भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की मान्यता | 12 Jan 2022
प्रिलिम्स के लिये:ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और इसके प्रावधान मेन्स के लिये:भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा से संबंधित मुद्दे, इस दिशा में उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ट्रांसजेंडर कैदियों की गोपनीयता, गरिमा सुनिश्चित करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के कारागार प्रमुखों को दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2020 में देश भर की जेलों में 70 ट्रांसजेंडर कैदी थे।
- यह एडवाइजरी ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के आलोक में जारी की गई थी, जो जनवरी 2020 से लागू हुई थी।
प्रमुख बिंदु
- जेलों का बुनियादी ढाँचा:
- निजता के अधिकार और कैदियों की गरिमा को बनाए रखने के लिये ट्रांसमेन और ट्रांस वुमन के लिये अलग-अलग वार्ड और अलग शौचालय एवं शॉवर की सुविधा।
- आत्म-पहचान का सम्मान:
- प्रवेश प्रक्रियाओं, चिकित्सा परीक्षण, तलाशी, कपड़े, पुलिस अनुरक्षक की मांग, जेलों के भीतर उपचार और देखभाल के दौरान ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की आत्म-पहचान का हर समय सम्मान किया जाना चाहिये।
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति कानून के तहत ट्रांसजेंडर पहचान प्रमाण पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक करना।
- जाँच प्रोटोकॉल:
- जाँच उनके पसंदीदा लिंग के व्यक्ति या किसी प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवर या खोज करने में प्रशिक्षित एक पैरामेडिक द्वारा की जानी चाहिये।
- तलाशी करने वाले व्यक्ति को खोजे जा रहे व्यक्ति की सुरक्षा, गोपनीयता और गरिमा सुनिश्चित करनी चाहिये।
- जेल में प्रवेश:
- पुरुष और महिला के अलावा अन्य श्रेणी के रूप में "ट्रांसजेंडर" को शामिल करने के लिये जेल प्रवेश रजिस्टर को उपयुक्त रूप से संशोधित किया जा सकता है।
- इसी तरह का प्रावधान कारागार प्रबंधन प्रणाली में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बनाए रखने के लिये किया जा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच:
- ट्रांसजेंडर कैदियों को लैंगिक पहचान के आधार पर बिना किसी भेदभाव के स्वास्थ्य सेवा का समान अधिकार होना चाहिये।
- बाहरी दुनिया के साथ संचार:
- उन्हें परिवीक्षा, कल्याण या पुनर्वास अधिकारियों द्वारा अपने परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, दोस्तों और कानूनी सलाहकारों व देखभाल के बाद की योजना पर बातचीत करने का अवसर दिया जाना चाहिये।
- कारागार कार्मिकों का प्रशिक्षण और संवेदीकरण:
- यह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये लिंग पहचान, मानवाधिकार, यौन अभिविन्यास और कानूनी ढाँचे की समझ विकसित करने हेतु किया जाना चाहिये।
- इसी तरह की जागरूकता का प्रसार अन्य बंदियों में भी किया जाना चाहिये।
ट्रांसजेंडर से संबंधित प्रमुख पहलें
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम, 2019:
- यह अधिनियम ट्रांसजेंडर व्यक्ति को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जिसका लिंग जन्म के समय दिये गए लिंग से मेल नहीं खाता है। इसमें ट्रांसमेन और ट्रांस-वीमेन, इंटरसेक्स भिन्नता वाले व्यक्ति, लिंग-क्वीर व सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति जैसे कि किन्नर आदि शामिल हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
- राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) बनाम भारत संघ, 2014: सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडर लोगों को ‘थर्ड जेंडर' घोषित किया है।
- भारतीय दंड संहिता (2018) की धारा 377 के प्रावधानों की समाप्ति: सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
- ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020:
- केंद्र सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत नियम बनाए हैं।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये ‘राष्ट्रीय पोर्टल’ ‘ट्रांसजेंडर व्यक्तिय (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020’ के अनुरूप शुरू किया गया था।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये ‘आश्रय गृह योजना’:
- ज़रूरतमंद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सुरक्षित आश्रय प्रदान करने के लिये सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय उनके लिये 'गरिमा गृह' नामक आश्रय गृह स्थापित कर रहा है।
जेल अधिनियम और ट्रांसपर्सन
- भारत में कारागार अधिनियम, 1894, कारागारों के प्रशासन को विनियमित करने वाला केंद्रीय कानून है।
- यह अधिनियम मुख्य रूप से दीवानी कानून के तहत दोषी ठहराए गए कैदियों को आपराधिक कानून के तहत दोषी ठहराए गए कैदियों से अलग करता है।
- दुर्भाग्य से यह अधिनियम यौन अभिविन्यास और लिंग पहचान (SOGI) के आधार पर यौन अल्पसंख्यकों को कैदियों के एक अलग वर्ग के रूप में भी मान्यता नहीं देता है।
- यह केवल महिलाओं, युवा अपराधियों, विचाराधीन कैदियों, दोषियों, सिविल कैदियों, बंदियों और उच्च सुरक्षा वाले कैदियों जैसी श्रेणियों में कैदियों का वर्गीकरण करता है।
- ‘राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण’ (NALSA) का निर्णय अनुच्छेद-14, 15 और 21 के तहत ट्रांसपर्सन को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करते हुए राज्यों को उनके कानूनी और सामाजिक-आर्थिक अधिकारों पर नीतियाँ बनाने का निर्देश देता है।
- यह ट्रांस कैदियों पर भी लागू होता है, क्योंकि जेल और उनका प्रशासन राज्य का विषय है।
- भले ही नालसा के फैसले में दिये गए निर्देश देश के कानून का गठन करते हैं, फिर भी वर्तमान कानूनों में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
- हालाँकि जेल अधिनियम, जेल अधिकारियों को उन प्रक्रियाओं का पालन करने की अनुमति देता है जो सख्ती से लिंग-द्विआधारी हैं।
- ये प्रक्रियाएँ न केवल कानून की वैधता को चुनौती देती हैं, बल्कि जेलों के अंदर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर एक तरह की यातना और अपमानजनक व्यवहार को भी बढ़ावा देती हैं।
- यह सब कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) द्वारा 'लॉस्ट आइडेंटिटी: ट्रांसजेंडर पर्सन्स इनसाइड इंडियन प्रिज़न्स' शीर्षक वाली एक रिपोर्ट से प्रमाणित होता है।
- यह रिपोर्ट भारतीय जेलों में बंद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामने आने वाले मुद्दों पर प्रकाश डालती है।
आगे की राह:
- औपनिवेशिक जेल अधिनियम अप्रचलित हो गया है और यह संवैधानिक नैतिकता की कसौटी पर विफल है जो कि एक बहुलवादी और समावेशी समाज की शुरूआत करता है।
- चूँकि संवैधानिक नैतिकता एक ऐसी चीज़ है जिसे कानून की प्रकृति और लोगों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया जाना चाहिये, वर्तमान कानूनों में यौन अल्पसंख्यकों के अधिकारों के ऐसे प्रगतिशील दृष्टिकोण की कमी है।
- यौन अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से ट्रांसजेंडर कैदियों के संदर्भ में सुधारों को संबोधित करने के लिये ज़गरूकता और दस्तावेज़ीकरण दो महत्त्वपूर्ण उपकरण हैं।
- इस प्रकार CHRI उस प्रक्रिया में एक कदम है जो ट्रांसजेंडर कैदियों के इलाज़ के लिये लिंग आधारित दृष्टिकोण की वकालत करता है।
- CHRI की सिफारिशों को केंद्र सरकार द्वारा ट्रांसजेंडर कैदियों की विशेष ज़रूरतों पर एक 'मॉडल पाॅलिसी' लाने के लिये ट्रांस समुदाय के सदस्यों के साथ परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से नालसा के फैसले के जनादेश का सम्मान करने हेतु विचार किया जाना चाहिये।