अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पेरिस जलवायु समझौते का भविष्य
- 03 Jun 2017
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संदर्भ
1 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप घोषणा की कि अमेरिका ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते को नहीं मानेगा, इस प्रकार अमेरिका ने इस समझौते को लागू करने से मना कर दिया। इसकी घोषणा ट्रंप द्वारा हाल ही में इटली में संपन्न G-7 देशों के सम्मेलन के बाद की गई। उल्लेखनीय है कि ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान देशवासियों से यह वादा किया था कि वह जलवायु परिवर्तन समझौते से अमेरिका को अलग कर लेंगे।
अमेरिका की नाराज़गी
- ट्रंप ने इस समझौते को भारत और चीन के हितों की पूर्ति करने वाला बताते हुए इसे अमेरिका के लिये "अनुचित" माना। हालाँकि, अमेरिका के लिये यह कोई नई बात नहीं है, इससे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने भी इसी तरह ‘क्योटो प्रोटोकॉल’ को लागू नहीं करने का निर्णय लिया था।
- ट्रंप का कहना है कि यह समझौता भारत तथा चीन, जोकि विश्व के सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले देश हैं, को अनुचित लाभ प्रदान करता है। उदाहरणस्वरूप, इसके माध्यम से भारत विकसित देशों से विदेशी सहायता के रूप में अरबों-खरबों डॉलर प्राप्त करेगा। इस राशि का उपयोग भारत और अधिक कोयले से बिजली उत्पादन करने में में करेगा, जो अंततः और अधिक प्रदूषण को बढ़ावा देगा।
- ट्रंप ने यह भी कहा कि यह समझौता हमारी अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करेगा, हमारे श्रमबल पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, साथ ही यह अमेरिका की संप्रभुता को भी कमज़ोर कर सकता है।
- ट्रंप का मानना है कि इस समझौते के माध्यम से ‘अमेरिकी धन’ को अन्य देशों को पुनर्वितरित किया जाएगा और अमेरिकी नौकरियाँ अन्य देशों में स्थानांतरित हो जाएंगी।
अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु
- ट्रंप का कहना है कि अमेरिका इस समझौते की शर्तों पर फिर से बातचीत करने की कोशिश करेगा जो अमेरिका के लिये हितकर हो और देश के करदाताओं के हितों की रक्षा करता हो।
- हालाँकि, अभी उन्होंने इस समझौते से बाहर निकलने की घोषणा की है लेकिन समझौते के नियमों के मुताबिक अमेरिका अधिकारिक रूप से इस समझौते से चार साल बाद ही बाहर हो सकेगा।
- ट्रंप ने कहा कि वह पेरिस समझौते के गैर-बाध्यकारी प्रावधानों के कार्यान्वयन को समाप्त करेंगे और कठोर वित्तीय एवं आर्थिक दायित्वों (जिनका इस समझौते में प्रावधान किया गया है) को लागू नहीं करेंगे। इसमें ‘ग्रीन क्लाइमेट फंड’ में निर्धारित योगदान भी शामिल है।
- हालाँकि, “जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन फ्रेमवर्क” (UNFCCC) ने कहा कि पेरिस समझौता एक ऐतिहासिक संधि बनी है जिस पर 194 देशों ने हस्ताक्षर किये हैं और 147 देशों ने इसकी पुष्टि भी की है। अत: किसी एक पक्ष के अनुरोध के आधार पर इस पर पुन: विचार नहीं किया जा सकता।
पेरिस जलवायु समझौता
- इस ऐतिहासिक समझौते को 2015 में ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन फ्रेमवर्क’ (UNFCCC) की 21वीं बैठक में अपनाया गया, जिसे COP-21 के नाम से जाना जाता है।
- इस समझौते को 2020 से लागू किया जाना है। इसके तहत यह प्रावधान किया गया है कि सभी देश वैश्विक तापमान को औद्योगिकीकरण से पूर्व के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है (दूसरे शब्दों में कहें तो 2 डिग्री सेल्सियस से कम ही रखना है) और 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये सक्रिय प्रयास करना है।
- पहली बार, विकसित और विकासशील देश दोनों ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (INDC) को प्रस्तुत किया, जो प्रत्येक देश के अपने स्तर पर स्वेच्छा से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक विस्तृत कार्रवाइयों का समूह है।