निजी संपत्ति का पुनर्वितरण | 03 May 2024

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 39, 31, अनुच्छेद 39(b), सर्वोच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय की सांविधानिक पीठ, राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व, केशवानंद भारती मामला, 1973

मेन्स के लिये:

निजी संपत्ति का अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व बनाम मौलिक अधिकार, सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा निजी स्वामित्त्व वाली संपत्तियों के अधिग्रहण और पुनर्वितरण की संभाव्यताओं संबंधी विभिन्न याचिकाओं द्वारा उठाए गए विधिक प्रश्नों पर सुनवाई शुरू की है।

  • न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न उठाया गया कि क्या संविधान के अनुच्छेद 39 (b), जोकि राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (DPSP) का हिस्सा है, के तहत निजी संपत्तियों को "समुदाय के भौतिक संसाधन" माना जा सकता है। 

पूरा मामला क्या है?

  • यह मामला मुंबई में 'उपकरित' संपत्तियों (वे संपत्तियाँ हैं जिनके लिये उनके मालिक द्वारा MHADA के अध्याय VIII के तहत उपकर अथवा कर का भुगतान किया जाता है) के मालिकों द्वारा महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट एक्ट (MHADA), 1976 में वर्ष 1986 के संशोधन को चुनौती देने के आलोक में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हुआ है।
  • MHADA को वर्ष 1976 में पुरानी, जीर्ण असस्था वाले इमारतों, जो बीतते समय के साथ खतरनाक होती जा रही थीं, में रहने वाले (गरीब) किरायेदारों की समस्या के समाधान के लिये अधिनियमित गया था।
    • MHADA ने मरम्मत और पुनर्निर्माण परियोजनाओं की देखरेख के लिये मुंबई बिल्डिंग मरम्मत एवं पुनर्निर्माण बोर्ड (MBRRB) को भुगतान करने हेतु इमारतों में रहने वालों पर एक उपकर आरोपित किया।
    • इस अधिनियम को वर्ष 1986 में अनुच्छेद 39(b) को अधिनियमित करके संशोधित किया गया था, जिसके अनुसार-
      • इसका उद्देश्य भूमि और इमारतों के अधिग्रहण संबंधी योजनाओं को क्रियान्वित करना है, ताकि उन्हें "ज़रूरतमंद व्यक्तियों" तथा "इस प्रकार की भूमि अथवा इमारतों के मालिकों" को हस्तांतरित किया जा सके।
      • यह अधिनियम 70% मालिकों द्वारा अनुरोध की स्थिति में राज्य सरकार को उपकरित भवनों (और जिस भूमि पर वे बने हैं) का अधिग्रहण करने की अनुमति देने का प्रावधान करता है।
    • समता के अधिकार का उल्लंघन: मुंबई में संपत्ति मालिकों के संघ ने MHADA को बॉम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए दावा किया कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत संपत्ति मालिकों के समता के अधिकार का उल्लंघन है।
    • राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों को छूट: न्यायालय ने निर्णय दिया कि DPSP के समर्थन में पारित कानूनों का इस आधार पर विरोध नहीं किया जा सकता कि वे संविधान के अनुच्छेद 31c द्वारा प्रदत्त समता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
    • समुदाय के भौतिक संसाधनों की व्याख्या: दिसंबर 1992 में एसोसिएशन ने सर्वोच्च न्यायालय में इस निर्णय के विरुद्ध अपील दायर की।
    • इस प्रकार, शीर्ष न्यायालय के समक्ष मुख्य मुद्दा यह था कि क्या निजी स्वामित्त्व वाले संसाधन, जिनमें उपकरित इमारतें शामिल हैं, अनुच्छेद 39 (b) के तहत "समुदाय के भौतिक संसाधनों" के अंतर्गत आते हैं अथवा नहीं।

निजी संपत्ति और उसके वितरण संबंधी विधिक दृष्टिकोण क्या है?

  • संवैधानिक दृष्टिकोण:
    • अनुच्छेद 19(1)(f) और अनुच्छेद 31: यह अनुच्छेद संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देता है।
    • हालाँकि, वर्ष 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम द्वारा इस अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया और अनुच्छेद 300A के तहत इसे संवैधानिक अधिकार के रूप में सूचीबद्ध किया गया
    • अनुच्छेद 300A: इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य द्वारा किसी व्यक्ति को उसकी निजी संपत्ति से वंचित करने के लिये उचित प्रक्रिया एवं विधि के अधिकार का पालन करना होगा।
    • 9वीं अनुसूची: इसमें विशिष्ट विधियों को सूचीबद्ध किया गया है जिन्हें न्यायालयों में इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है कि वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, जिसमें (एक बार) संपत्ति का मौलिक अधिकार भी शामिल है।
    • इस अनुसूची में भूमि सुधार (ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन) जैसे कानून शामिल हैं।
    • अनुच्छेद 39: इसमें राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (संविधान के भाग IV के तहत) को सूचीबद्ध किया गया है, जो विधियों के अधिनियमन के लिये मार्गदर्शक सिद्धांत हैं, किंतु इन्हें किसी भी न्यायालय में सीधे लागू नहीं किया जा सकता है।
      • DPSP का उद्देश्य लोगों के लिये सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना और भारत की एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करना है।
    • अनुच्छेद 39(b) के अनुसार "समुदाय के भौतिक संसाधनों के स्वामित्त्व और नियंत्रण को जनता की भलाई को ध्यान में रखते हुए वितरित करने की दिशा में नीति निर्धारित करना राज्य का कर्त्तव्य है।
    • अनुच्छेद 39(c) यह सुनिश्चित करता है कि धन और उत्पादन साधनों का सर्वसाधारण के लिये अहितकारी "संकेंद्रण" न हो।
    • अनुच्छेद 31C:
      • कुछ निदेशक सिद्धांतों को लागू करने वाले क़ानून अनुच्छेद 31C द्वारा संरक्षित हैं।
      • अनुच्छेद 31C के अनुसार, इन विशेष निर्देशक सिद्धांतों (अनुच्छेद 39(b) और 39(c)) को समता के अधिकार (अनुच्छेद 14) अथवा अनुच्छेद 19 के तहत अधिकारों (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने का अधिकार) का प्रयोग करके चुनौती नहीं दी जा सकती है।
      • केशवानंद भारती मामले, 1973 में, न्यायालय ने अनुच्छेद 31C की वैधता को बरकरार रखा किंतु इसे न्यायिक समीक्षा के अधीन बना दिया।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 39(b) की व्याख्या:
    • कर्नाटक राज्य बनाम श्री रंगनाथ रेड्डी मामला, 1977:
      • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि निजी स्वामित्त्व वाले संसाधन "समुदाय के भौतिक संसाधनों" के दायरे के अंतर्गत नहीं आते हैं।
      • न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने इस पर असहमति जताते हुए राय दी कि निजी स्वामित्त्व वाले संसाधनों को भी समुदाय का भौतिक संसाधन माना जाना चाहिये।
      • अनुच्छेद 39 (b) के दायरे से निजी संसाधनों के स्वामित्त्व को बाहर करना समाजवादी तरीके से पुनर्वितरण के इसके उद्देश्य को अस्पष्ट (छिपाना) रखने के समान है।
    • संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल मामला, 1983:
      • सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति अय्यर की राय की पुष्टि की और कोयला खदानों तथा उनके संबंधित कोक ओवन संयंत्रों का राष्ट्रीयकरण करने वाले केंद्रीय कानून को बरकरार रखा।
      • यह निर्णय लिया गया कि निजी स्वामित्त्व वाले संसाधनों को भी समुदाय का भौतिक संसाधन माना जाना चाहिये।
    • मफतलाल इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामला, 1996: 
      • सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 39(b) की व्याख्या के लिये 9 न्यायाधीशों की सांविधानिक पीठ की सहायता ली।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग मामले में जस्टिस अय्यर और पीठ द्वारा पेश की गई अनुच्छेद 39(b) की व्याख्या को आधार बनाया।
      • न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्राकृतिक अथवा भौतिक संसाधन और चल अथवा अचल संपत्ति "अनुच्छेद 39 (b) में वर्णित 'भौतिक संसाधन' के अंतर्गत शामिल होंगे तथा इसमें भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के सभी निजी व सार्वजनिक स्रोत शामिल होंगे, न कि ये केवल सार्वजनिक संपत्ति तक ही सीमित रहेंगे।”

राज्य के नीति निदेशक तत्त्व (DPSP) क्या हैं?

  • परिचय:
    • राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों (DPSP) का उद्देश्य लोगों के लिये सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना और भारत की एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापना करना है।
  • सांविधानिक प्रावधान:
    • भारत के संविधान का भाग IV (अनुच्छेद 36-51) DPSP से संबंधित है।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 37 निदेशक सिद्धांतों के अनुप्रयोग से संबंधित है।
  • पृष्ठभूमि:
    • भारतीय संविधान में निहित निदेशक सिद्धांत आयरिश संविधान से लिये गए हैं।
    • इन नीतियों के प्रेरक तत्त्व मनुष्य के अधिकारों और अमेरिकी उपनिवेशों द्वारा स्वतंत्रता की उद्घोषणा के साथ-साथ सर्वोदय की गांधीवादी अवधारणा हैं।
  • उद्देश्य:
    • नियंत्रण और संतुलन: इसका लक्ष्य सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना है, संविधान निर्माताओं के अनुसार, भारत के राज्यों को इस दिशा में प्रयास करते रहना चाहिये।
      • इन्हीं विचारों के अनुरूप उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिये भारत की विधायिकाओं, कार्यकारियों और प्रशासकों के लिये एक आचार संहिता निर्धारित की।
    • विधिक कार्रवाइयाँ और सरकारी नीतियाँ: DPSP लोगों की आकांक्षाओं, उद्देश्यों तथा आदर्शों का प्रतीक हैं जिन्हें केंद्र और राज्य सरकारों को एवं नीतियाँ बनाते समय ध्यान में रखना चाहिये।
    • सामाजिक न्याय की विचारधारा: यह भारतीय संविधान में निहित सामाजिक न्याय की विचारधारा को प्रतिबिंबित करता है, हालाँकि ये किसी भी न्यायालय द्वारा विधिक रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, फिर भी वे देश की शासन व्यवस्था का मूलाधार हैं।
  • वर्गीकरण: 

DPSP_Classification

संपत्ति के पुनर्वितरण से संबंधित तर्क क्या हैं?

पक्ष में तर्क:

  • सामाजिक न्याय: यह सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने वाले संविधान की प्रस्तावना के सिद्धांतों के अनुरूप है।
  • अप्रतिबंधित संपत्ति का अधिकार संपत्ति वितरण संबंधी असमानता को बढ़ा सकता है। अमीर लोगों के पास संपत्तियों का बड़ी मात्रा में संकेंद्रण हो सकता है, जिससे दूसरों के लिये इसकी उपलब्धता कम हो सकती है। यह सामाजिक शांति और आर्थिक गतिशीलता को बाधित कर सकता है, इसलिये संपत्ति का पुनर्वितरण आवश्यक है।
    • उदाहरण: नक्सल विद्रोह और उसके बाद नक्सली आंदोलन मुख्य रूप से भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक एवं सामाजिक असमानता के कारण उत्पन्न हुआ।
  • गरीबी उन्मूलन: पुनर्वितरण कार्यक्रम जरूरतमंद लोगों को वित्तीय सहायता, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य आवश्यक सेवाएँ प्रदान करके गरीबी को कम करने में मदद कर सकते हैं।
  • सामाजिक मुद्दों का समाधान: संपत्ति का बुद्धिमतापूर्ण पुनर्वितरण सरकार को गरीबी उन्मूलन, बेघर लोगों की मदद करने तथा पर्यावरणीय क्षरण जैसे सामाजिक मुद्दों का समाधान करने में सक्षम बनाता है।
  • सामाजिक एकजुटता: आर्थिक असमानताओं को कम करने से विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के बीच अंतर को कम करके अधिक सामाजिक एकजुटता व सौहार्द को बढ़ावा दिया जा सकता है।

विपक्ष में तर्क:

  • कार्य को हतोत्साहन: 
    • लोगों को विश्वास जो जाना कि सरकार द्वारा पुनर्वितरण के माध्यम से विभिन्न सुविधाएँ प्रदान कर दी जाएँगी, यह लोगों को कड़ी मेहनत करने और जोखिम लेने से हतोत्साहित करता है।
    • यह संपत्ति सृजन और उद्यमशीलता को हतोत्साहित कर सकता है, जिससे आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ सकती है।
  • बाज़ार क्षमता: पुनर्वितरण का बाज़ार तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और यह संसाधन आवंटन व्यवस्था को विकृत कर सकता है।
  • वैयक्तिक स्वतंत्रता: यह व्यक्तियों के एक समूह से जबरन धन लेकर दूसरे को हस्तांतरित करके वैयक्तिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है।
  • प्रशासनिक प्रभाव: पुनर्वितरण कार्यक्रमों को लागू करना और प्रबंधित करना एक अन्य कठिन कार्य है, जिसमें नौकरशाही के दुरुपयोग व भ्रष्टाचार की भी काफी संभावना बनती है।
  • बीते समय में पुनर्वितरण संबंधी असफल प्रयास:
    • कई देशों-समाजों में संपत्ति के स्वामित्त्व का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व है। यह अस्मिता, विरासत तथा पारिवारिक विरासत की धारणाओं को दर्शाता है।
    • इसके अतिरिक्त, भूमि सुधार जैसे पिछले पुनर्वितरण प्रयास केरल और पश्चिम बंगाल को छोड़कर अधिकांश राज्यों में विफल रहे हैं।

आगे की राह 

  • सशर्त संपत्ति अधिकार: ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये जहाँ संपत्ति का अधिकार इसके उत्तरदायीपूर्ण उपयोग के संबंध में शर्तों के अनुपालन पर आधारित हो।
    • सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि संपत्ति का उपयोग कैसे किया जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह पर्यावरण को हानि नहीं पहुँचाती है या दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है।
  • सामाजिक न्याय पर ध्यान: पूर्ण संपत्ति अधिकारों के बजाय, सामाजिक न्याय को प्राथमिकता देने और यह सुनिश्चित करने के लिये प्रयास किये जाने चाहिये कि सभी की आवास एवं भूमि जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुँच हो।
    • इसमें धन पुनर्वितरण या संपत्ति के स्वामित्व संबंधी नियम शामिल हो सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

अनुच्छेद 39(b) के उद्देश्यों की प्राप्ति में आने वाली चुनौतियों और बाधाओं की जाँच कीजिये तथा उन्हें दूर करने के लिये संभावित रणनीतियों का सुझाव दीजियेI

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न 1. भारत के संविधान का कौन-सा भाग कल्याणकारी राज्य के आदर्श की घोषणा करता है? (2020)

(a) राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(b) मूल अधिकार
(c) उद्देशिका
(d) सातवीं अनुसूची

उत्तर: (a)


प्रश्न 2. मूल अधिकारों के अतिरिक्त, भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा 1948 (Universal Declaration of Human Rights 1948) के सिद्धांतों एवं प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)

  1. उद्देशिका
  2. राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
  3. मूल कर्त्तव्य

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न. 'संवैधानिक नैतिकता' की जड़ संविधान में ही निहित है और इसके तात्विक फलकों पर आधारित है।  'संवैधानिक नैतिकता' के सिद्धांत की प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की सहायता से विवेचना कीजियेI (2021)