संशोधित गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस मानक | 08 Aug 2023
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने सभी फार्मास्यूटिकल कंपनियों को अपनी प्रक्रियाओं को वैश्विक मानकों के अनुरूप लाते हुए गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) मानक लागू करने का निर्देश दिया है।
- 250 करोड़ रुपए से अधिक कारोबार वाली बड़ी कंपनियों को छह महीने के भीतर संसोधनों को लागू करने के लिये कहा गया है, जबकि 250 करोड़ रुपए से कम कारोबार वाले मध्यम तथा छोटे उद्यमों को एक वर्ष के भीतर ऐसा करने के लिये कहा गया है।
गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP):
- परिचय:
- GMP यह सुनिश्चित करने की एक प्रणाली है कि उत्पादों का उत्पादन और नियंत्रण गुणवत्ता मानकों के अनुसार किया जाए।
- इसे किसी भी फार्मास्यूटिकल उत्पादन में शामिल उन जोखिमों को कम करने के लिये डिज़ाइन किया गया है जिन्हें अंतिम उत्पाद के परीक्षण के माध्यम से समाप्त नहीं किया जा सकता है।
- प्रमुख खतरे:
- उत्पादों का अप्रत्याशित संदूषण
- स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने अथवा मृत्यु का कारण
- कंटेनरों पर गलत लेबल, जिसका अर्थ है कि रोगियों को गलत दवा प्राप्त हुई है।
- अपर्याप्त या बहुत अधिक सक्रिय घटक, जिनके परिणामस्वरूप अप्रभावी उपचार या प्रतिकूल प्रभाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने GMP के लिये विस्तृत दिशा-निर्देश सुनिश्चित किये हैं। कई देशों ने WHO-GMP के आधार पर अपने GMP नियम तैयार किये हैं।
- फार्मास्यूटिकल निरीक्षण अभिसमय (Pharmaceutical Inspection Convention) के माध्यम से दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) और यूरोपीय संघ के देशों ने अपने मानदंडों को मानकीकृत किया है।
- भारत में GMP प्रणाली को पहली बार वर्ष 1988 में औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 की अनुसूची M में शामिल किया गया था तथा इसमें आखिरी बार संशोधन जून 2005 में किया गया था। WHO-GMP मानक अब संशोधित अनुसूची M का हिस्सा हैं।
संशोधित GMP दिशा-निर्देशों में प्रमुख बदलाव:
- फार्मास्यूटिकल गुणवत्ता प्रणाली और जोखिम प्रबंधन:
- नए दिशा-निर्देश एक फार्मास्यूटिकल गुणवत्ता प्रणाली प्रस्तुत करते हैं जो संपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया के दौरान व्यापक गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली की स्थापना पर ज़ोर देती है।
- कंपनियों को अब अपने उत्पादों की गुणवत्ता के लिये संभावित जोखिमों की पहचान और उचित निवारक उपाय करने हेतु गुणवत्ता जोखिम प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना अनिवार्य है। साथ ही गुणवत्ता एवं विभिन्न प्रक्रियाओं में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये सभी उत्पादों की नियमित गुणवत्ता समीक्षा करना भी अनिवार्य है।
- स्थिरता संबंधी अध्ययन:
- कंपनियों के लिये अब जलवायु परिस्थितियों के आधार पर स्थिरता संबंधी शोध-अध्ययन करना अनिवार्य है। इसमें दवाओं को निर्धारित तापमान और आर्द्रता के स्तर पर उनकी दीर्घकालिक स्थिरता के मूल्यांकन के लिये स्टेबिलिटी चैम्बर्स में रखा जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न परिस्थितियों में उत्पाद की स्थिरता का आकलन करने के लिये त्वरित स्थिरता परीक्षण किया जा सकता है।
- GMP के प्रबंधन हेतु कंप्यूटरीकृत सिस्टम:
- नए दिशा-निर्देश GMP-संबंधित प्रक्रियाओं को प्रबंधित करने के लिये कंप्यूटरीकृत सिस्टम के उपयोग पर ज़ोर देते हैं।
- ये सिस्टम डेटा में हेर-फेर, अनधिकृत पहुँच और डेटा की चूक (Omission of Data) को रोकने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं, जो बिना छेड़छाड़ किये प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित करने के लिये सभी चरणों तथा परीक्षणों को स्वचालित रूप से रिकॉर्ड करते हैं।
- नैदानिक परीक्षण हेतु उत्पादों की जाँच :
- नवीन M अनुसूची, अतिरिक्त आवश्यक उत्पादों को भी सूचीबद्ध करती है, इसमें जैविक उत्पाद, रेडियोधर्मी सामग्री वाले अभिकर्त्ता या पादप-व्युत्पन्न उत्पाद शामिल हैं।
- नए दिशा-निर्देश नैदानिक परीक्षणों के लिये निर्मित किये जाने वाले आवश्यक परीक्षण उत्पादों को निर्धारित करते हैं। साथ ही नैदानिक परीक्षणों में उपयोग होने वाले आवश्यक उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करते हैं।
संशोधित GMP के लिये आवश्यक दिशा-निर्देश:
- वैश्विक मानकों के साथ संलग्नता:
- नए मानदंडों के कार्यान्वयन से भारतीय उद्योग वैश्विक मानकों की बराबरी पर आ जाएगा।
- संदूषण की घटनाएँ:
- ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जहाँ अन्य देशों ने भारत निर्मित सिरप, आई-ड्रॉप और आँखों के मलहम में कथित संदूषण की सूचना दी है।
- गाम्बिया में 70 बच्चों, उज़्बेकिस्तान में 18 बच्चों, संयुक्त राज्य अमेरिका में तीन लोगों और कैमरून में छह लोगों की मौत को इन उत्पादों से जोड़ा गया है।
- वर्तमान प्रथाओं में कमियाँ:
- जोखिम-आधारित निरीक्षण में भारत की 162 विनिर्माण इकाइयों में कई कमियाँ पाई गईं हैं।
- इन कमियों में कच्चे माल का अपर्याप्त परीक्षण, उत्पाद गुणवत्ता की समीक्षा में कमी, बुनियादी ढाँचे और योग्य पेशेवरों की कमी शामिल है।
- वर्तमान में भारत में 10,500 में से केवल 2,000 ऐसी दवा निर्माण इकाइयाँ हैं जो वैश्विक मानकों को पूरा करती हैं और WHO-GMP प्रमाणित हैं।
- बेहतर मानक यह सुनिश्चित करेंगे कि दवा कंपनियाँ मानक प्रक्रियाओं, गुणवत्ता नियंत्रण उपायों का पालन करें और कोई कोताही न बरतें, जिससे भारत में उपलब्ध दवाओं के साथ-साथ वैश्विक बाज़ार में बेची जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।
- जोखिम-आधारित निरीक्षण में भारत की 162 विनिर्माण इकाइयों में कई कमियाँ पाई गईं हैं।
- अन्य देशों के नियामकों पर भरोसा:
- समग्र उद्योग में समान गुणवत्ता स्थापित करने से अन्य देशों के नियामकों पर विश्वास की अवधारणा स्थापित होगी।
- इसके अलावा इससे घरेलू बाज़ारों में दवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा। 8,500 विनिर्माण इकाइयों में से अधिकांश, जो कि WHO-GMP प्रमाणित नहीं हैं, भारत में दवा की आपूर्ति करती हैं।
आगे की राह
- संशोधित GMP दिशा-निर्देशों को लागू करने का भारत का कदम फार्मास्यूटिकल उद्योग में वैश्विक गुणवत्ता मानकों को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- संशोधित मानकों का उद्देश्य गुणवत्ता नियंत्रण उपायों, उचित दस्तावेज़ीकरण और IT समर्थन को बढ़ाना है, जिससे भारत एवं वैश्विक बाज़ार के लिये उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं का उत्पादन सुनिश्चित हो सकेगा।