बैंकों को आरटीआई से छूट | 18 Oct 2022
प्रिलिम्स के लिये:RTI अधिनियम 2005, NPA, निजता का अधिकार. मेन्स के लिये:बैंकों द्वारा आरटीआई से छूट मांगने की वजह |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न बैंकों द्वारा आरटीआई (सूचना का अधिकार) से छूट से संबंधित एक याचिका की जाँच करने पर सहमति व्यक्त की है।
- सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के कई बैंक गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA), व्यापारिक हानियों, कारण बताओ नोटिस और जुर्माने के संबंध में विभिन्न प्रकार के वित्तीय डेटा का खुलासा करने के मामले में छूट प्राप्त करना चाहते हैं।
मुद्दा क्या है?
- निरीक्षण रिपोर्ट और डिफॉल्टरों की सूची के खुलासे के लिये कानूनी लड़ाई तब शुरू हुई जब आरटीआई कार्यकर्त्ता जयंतीलाल मिस्त्री ने आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत आरबीआई से गुजरात स्थित सहकारी बैंक के बारे में वर्ष 2010 में जानकारी मांगी। मामला सर्वोच्च न्यायलय तक गया क्योंकि मिस्त्री की अपील पर आरटीआई प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में ख़ास ध्यान नहीं दिया गया था।
- वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने निरीक्षण रिपोर्ट और डिफॉल्टरों की सूची को गोपनीय रखने की कोशिश करने के लिये आरबीआई को फटकार लगाई थी, जिससे आरबीआई की ऐसी रिपोर्टों के सार्वजनिक प्रकटीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ था, जो बैंकिंग क्षेत्र की इच्छा के खिलाफ था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आरबीआई का किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र या निजी क्षेत्र के बैंक के लाभ को अधिकतम करने का कोई कानूनी कर्तव्य नहीं है और इस प्रकार उनके बीच 'विश्वास' का कोई संबंध नहीं है। इसमें कहा गया है कि आरटीआई के तहत इन विवरणों का खुलासा करके जनहित को बनाए रखना आरबीआई का कर्तव्य है।
- आरबीआई ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद इस तरह की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की अनुमति दी।
- अब सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि वर्ष 2015 के फैसले में सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार को संतुलित करने के पहलू को ध्यान में नहीं रखा गया था एवं इस प्रकार न्यायालय बैंकों को योग्यता के आधार पर अपने मामले पर बहस करने का अवसर देने के लिये बाध्य है।
बैंकों का तर्क:
- चूँकि बैंक पैसे के लेन-देन में शामिल हैं, इसलिये उन्हें डर है कि विशेष रूप से नियामक RBI की ओर से कोई प्रतिकूल टिप्पणी उनके प्रदर्शन को प्रभावित करेगी और ग्राहकों को दूर रखेगी।
- बैंक अपने ग्राहकों के "विश्वास और आस्था" से प्रेरित होते हैं जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिये।
- बैंकों ने यह भी तर्क दिया कि गोपनीयता मौलिक अधिकार है और इसलिये ग्राहकों की जानकारी को सार्वजनिक करके इसका उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिये।
RTI अधिनियम, 2005:
- परिचय:
- सूचना का अधिकार अधिनियम या RTI केंद्रीय कानून है, जो नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरण से जानकारी प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
- यह सार्वजनिक प्राधिकरण के नियंत्रण में सूचना प्राप्त करने के लिये तंत्र प्रदान करता है ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाई जा सके।
- RTI अधिनियम की धारा 8: धारा 8 सूचना के प्रकटीकरण से छूट से संबंधित है। जैसे:
- सूचना जो भारत की संप्रभुता और अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।
- सूचना जिसे किसी भी न्यायालय द्वारा प्रकाशित करने के लिये स्पष्ट रूप से मना किया गया है।
- सूचना, जिसके प्रकटन से संसद या राज्य विधानमंडल के विशेषाधिकार का हनन होगा।
- वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार रहस्य या बौद्धिक संपदा सहित जानकारी, जिसका प्रकटीकरण तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्द्धी स्थिति को नुकसान पहुँचाएगा, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी संतुष्ट न हो कि बड़े सार्वजनिक हित में ऐसी जानकारी के प्रकटीकरण की आवश्यकता है।
- किसी व्यक्ति को उसके प्रत्ययी संबंध में उपलब्ध जानकारी, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी संतुष्ट न हो कि व्यापक जनहित में ऐसी जानकारी का प्रकटीकरण आवश्यक है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में नहीं है, यह अनिवार्य रूप से जवाबदेही की अवधारणा को फिर से परिभाषित करता है। चर्चा कीजिये। (मेन्स-2018) |