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समुद्र का बढ़ता तापमान

  • 05 Oct 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों (Green House Gases- GHG) के उत्सर्जन की दर को कम नहीं किया गया तो वर्ष 2100 तक दुनिया भर के महासागर पिछले 50 वर्षों की तुलना में पाँच से सात गुना अधिक गर्मी को अवशोषित करेंगे, जिसके कारण उनके तापमान में भारी वृद्धि हो सकती है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • रिपोर्ट में इस बात की चेतावनी दी गई है कि यदि इसी तरह तापमान बढ़ता रहा तो वर्ष 2100 तक वैश्विक समुद्र-स्तर में कम-से-कम एक मीटर तक की वृद्धि होगी जिसके कारण मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और सूरत सहित कई तटीय शहर जलमग्न हो जाएंगे।
  • समुद्री हीटवेव (Marine Heatwaves) का अधिक तीव्र एवं चिरस्थायी होने का अनुमान है और इसकी बारंबारता में भी 50 गुना तक की वृद्धि हो सकती है।
  • समुद्र के स्तर में वृद्धि कई अन्य चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि का कारण बन सकती है, जैसा कि उच्च ज्वार और तीव्र तूफान के संदर्भ में होता है।
  • रिपोर्ट में अल-नीनो (El-Nino) और ला-नीना (La-Nina) जैसी परिघटनाओं की बारंबारता में वृद्धि की चेतावनी दी गई है।

समुद्र का बढ़ता तापमान और उसका प्रभाव:

  • पृथ्वी की सतह के 70 प्रतिशत से अधिक हिस्से में महासागर अवस्थित हैं जो गर्मी को अवशोषित कर उसका समान रूप से वितरित करने जैसी महत्त्वपूर्ण पारितंत्रीय सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • जैसे ही पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि होती है, समुद्र द्वारा अधिकांश अतिरिक्त ऊष्मा का अवशोषण कर लिया जाता है। फलतः वैश्विक उष्मण का सर्वाधिक प्रभाव समुद्र पर पड़ता है।
  • साथ ही गर्म महासागरों का सीधा संबंध मज़बूत चक्रवात और तीव्र तूफान जैसी परिघटनाओं से होता है जिसके कारण कई तटीय क्षेत्रों में अभूतपूर्व अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण के लिये-
    • वर्ष 2014 में चक्रवात नीलोफर (Nilofar) मानसून के बाद के मौसम में अरब सागर में दर्ज होने वाला पहला सबसे गंभीर चक्रवात था। इससे पहले देश में आने वाले चक्रवात आमतौर पर बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते थे और भारत के पूर्वी तट पर अपना लैंडफॉल (Landfall) बनाते थे। यद्यपि चक्रवात निलोफ़र ने लैंडफॉल (चक्रवात का जलीय भाग से स्थल पर प्रवेश करने की परिघटना) नहीं बनाया, लेकिन इससे देश के पश्चिमी तट में भारी बारिश हुई।
    • अक्टुबर 2014 में चक्रवात लुबन (Luban) की वजह से समुद्र के स्तर में सामान्य वृद्धि और उच्च ज्वार के दोहरे प्रभाव ने गोवा में कई समुद्र तटों को जलमग्न कर दिया था।
    • गर्म होते महासागरों ने चक्रवात व्यवहार को अन्य तरीकों से भी बदल दिया है। वर्ष 2017 में चक्रवात ओखी (Ockhi), जो बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न हुआ, ने 2,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा कर भारत के पश्चिमी तट पर भारी तबाही मचाई और पिछले 30 वर्षों में ऐसा करने वाला यह पहला चक्रवात था।

आगे की राह:

  • हरितगृह गैसों (Green House Gas- GHG) के उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिये।
  • चरम मौसमी घटनाओं के खिलाफ लोगों के लचीलेपन (Resilience) को बढ़ावा देने वाले बुनियादी ढाँचे और ज्ञान प्रणालियों में निवेश में वृद्धि का प्रयास करना चाहिये।
  • हालाँकि, पेरिस जलवायु संधि के बाद से इस संदर्भ में लगातार सकारात्मक प्रयास किये जाते रहे हैं फिर भी स्थिति की गंभीरता को समझते हुए नवीनतम IPCC रिपोर्ट को वेक-अप कॉल (Wake-up Call) के रूप में देखा जाना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग को बढ़ावा देते हुए विकसित देशों द्वारा तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग को सुनिश्चित करने तथा विकासशील देशों द्वारा इससे जुड़े वैश्विक संधि एवं समझौतों को व्यावहारिक रूप से लागू करने पर बल देना चाहिये।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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