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ज़मानत संबंधी प्रावधानों में सुधार

  • 30 Sep 2024
  • 15 min read

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002, निवारक निरोध कानून, अनुच्छेद 21, संवैधानिक न्यायालय, ज़मानत, केए नजीब केस, कैश बॉण्ड, ज़मानत बॉण्ड। 

मुख्य परीक्षा के लिये:

भारत में ज़मानत प्रावधानों से संबंधित चुनौतियाँ और आवश्यक सुधार। 

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने किसी अभियुक्त के कारावास को अधिक विस्तारित करने के क्रम में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 को “एक उपकरण के रूप में” उपयोग किये जाने पर चिंता जताई है।

  • न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संवैधानिक न्यायालय धन शोधन विरोधी कानून के तहत अनिश्चितकालीन पूर्व-परीक्षण निरोध की अनुमति नहीं देंगे।

PMLA और ज़मानत पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • मनमानी हिरासत नहीं: प्रथम दृष्टया आरोपी के विरुद्ध मामला होने पर भी न्यायालय मुकदमे की स्पष्ट समयसीमा के अभाव में लंबे समय तक हिरासत में रखे जाने के कारण कैदी की रिहाई के पक्ष में फैसला दे सकता है।
    • PMLA, 2002 के कड़े प्रावधानों (विशेषकर धारा 45) को आधार बनाकर अभियुक्तों को मनमाने ढंग से हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिये।
    • PMLA, 2002 की धारा 45 के अनुसार धन शोधन मामले में किसी आरोपी को ज़मानत तभी दी जा सकती है जब दो शर्तें पूरी हों।
      • व्यक्ति को न्यायालय में यह साबित करना होगा कि वह प्रथम दृष्टया निर्दोष है।
      • अभियुक्त को न्यायाधीश को यह विश्वास दिलाना होगा कि वह ज़मानत पर रहते हुए कोई अपराध नहीं करेगा।
  • ज़मानत सिद्धांतों की पुष्टि: न्यायालय ने इस सिद्धांत की पुष्टि की कि भारत के आपराधिक न्यायशास्त्र में " ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है"।
    • इसमें इस बात पर ध्यान दिया गया कि PMLA के तहत ज़मानत की उच्च सीमा से अभियुक्त की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अनिश्चित काल तक असर नहीं पड़ना चाहिये।
  • विलंबित ट्रायल पर न्यायिक चिंताएँ: इस निर्णय के तहत PMLA, 2002 या UAPA, 1967 एवं स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 (NDPS) जैसे विशेष कानूनों के तहत विलंबित ट्रायल और कठोर ज़मानत प्रावधानों के अंतर्संबंध पर प्रकाश डाला गया।
    • इसमें कहा गया कि मुकदमों का शीघ्र निपटारा आवश्यक है और इसे इन कानूनों की व्याख्या में शामिल किया जाना चाहिये।
  • ज़मानत देने का न्यायिक अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया कि कठोर ज़मानत प्रावधान संवैधानिक न्यायालयों को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने से नहीं रोकते जहाँ सुनवाई में अत्यधिक देरी हो रही हो।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने केए नजीब मामले में अपने वर्ष 2021 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें UAPA मामलों में ज़मानत के आधार के रूप में ट्रायल में अत्यधिक देरी पर प्रकाश डाला गया था।
  • मौलिक अधिकारों पर प्रभाव: मुकदमों में अत्यधिक देरी से संविधान के अनुच्छेद 21 (जिससे जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी मिलती है) के तहत व्यक्तियों को प्राप्त मूल अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है
    • बिना सुनवाई के लंबे समय तक कारावास में रखने से व्यक्तियों की स्वतंत्रता का हनन हो सकता है, उदाहरण के लिये ऐसे मामले जिनमें व्यक्तियों को वर्षों तक हिरासत में रखने के बाद उन्हें बरी कर दिया जाता है।
  • मुआवजे के लिये संभावित दावे: सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया कि गलत तरीके से कारावास में रहने वाले व्यक्तियों को अनुच्छेद 21 के तहत अपने अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर मुआवजे का हक मिल सकता है।

भारत की ज़मानत प्रणाली के संबंध में कौन सी चिंताएँ हैं?

  • विचाराधीन कैदियों का उच्च अनुपात: भारत के कारागारों में बंद 75% से अधिक कैदी विचाराधीन हैं तथा कारागारों में क्षमता से अधिक कैदी हैं।
    • यह स्थिति ज़मानत प्रणाली में प्रणालीगत अकुशलता को दर्शाती है जिसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है।
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम CBI, 2022 मामले में विचाराधीन कैदियों से संबंधित मुद्दे को पहचानने और ज़मानत देने में देश की ज़मानत प्रणाली की विफलता को स्वीकार किया।
  • 'निर्दोषता की धारणा' के सिद्धांत का कमज़ोर होना: कारागारों में विचाराधीन कैदियों की अधिकता से 'निर्दोषता की धारणा' का सिद्धांत कमज़ोर होता है।
    • निर्दोषता की धारणा के अनुसार किसी व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाएगा जब तक कि उसे कानून के अनुसार दोषी साबित न कर दिया जाए।
  • अनुभवजन्य साक्ष्य का अभाव: विचाराधीन कैदियों की जनसांख्यिकी, अपराधों की श्रेणी और ज़मानत के लिये समयसीमा, ज़मानत के लिये आवेदन करने वाले विचाराधीन कैदियों का अनुपात, ज़मानत आवेदनों की स्वीकृति या अस्वीकृति दर तथा ज़मानत अनुपालन में चुनौतियों के संबंध में जानकारी व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है। 
  • सुरक्षा उपायों का अभाव: किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी को ऐसी परिस्थिति में 'आवश्यक' माना जाता है यदि पुलिस के पास यह 'विश्वास करने का वैध कारण' हो कि न्यायालय में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये गिरफ्तारी आवश्यक है। 
    • अनेक गिरफ्तार व्यक्ति (विशेषकर समाज के वंचित वर्ग) असुरक्षित रहते हैं।
  • ज़मानत संबंधी निर्णय में चुनौतियाँ: ज़मानत देने की शक्ति काफी हद तक न्यायालय के विवेक पर आधारित है और प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करती है। 
    • अपराध की गंभीरता, अभियुक्त के चरित्र और अभियुक्त के फरार होने या साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने की संभावना के आधार पर ज़मानत देने से मना किया जाता है।
  • ज़मानत अनुपालन में चुनौतियाँ: ज़मानत शर्तों का अनुपालन करने में चुनौतियों के कारण ज़मानत मिलने के बावजूद बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदी कारागारों में ही रह रहे हैं।
    • नकद बॉण्ड, ज़मानत बॉण्ड, संपत्ति के स्वामित्व और शोधन क्षमता को प्रमाण के रूप में माने जाने से ज़मानत की शर्तें निर्धनों की रिहाई सुनिश्चित करना जटिल बना देती हैं।
  • दोषपूर्ण धारणाएँ: ज़मानत प्रणाली में ऐसी दोषपूर्ण धारणाएँ निहित हैं कि प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति के पास संपत्ति होगी या उसके संपत्ति वाले लोगों से सामाजिक संबंध होंगे। 
    • इसमें यह माना गया है कि अभियुक्त की न्यायालय में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये वित्तीय हानि का जोखिम सुनिश्चित करना आवश्यक है।

ज़मानत प्रणाली के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के क्या फैसले हैं?

  • बाबू सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 1978: सामान्यतः ज़मानत तब तक नहीं दी जानी चाहिये जब तक यह संभावना हो कि अभियुक्त फरार हो जाएगा या साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करेगा।
  • राजस्थान राज्य बनाम बालचंद केस, 1978: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि ज़मानत नियम है और जेल अपवाद है। 
    • किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने से उसके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रभाव पड़ता है और हिरासत का मुख्य उद्देश्य अभियुक्त को बिना किसी असुविधा के मुकदमे की प्रक्रिया को पूरा करना है। 
  • परवेज़ नूरदीन लोखंडवाला बनाम महाराष्ट्र राज्य मामला, 2020: इसमें कहा गया कि ज़मानत की शर्तें इच्छित उद्देश्य की तुलना में अत्यधिक नहीं होनी चाहिये।
  • सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम CBI मामला, 2022: न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सख्त ज़मानत शर्तों से अभियुक्त असंगत रूप से प्रभावित न हों।

आगे की राह

  • ज़मानत की शर्तों का सरलीकरण: ज़मानत की शर्तों का पुनर्मूल्यांकन और सरलीकरण किया जाना चाहिये ताकि उन्हें अधिक सुलभ (विशेष रूप से आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के लिये) बनाया जा सके। 
    • उदाहरण के लिये नकदी और ज़मानत बॉण्ड  के विकल्प के रूप में सामुदायिक सेवा को आधार बनाना।
  • मनमाने ढंग से की जाने वाली गिरफ्तारी के विरुद्ध सुरक्षा उपाय: मनमाने ढंग से की जाने वाली गिरफ्तारी के विरुद्ध सुरक्षा (विशेष रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये) हेतु सख्त दिशा-निर्देश एवं सुरक्षा उपाय लागू किये जाने चाहिये।
    • पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के लिये स्पष्ट औचित्य बताना चाहिये।
  • समुदाय-आधारित पर्यवेक्षण कार्यक्रम: कारावास के विकल्प के रूप में समुदाय-आधारित पर्यवेक्षण कार्यक्रम  विकसित करने चाहिये।
    • इन कार्यक्रमों में केवल ज़मानत पर निर्भर रहने के बजाय, स्थानीय संगठनों या सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के माध्यम से विचाराधीन कैदियों की निगरानी किया जाना, शामिल हो सकता है।
  • छोटे अपराधियों के लिये विकल्प: मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे छोटे अपराधियों को सुधारगृहों में रहने का आदेश दिया जा सकता है, जहाँ वे स्वयंसेवी कार्य जैसे उपयोगी श्रम में संलग्न हो सकते हैं।
  • शीघ्र सुनवाई: न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अमिताव रॉय की अध्यक्षता वाली जेल सुधार पर सर्वोच्च न्यायालय की समिति ने इस बात पर बल दिया कि जेलों में भीड़भाड़ की समस्या से निपटने के लिये त्वरित सुनवाई एक प्रभावी साधन हो सकती है।
  • पर्याप्त बुनियादी ढाँचा: विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट “ बेहतर बुनियादी ढाँचे के माध्यम से न्याय प्रदान करने का मूल्यांकन करने संबंधी अनुभवजन्य अध्ययन” में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि न्यायालय कक्षों में वृद्धि, फर्नीचर की उपलब्धता, डिजिटल बुनियादी ढाँचे और कुशल जनशक्ति से विचाराधीन कैदियों की संख्या में कमी आ सकती है।
  • स्पष्ट कानूनी प्रावधान: स्पष्ट रूप से परिभाषित कानून से व्यक्तियों को अधिकारों एवं ज़िम्मेदारियों को समझने में मदद मिलती है, जिससे गलतफहमी के कारण लंबे समय तक हिरासत में रहने की संभावना में कमी आती है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में ज़मानत से संबंधित चुनौतियों का परीक्षण करते हुए अधिक न्यायसंगत ज़मानत प्रावधान ढाँचे हेतु उपाय बताइये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. जब कोई कैदी पर्याप्त आधार प्रस्तुत करता है तो ऐसे कैदी को पैरोल मना नहीं किया जा सकता क्योंकि वह उसके अधिकार का मामला बन जाता है।
  2.  कैदी को पैरोल पर छोड़ने के लिये राज्य सरकारों के अपने नियम हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स

Q. चर्चा कीजिये कि उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में किस प्रकार योगदान करते हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिये विस्तृत उपाय सुझाइये। (2021)

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