनियम में प्रावधान है कि मुख्य सूचना आयुक्त (Chief Information Commissioner) और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
    • इनका कार्यकाल इस संशोधन से पहले 5 वर्ष का था।
  • नए विधेयक के तहत केंद्र और राज्य स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते तथा अन्य रोज़गार की शर्तें भी केंद्र सरकार द्वारा ही तय की जाएंगी।
    • इस संशोधन से पहले मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त के समान थीं और सूचना आयुक्तों की चुनाव आयुक्तों (राज्यों के मामले में राज्य चुनाव आयुक्त) के समान थीं।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 यह प्रावधान करता है कि यदि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त पद पर नियुक्त होते समय उम्मीदवार किसी अन्य सरकारी नौकरी की पेंशन या सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त करता है तो उस लाभ के बराबर राशि उसके वेतन से घटा दी जाएगी, लेकिन इस नए संशोधन विधेयक में इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।

केंद्रीय सूचना आयोग

  • स्थापना:
    • केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act), 2005 के प्रावधानों के अंतर्गत वर्ष 2005 में केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। यह संवैधानिक निकाय नहीं है।
  • सदस्य:
    • केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त तथा अधिकतम 10 केंद्रीय सूचना आयुक्तों का प्रावधान है और इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
      • वर्ष 2019 में आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा छह सूचना आयुक्त थे।
  • नियुक्ति: 
    • ये नियुक्तियाँ प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी समिति की अनुशंसा पर की जाती हैं, जिसमें लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत कैबिनेट मंत्री बतौर सदस्य होते हैं।
  • कार्यकाल: 
    •  ऐसे पदों हेतु मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक पद धारण करेंगे।
    • इनकी पुनर्नियुक्ति नहीं की जा सकती है। 
  • सीआईसी की शक्ति और कार्य:
    • आयोग का कर्तव्य है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत किसी विषय पर प्राप्त शिकायतों के मामले में संबंधित व्यक्ति से पूछताछ करे।
    • आयोग उचित आधार होने पर किसी भी मामले में स्वतः संज्ञान (Suo-Moto Power) लेते हुए जाँच का आदेश दे सकता है।
    • आयोग के पास पूछताछ करने हेतु सम्मन भेजने, दस्तावेज़ों की आवश्यकता आदि के संबंध में एक सिविल कोर्ट की शक्तियाँ होती हैं।

स्रोत: द हिंदू