भारतीय लोकतंत्र में संसदीय समितियों की भूमिका | 14 Apr 2023
प्रिलिम्स के लिये:संसदीय समितियों के प्रकार, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा, लोकसभा मेन्स के लिये: |
चर्चा में क्यों?
संसदीय समितियों का गठन सार्वजनिक मामलों को गहराई से समझने और विशेषज्ञ राय विकसित करने हेतु किया जाता है।
संसदीय समितियाँ (Parliamentary Committees):
- समितियों का विकास:
- संरचित समिति प्रणाली वर्ष 1993 में स्थापित की गई थी, लेकिन स्वतंत्रता के बाद से व्यक्तिगत समितियों का गठन किया गया है।
- उदाहरण के लिये संविधान सभा की कई समितियों में से पाँच महत्त्वपूर्ण समितियाँ निम्नलिखित हैं:
- भारतीय नागरिकता की प्रकृति एवं दायरे पर चर्चा करने हेतु नागरिकता खंड पर तदर्थ समिति का गठन किया गया था।
- पूर्वोत्तर सीमांत (असम) जनजातीय और बहिष्कृत क्षेत्र उप-समिति तथा बहिष्कृत एवं आंशिक रूप से बहिष्कृत क्षेत्र (असम के अलावा) उप-समिति स्वतंत्रता के दौरान महत्त्वपूर्ण समितियाँ थीं।
- संघ संविधान के वित्तीय प्रावधानों पर विशेषज्ञ समिति और अल्पसंख्यकों हेतु राजनीतिक सुरक्षा के विषय पर सलाहकार समिति का गठन क्रमशः कराधान एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिये आरक्षण के उन्मूलन पर सिफारिशें देने हेतु किया गया था।
- परिचय:
- संसदीय समिति का अर्थ है एक समिति जो:
- संसदीय समिति सांसदों का एक पैनल है जिसे सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित किया जाता है या अध्यक्ष/सभापति द्वारा नामित किया जाता है।
- अध्यक्ष/सभापति के निर्देशन में कार्य करती है।
- अपनी रिपोर्ट सदन या अध्यक्ष/सभापति को प्रस्तुत करती है।
- लोकसभा/राज्यसभा द्वारा प्रदान किया गया सचिवालय है।
- परामर्शदात्री समितियाँ जिनमें संसद के सदस्य भी शामिल हैं, संसदीय समितियाँ नहीं हैं क्योंकि वे उपरोक्त चार शर्तों को पूरा नहीं करती हैं।
- संसदीय समिति का अर्थ है एक समिति जो:
- प्रकार:
- स्थायी समितियाँ: स्थायी (प्रत्येक वर्ष या समय-समय पर गठित) और निरंतर आधार पर कार्य करती हैं।
- स्थायी समितियों को निम्नलिखित छह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- वित्तीय समितियाँ
- विभागीय स्थायी समितियाँ
- पूछताछ हेतु समितियाँ
- जाँच और नियंत्रण हेतु समितियाँ
- सदन के दिन-प्रतिदिन के कार्य से संबंधित समितियाँ
- हाउस-कीपिंग समितियाँ या सेवा समितियाँ
- स्थायी समितियों को निम्नलिखित छह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- तदर्थ समितियाँ:
- ये अस्थायी होती हैं और उन्हें सौंपे गए कार्य के पूरा होने पर उनका अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है। उदाहरण- संयुक्त संसदीय समिति।
- स्थायी समितियाँ: स्थायी (प्रत्येक वर्ष या समय-समय पर गठित) और निरंतर आधार पर कार्य करती हैं।
- संवैधानिक प्रावधान:
- संसदीय समितियाँ अनुच्छेद 105 (संसद सदस्यों के विशेषाधिकारों पर) और अनुच्छेद 118 (इसकी प्रक्रिया एवं कार्य संचालन को विनियमित करने तथा नियम बनाने के लिये संसद के अधिकार पर) से अपने अधिकार प्राप्त करती हैं।
संसदीय समितियों की भूमिका:
- विधायी विशेषज्ञता प्रदान करना:
- अधिकांश सांसद चर्चा किये जा रहे विषयों के विषय विशेषज्ञ नहीं होते हैं। संसदीय समितियाँ सांसदों को विशेषज्ञता हासिल करने में सहायता और मुद्दों पर विस्तार से विचार करने के लिये समय प्रदान करती हैं।
- लघु-संसद के रूप में कार्य करना:
- ये समितियाँ एक लघु संसद के रूप में कार्य करती हैं क्योंकि उनके पास अलग-अलग दलों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले सांसद एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं, (संसद में उनकी शक्ति के समान अनुपात में)।
- विस्तृत जाँच का साधन:
- जब बिल इन समितियों को भेजे जाते हैं, तो उनकी गहनता से जाँच की जाती है और जनता सहित विभिन्न बाहरी हितधारकों से उन पर सुझाव मांगा जाता है।
- सरकार पर निगरानी रखने में मदद:
- हालाँकि समिति की सिफारिशें सरकार के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होती हैं किंतु उनकी रिपोर्टें परामर्शों का एक सार्वजनिक रिकॉर्ड प्रदान करती हैं और विवादित भागों के प्रति प्रशासन के रुख पर पुनर्विचार करने के लिये दबाव डालती हैं।
- जनता की नज़रों से दूर होने और एक पृथक माहौल में होने के कारण समिति की बैठकों में चर्चाएँ अधिक उत्पादक प्रकृति की होती हैं, साथ ही सांसदों पर मीडिया का दबाव कम होता है।
हालिया समय में संसदीय समितियों की भूमिका पर प्रभाव:
- 17वीं लोकसभा के दौरान केवल 14 विधेयकों को आगे की जाँच के लिये भेजा गया।
- PRS के आँकड़ों के अनुसार, 16वीं लोकसभा में पेश किये गए विधेयकों में से केवल 25% को समितियों को भेजा गया था, जबकि 15वीं और 14वीं लोकसभा में यह आँकड़ा क्रमशः 71% और 60% था।
आगे की राह
- कार्यपालिका को उत्तरदायी बनाने के लिये उन्हें अधिक संसाधन, शक्तियाँ और अधिकार देकर संसदीय समितियों की भूमिका को बढ़ाया जा सकता है।
- विभिन्न दृष्टिकोणों और सूचित निर्णयन सुनिश्चित करने के लिये समिति की कार्यवाही में नागरिक समाज, विशेषज्ञों तथा हितधारकों की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- लाइव स्ट्रीमिंग तथा बैठकों की रिकॉर्डिंग एवं रिपोर्ट और सिफारिशों को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराकर समिति की कार्यवाही में पारदर्शिता व जवाबदेही को सुनिश्चित किया जा सकता है।
- सभी हितधारकों के हितों के प्रतिनिधित्त्व को सुनिश्चित करते हुए अधिक उत्पादक और कुशल विधायी प्रक्रिया को बढ़ावा देने हेतु समितियों के भीतर द्विदलीय आम सहमति-निर्माण की संस्कृति को विकसित करने का प्रयास किया जा सकता है।
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