विजयराघवन पैनल की सिफारिशें | 22 Jan 2024

प्रिलिम्स के लिये:

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, संसदीय स्थायी समिति, सीएजी रिपोर्ट, अनुसंधान एवं विकास, ड्रोन विकास, हल्के लड़ाकू विमान तेजस में भारत का निवेश।

मेन्स के लिये:

DRDO से संबंधित प्रमुख मुद्दे, विजयराघवन समिति की प्रमुख सिफारिशें।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

सरकार द्वारा स्थापित 9 सदस्यीय विजयराघवन पैनल ने हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के कामकाज के बारे में चिंताओं को संबोधित करते हुए एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

विजयराघवन समिति की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?

  • पृष्ठभूमि: 
    • रक्षा संबंधी रिपोर्ट पर हाल ही में संसदीय स्थायी समिति (PSC) ने DRDO की 55 मिशन मोड परियोजनाओं में से 23 में अत्यधिक देरी का सामना करने पर चिंता व्यक्त की।
    • सीएजी रिपोर्ट, (दिसंबर 2022) ने संकेत दिया कि जाँच की गई परियोजनाओं में से 67% (178 में से 119) प्रस्तावित समय-सीमा का पालन करने में विफल रहीं।
      • मुख्य रूप से डिज़ाइन परिवर्तन, उपयोगकर्त्ता परीक्षण में देरी एवं आपूर्ति आदेश जैसी समस्याओं के कारण कई एक्सटेंशन का हवाला दिया गया था।
  • विजयराघवन समिति की प्रमुख सिफारिशें:
    • अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर फिर से ध्यान केंद्रित करना: सुझाव दिया गया कि DRDO को रक्षा के लिये अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित करने के अपने मूल लक्ष्य पर वापस लौटना चाहिये।
      • उत्पादीकरण, उत्पादन चक्र एवं उत्पाद प्रबंधन में स्वयं को शामिल न करने की सलाह दी गई, ये कार्य निजी क्षेत्र के लिये अधिक उपयुक्त माने गए।
    • फोकस और विशेषज्ञता क्षेत्र: इस बात पर ज़ोर दिया गया कि DRDO को विविध प्रौद्योगिकियों में संलग्न होने के अतिरिक्त विशेषज्ञता के विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिये।
      • ड्रोन विकास में DRDO की भागीदारी की आवश्यकता पर सवाल उठाया गया, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञता को मान्यता देने की आवश्यकता का प्रस्ताव दिया गया।
    • रक्षा प्रौद्योगिकी परिषद (Defence Technology Council- DTC) की भूमिका: विशिष्ट रक्षा प्रौद्योगिकियों के लिये उपयुक्त अभिकर्त्ताओं की पहचान करने में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में रक्षा प्रौद्योगिकी परिषद की महत्त्वपूर्ण भूमिका की वकालत की गई।
      •  DTC को रक्षा प्रौद्योगिकी विकास की दिशा को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिये।
    • समर्पित विभाग का निर्माण (Creation of a Dedicated Department): रक्षा मंत्रालय के तहत रक्षा विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार विभाग की स्थापना का प्रस्ताव।
      • सिफारिश की गई कि प्रस्तावित विभाग को रक्षा प्रौद्योगिकी परिषद के सचिवालय के रूप में कार्य करना चाहिये।

नोट: DRDO भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय की अनुसंधान एवं विकास शाखा है, जिसका लक्ष्य अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों के साथ भारत को सशक्त बनाना और महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता हासिल करना है। इसकी स्थापना वर्ष 1958 में भारतीय सेना और तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय के मौजूदा प्रतिष्ठानों को मिलाकर की गई थी।

DRDO से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • परियोजना की समय-सीमा और लागत में वृद्धि: DRDO परियोजनाएँ अनुमानित समय-सीमा और बजट से काफी अधिक अंतर के लिये प्रसिद्ध हैं।
    • इससे महत्त्वपूर्ण रक्षा क्षमताओं में देरी होती है और दक्षता और संसाधन आवंटन के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
    • इसके उदाहरणों में हल्का लड़ाकू विमान तेजस शामिल है, जिसे विकसित करने में 30 साल से अधिक का समय लगा।
  • सशस्त्र बलों के साथ तालमेल का अभाव: DRDO की आंतरिक निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ नवाचार और अनुकूलन में बाधा डालती हैं।
    • इसके अतिरिक्त आवश्यकताओं को परिभाषित करने और फीडबैक को शामिल करने के मामले में सशस्त्र बलों के साथ सहज सहयोग की कमी के कारण प्रौद्योगिकियाँ पूरी तरह से परिचालन आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाती हैं
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा निजी क्षेत्र एकीकरण: बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिये DRDO द्वारा निजी उद्योगों तक विकसित प्रौद्योगिकियों का कुशल हस्तांतरण अभी भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य बना हुआ है।
    • इससे स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी के शीघ्र नियोजन तथा व्यावसायीकरण में बाधा आती है जिससे विदेशी आयात पर निर्भरता बढ़ जाती है।
  • पारदर्शिता तथा जन की धारणा: DRDO की गतिविधियों तथा उपलब्धियों के बारे में सीमित सार्वजनिक जागरूकता एवं पारदर्शिता नकारात्मक धारणा व आलोचना को जन्म देती है।

आगे की राह

  • सुदृढ़ परियोजना प्रबंधन: DRDO को स्पष्ट लक्ष्य, संसाधन आवंटन एवं जवाबदेही उपायों सहित सख्त परियोजना प्रबंधन पद्धतियों को लागू करना चाहिये।
  • सशस्त्र बलों के साथ बेहतर सहयोग: विकास के चरणों में सशस्त्र बलों के कर्मियों को शामिल करते हुए संचार और फीडबैक के आदान-प्रदान के लिये समर्पित चैनल स्थापित करना।
  • सुव्यवस्थित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: निजी कंपनियों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये स्पष्ट प्रोटोकॉल के साथ प्रोत्साहन देकर सार्वजनिक-निजी-भागीदारी को बढ़ावा देना।
  • प्रयोग व मुक्त नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देना: DRDO को विविध विशेषज्ञता का लाभ उठाने तथा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये विश्वविद्यालयों, स्टार्टअप एवं अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ सहयोग करना चाहिये।
  • सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना: DRDO को मीडिया के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये, सार्वजनिक आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करने चाहिये तथा राष्ट्रीय सुरक्षा में DRDO के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये सफलता की कहानियाँ साझा करनी चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला "टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD)" क्या है? (2018)

(a) एक इज़रायली रडार प्रणाली
(b) भारत का स्वदेशी मिसाइल रोधी कार्यक्रम
(c) एक अमेरिकी मिसाइल रोधी प्रणाली
(d) जापान और दक्षिण कोरिया के मध्य एक रक्षा सहयोग

उत्तर: (c)