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जल संसाधन प्रबंधन पर रिपोर्ट

  • 06 Aug 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

सिंधु जल संधि

मेन्स के लिये

जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति ने राज्यसभा में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। 

  • यह रिपोर्ट ‘फ्लड मैनेजमेंट इन द कंट्री इंक्लूडिंग इंटरनेशनल वाटर ट्रीटीज़ इन द फील्ड ऑफ वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट विथ पर्टिकुलर रिफरेंस टू ट्रीटी/एग्रीमेंट एंटर्ड इनटू विद चाइना, पाकिस्तान एंड भूटान’ शीर्षक से जारी की गई है। 
  • भारत सरकार को जलवायु परिवर्तन जैसी वर्तमान चुनौतियों के आलोक में पाकिस्तान के साथ वर्ष 1960 की सिंधु जल संधि पर पुनः वार्ता करनी चाहिये और ब्रह्मपुत्र नदी पर 'चीन द्वारा किये जा रहे कार्यों' की लगातार निगरानी करनी चाहिये।

प्रमुख बिंदु

बाढ़ प्रबंधन पर

  • समिति ने देश में बाढ़ के नियंत्रण और प्रबंधन के लिये जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय एकीकृत बाढ़ प्रबंधन समूह के रूप में तत्काल एक स्थायी संस्थागत संरचना की स्थापना की सिफारिश की है।
  • इस समूह को बाढ़ प्रबंधन और जीवन एवं संपत्ति पर परिणामों के लिये ज़िम्मेदार सभी एजेंसियों के बीच समन्वय की समग्र ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये।

सिंधु जल संधि पर

  • जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव:
    • वर्षा पैटर्न: उच्च-तीव्रता वाली वर्षा के साथ-साथ अधिक हिस्सों में कम वर्षा हो रही है।
    • ग्लेशियरों का पिघलना: सिंधु बेसिन में ग्लेशियरों के पिघलने का प्रभाव गंगा या ब्रह्मपुत्र घाटियों की तुलना में अधिक है।
    • आपदाएँ: चूँकि इसमें एक नाज़ुक हिमालयी क्षेत्र शामिल है, अतः भूस्खलन और तीव्र बाढ़ की आवृत्ति अधिक होती है।
  • सिंधु जल का उपयोग:
    • भारत पठानकोट में रावी पर रणजीत सागर, ब्यास पर पोंग और सतलुज पर भाखड़ा नांगल जैसे बाँधों की एक शृंखला के माध्यम से 'पूर्वी नदियों', अर्थात् रावी, ब्यास तथा  सतलुज के संपूर्ण जल का उपयोग करने में सक्षम था।
    • हालाँकि पंजाब और राजस्थान में स्थित नहरें जैसे- राजस्थान फीडर एवं सरहिंद फीडर पुरानी हो गई थीं तथा उनका रखरखाव ठीक से नहीं किया गया था। इसके परिणामस्वरूप उनकी जल धारण क्षमता कम हो गई थी।
      • इस प्रकार पंजाब में ब्यास और सतलुज के संगम पर हरिके बैराज का जल सामान्यत: पाकिस्तान के निचले हिस्से में छोड़ा जाता था।
    • इसने केंद्र से नई परियोजनाओं में तेज़ी लाने का आग्रह किया, जैसे उज्ज नदी (रावी की सहायक नदी) के साथ-साथ रावी पर स्थित शाहपुरकंडी बाँध, का निर्माण सिंचाई और अन्य उद्देश्यों के लिये नदियों की पूरी क्षमता का दोहन करने हेतु किया जा रहा है।
    • इसने यह भी सिफारिश की कि पंजाब और राजस्थान में नहर प्रणालियों की मरम्मत की जाए ताकि उनकी जल वहन क्षमता बढ़ाई जा सके।
  • सिंधु जल संधि पर पुन: बातचीत:
    • वर्ष 1960 में हस्ताक्षरित संधि द्वारा जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन आदि जैसे वर्तमान में उद्घृत मुद्दों को ध्यान में नहीं रखा गया था।
    • संधि पर फिर से बातचीत करने की आवश्यकता है ताकि सिंधु बेसिन में जल की उपलब्धता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और अन्य चुनौतियों का समाधान  करने के लिये किसी प्रकार की संस्थागत संरचना या विधायी ढाँचा स्थापित किया जा सके जो संधि के तहत शामिल नहीं है।

IWT

ब्रह्मपुत्र पर चीन के विकास के संदर्भ में:

  • समिति ने आशंका व्यक्त की कि चीन द्वारा शुरू की गई 'रन ऑफ द रिवर' परियोजनाओं से जल का डायवर्ज़न नहीं हो सकता है, लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि जल को तालाबों में संग्रहीत किया जा सकता है और टर्बाइन चलाने के लिये छोड़ा जा सकता है।
    • इससे डाउनस्ट्रीम प्रवाह में कुछ दैनिक भिन्नता हो सकती है और इसके परिणामस्वरूप ब्रह्मपुत्र नदी में जल प्रवाह पर प्रभाव पड़ता है तथा इस प्रकार यह क्षेत्र के जल संसाधनों को टैप करने के भारत के प्रयासों को प्रभावित करता है।
  • तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी की मुख्य धारा पर तीन जल-विद्युत परियोजनाओं को चीनी अधिकारियों द्वारा अनुमोदित किया गया है और जांगमु में एक जल-विद्युत परियोजना को अक्तूबर 2015 में चीनी अधिकारियों द्वारा पूरी तरह से चालू घोषित किया गया था।
  • भारत को लगातार चीनी गतिविधियों की निगरानी करनी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे ब्रह्मपुत्र नदी पर कोई बड़ा हस्तक्षेप न करें जिससे हमारे राष्ट्रीय हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
  • समिति ने इस तथ्य पर संतोष व्यक्त किया कि चीन ब्रह्मपुत्र और सतलुज के संबंध में हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा कर रहा है, हालाँकि ऐसा भुगतान के आधार पर हो रहा है।
    • भारत और चीन के बीच वर्तमान में कोई जल संधि नहीं है।

India-China

भूटान के साथ सहयोग:

  • "भारत और भूटान की साझा नदियों पर जल-मौसम विज्ञान व बाढ़ पूर्वानुमान नेटवर्क की स्थापना के लिये व्यापक योजना" नामक एक योजना चल रही है।
    • भारत और भूटान की सामान्य नदियों में मानस नदी, संकोश नदी आदि शामिल हैं।
  • नेटवर्क में भूटान में स्थित 32 हाइड्रो-मौसम विज्ञान/मौसम विज्ञान स्टेशन शामिल हैं और भारत के वित्तपोषण से ही भूटान की शाही सरकार द्वारा बनाए रखा गया है। इन स्टेशनों से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग भारत में बाढ़ पूर्वानुमान तैयार करने के लिये किया जाता है।
  • भारत और भूटान के बीच बाढ़ प्रबंधन पर एक संयुक्त विशेषज्ञ समूह (JGE) का गठन भूटान की दक्षिणी तलहटी और भारत के आसपास के मैदानों में बार-बार आने वाली बाढ़ तथा कटाव के संभावित कारणों व प्रभावों पर चर्चा करने, उनका आकलन करने, दोनों सरकारों को उचित एवं  पारस्परिक रूप से स्वीकार्य उपचारात्मक उपाय की सिफारिश करने के लिये किया गया है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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