न्यायालय की सुनवाई में भाग लेने पर प्रतिबंध | 08 Apr 2020
प्रीलिम्स के लियेअनुच्छेद-142 से संबंधित मुख्य बिंदु मेन्स के लियेआपदा/महामारी प्रबंधन में विभिन्न संस्थानों की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में COVID-19 महामारी के मद्देनज़र लोगों के न्यायालय परिसर में प्रवेश करने और सुनवाई में भाग लेने पर लगाए गए सभी प्रतिबंधों को लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) शरद अरविंद बोबडे के नेतृत्व वाली न्यायपीठ ने कहा कि ये प्रतिबंध सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) के अनुरूप हैं तथा वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये अनिवार्य हैं।
प्रमुख बिंदु
- न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत अपनी असाधारण संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए ओपन कोर्ट हियरिंग (Open Court Hearings) के प्रावधानों को कुछ समय के लिये निरस्त कर दिया है।
- साथ ही न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस स्थिति में असाधारण शक्ति का उपयोग विवेक का नहीं बल्कि कर्त्तव्य का मामला है।
कदम की अनिवार्यता
- यद्यपि ओपन कोर्ट प्रणाली (Open Court System) न्याय के प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करती है, किंतु बड़ी संख्या में लोगों को एकत्रित होने से रोकने के लिये यह कदम अनिवार्य है।
- CJI शरद अरविंद बोबडे के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति और संस्थान से वायरस के संचरण को रोकने हेतु प्रबंधित किये गए उपायों के कार्यान्वयन में सहयोग करने की अपेक्षा की जाती है। न्यायालय के दायरे के भीतर लोगों की आवाजाही को कम करना इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है, इस प्रकार यह न्यायालय के विवेक का नहीं बल्कि कर्त्तव्य का मामला है।
तकनीक का प्रयोग
- भारतीय संविधान द्वारा परिकल्पित लोकतंत्र में कानून के शासन की रक्षा के लिये न्याय तक सभी की पहुँच को सुनिश्चित करना आवश्यक है। न्याय तक पहुँच के अभाव में आम लोग शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने, अपने अधिकारों का प्रयोग करने, भेदभाव को चुनौती देने और निर्णयकर्त्ताओं को उत्तरदायी ठहरने में असमर्थ हो जाते हैं।
- आवश्यक है कि COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न चुनौतियों को संबोधित करने के साथ-साथ सभी तक न्याय की पहुँच सुनिश्चित करने की संवैधानिक प्रतिबद्धता को भी बनाए रखा जाए।
- इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय के प्रभावी वितरण हेतु सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communications Technology-ICT) के उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये निम्नलिखित दिशा-निर्देश जारी किये हैं-
- उच्च न्यायालय: उच्च न्यायालय को अपने संबंधित राज्य में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के उपयोग से संबंधित तौर-तरीकों का निर्णय लेना होगा।
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ज़िला न्यायालय: प्रत्येक राज्य के ज़िला न्यायालय संबंधित उच्च न्यायालयों द्वारा निर्धारित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के तौर-तरीकों को अपनाएंगे।
- तकनीकी शिकायतों को प्राप्त करने और उनका निवारण करने के लिये हेल्पलाइन की जाएगी।
- न्यायालय के अनुसार, किसी भी मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा दोनों पक्षों की आपसी सहमति के बिना सबूत दर्ज़ नहीं किये जाएंगे।
- इसके अलावा यदि किसी मामले में साक्ष्य दर्ज करना अति आवश्यक है, तो पीठासीन अधिकारी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सुनिश्चित करेगा।
संविधान का अनुच्छेद- 142
- अनुच्छेद-142 के अनुसार, अपने न्यायिक निर्णय देते समय न्यायालय ऐसे निर्णय दे सकता है जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले को पूर्ण करने के लिये आवश्यक हों और इसके द्वारा दिये गए आदेश संपूर्ण भारत संघ में तब तक लागू होंगे जब तक इससे संबंधित किसी अन्य प्रावधान को लागू नहीं कर दिया जाता है।
- इस प्रकार जब तक किसी अन्य कानून को लागू नहीं किया जाता तब तक सर्वोच्च न्यायालय का आदेश सर्वोपरि होता है।
- संसद द्वारा बनाए गए कानून के प्रावधानों के तहत सर्वोच्च न्यायालय को संपूर्ण भारत के लिये ऐसे निर्णय लेने की शक्ति है जो किसी भी व्यक्ति की मौज़ूदगी, किसी दस्तावेज़ अथवा स्वयं की अवमानना की जाँच और दंड को सुरक्षित करते हैं।
आगे की राह
- न्यायालय द्वारा प्रवेश पर लगाए गए प्रतिबंध का निर्णय कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये एक संस्थान की भूमिका के रूप में स्वागतयोग्य है। किंतु इस संदर्भ में न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय का प्रभावी क्रियान्वयन एक चुनौतीपूर्ण विषय है।
- देश में अभी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो तकनीक से पूर्ण रूप से अनभिज्ञ है, यह स्थिति सभी तक न्याय की पहुँच को सुनिश्चित करने में बाधा बन सकती है। आवश्यक है कि न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों के उचित क्रियान्वयन पर ध्यान दिया जाए और सभी विषय को यथासंभव संबोधित किया जाए।