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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘संयुक्त व्यापक कार्रवाई योजना’ की बहाली

  • 08 Feb 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)।

मेन्स के लिये:

JCPOA की समयरेखा एवं पृष्ठभूमि, JCPOA की बहाली के भारत पर प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

ईरान के साथ वर्ष 2015 के अंतर्राष्ट्रीय परमाणु समझौते को पूर्व रूप में लाने पर अमेरिका और ईरान के बीच चल रही अप्रयक्ष वार्ता के अंतिम चरण में प्रवेश करने के साथ ही अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय परमाणु सहयोग परियोजनाओं को अनुमति देने के लिये ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों में छूट को बहाल कर दिया है।

  • सुरक्षा एवं अप्रसार को बढ़ावा देने के नाम पर यह छूट अन्य देशों और कंपनियों को अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन किये बिना ईरान के नागरिक परमाणु कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति देती है।
  • पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जिन्होंने इस परमाणु समझौते से स्वयं को अलग कर लिया था, के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2019 और 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस छूट को रद्द कर दिया गया था। इस समझौते को औपचारिक रूप से संयुक्त व्यापक कार्रवाई योजना (Joint Comprehensive Plan of Action-JCPOA) के नाम से जाना जाता है।

क्या है JCPOA की सामयिकता एवं पृष्ठभूमि?

  • JCPOA ईरान और P5+1 देशों (चीन, फ्राँस, जर्मनी, रूस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ) के बीच वर्ष 2013-2015 के दौरान चली लंबी बातचीत का परिणाम था।
  • यह ओमान की मध्यस्थता के साथ अमेरिका (राष्ट्रपति बराक ओबामा के तहत) और ईरान के बीच आयोजित बैक चैनल वार्ताओं के कारण संभव हो सका, ये वार्ताएँ वर्ष 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद उत्पन्न स्थिति में पुनः विश्वास बहाली के प्रयासों का हिस्सा थीं।
    • इस्लामिक क्रांति, जिसे ईरानी क्रांति भी कहा जाता है, वर्ष 1978-79 के दौरान ईरान में एक लोकप्रिय विद्रोह था, जिसके परिणामस्वरूप 11 फरवरी, 1979 को राजशाही का पतन हुआ और एक इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई।
  • JCPOA ने ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को आंशिक रूप से हटाने के बदले में एक अंतर्वेधी निरीक्षण प्रणाली की निगरानी में उसे अपने परमाणु संवर्द्धन कार्यक्रम को सीमित करने के लिये बाध्य किया।
    • हालाँकि एक आक्रामक रिपब्लिकन सीनेट के कारण राष्ट्रपति ओबामा इस परमाणु समझौते पर सीनेट से मंज़ूरी प्रदान कराने में असमर्थ रहे थे, परंतु ईरान पर लगे प्रतिबंधों में छूट के लिये इसे आवधिक कार्यकारी आदेशों के आधार पर लागू किया गया। 
  • डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद वे इस समझौते से पीछे हट गए, उन्होंने इसे एक "बहुत ही खराब, एकतरफा सौदा बताया, जिसे कभी नहीं लागू किया जाना चाहिये था।”
  • अमेरिका के इस समझौते से अलग होने के निर्णय की JCPOA में शामिल अन्य सदस्यों (यूरोपीय सहयोगियों सहित) ने आलोचना की क्योंकि उस समय तक ईरान इस समझौते के तहत अपने दायित्वों का अनुपालन कर रहा था और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) द्वारा इसे प्रमाणित भी किया गया था।
  • ईरान पर अमेरिका के एकतरफा प्रतिबंधों की सख्ती के कारण दोनों देशों के बीच तनाव भी बढ़ गया, अमेरिकी प्रतिबंधों के विस्तार के साथ वैश्विक वित्तीय प्रणाली से जुड़े लगभग सभी ईरानी बैंक, धातु, ऊर्जा और शिपिंग से संबंधित उद्योग, रक्षा, खुफिया तथा परमाणु प्रतिष्ठानों से संबंधित लोग आदि सभी इसके दायरे में आ गए थे।
  • अमेरिका के इस समझौते से पीछे हटने पर पहले वर्ष में ईरान की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं देखने को मिली क्योंकि इस दौरान E-3 देशों (फ्राँस, जर्मनी, यू.के.) और यूरोपीय संघ ने अमेरिकी फैसले के प्रभावों को कम करने हेतु समाधान खोजने का वादा किया था।
    • E-3 देशों नेइंसटेक्स (Instrument in Support of Trade Exchanges- INSTEX) के माध्यम से कुछ राहत प्रदान करने का वादा किया, ध्यातव्य है कि इंसटेक्स की स्थापना वर्ष 2019 में ईरान के साथ सीमित व्यापार की सुविधा के लिये की गई थी।
  • हालाँकि मई 2019 तक ईरान का यह रणनीतिक धैर्य समाप्त हो गया क्योंकि वह E-3 देशों से  अपेक्षित आर्थिक राहत पाने में विफल रहा। 
    • ऐसे में जब ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव तीव्रता से पड़ने लगा तो ईरान ने ‘अधिकतम प्रतिरोध’ की रणनीति अपनानी शुरू कर दी।

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JCPOA की बहाली से कैसे प्रभावित होगा भारत?

JCPOA की बहाली से ईरान पर लगाए गए कई प्रतिबंधों में कटौती हो सकती है, जिसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ भारत  को मिल सकता है। इसे निम्नलिखित उदाहरणों के आधार पर समझा जा सकता है:

  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा: ईरान पर लगे प्रतिबंधों के हटने से चाबहार, बंदर अब्बास बंदरगाह और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी से संबंधित अन्य योजनाओं में भारत के हितों को संरक्षण प्रदान किया जा सकेगा।
    • यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी उपस्थिति को बेअसर करने में भारत की मदद करेगा।
    • चाबहार के अलावा ईरान से होकर गुज़रने वाले ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण पारगमन गलियारे’ (INSTC) से भारत के हितों को भी बढ़ावा मिल सकता है। गौरतलब है कि INSTC के माध्यम से पाँच मध्य एशियाई देशों के साथ कनेक्टिविटी में सुधार होगा।
  • ऊर्जा सुरक्षा: अमेरिका की आपत्तियों और CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के दबाव के कारण भारत को ईरान से तेल के आयात को शून्य करना है।
    • अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों की बहाली से भारत को ईरान से सस्ते तेल की खरीद करने तथा अपनी ऊर्जा सुरक्षा को समर्थन प्रदान करने में सहायता मिलेगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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