भारत में अवैतनिक कार्य के आर्थिक मूल्य की पहचान | 05 Nov 2024

प्रिलिम्स के लिये:

अवैतनिक कार्य, देखभाल अर्थव्यवस्था, सकल घरेलू उत्पाद, सतत् विकास लक्ष्य, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स के लिये:

अवैतनिक कार्य और लैंगिक समानता, अवैतनिक कार्य का आर्थिक प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में एक शोध-पत्र में अवैतनिक कार्य के आर्थिक मूल्य पर प्रकाश डाला गया है, विशेष रूप से महिलाओं द्वारा तथा उत्पादकता माप में मान्यता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

  • एक हालिया अध्ययन में अवैतनिक श्रम, विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किये जाने वाले श्रम के आर्थिक मूल्य की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है साथ ही उत्पादकता के मापन की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया गया है।

अवैतनिक कार्य क्या है?

  • अवैतनिक कार्य से तात्पर्य उन गतिविधियों से है जिनमें व्यक्ति, विशेषकर महिलाएँ, बिना किसी मौद्रिक पारिश्रमिक के संलग्न होती हैं।
    • महिलाओं का अवैतनिक श्रम, जिसमें देखभाल कार्य, पालन-पोषण और घरेलू ज़िम्मेदारियाँ  शामिल हैं, आर्थिक रूप से काफी हद तक अदृश्य रहता है या उनकी पहचान नहीं की जाती है।
  • गतिविधियों के प्रकार:
    • घरेलू कार्य: सफाई, खाना पकाना और बच्चों का पालन-पोषण।
    • देखभाल कार्य: वृद्ध एवं बीमार व्यक्तियों सहित परिवार के सदस्यों की देखभाल करना।
    • सामुदायिक सेवाएँ: बिना वेतन के सामुदायिक गतिविधियों में स्वयंसेवा करना।
    • निर्वाह उत्पादन: व्यक्तिगत उपयोग के लिये खेती या शिल्प कार्यों में संलग्न होना।
  • आर्थिक योगदान: विकासशील देशों में अवैतनिक श्रम अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देता है तथा प्रायः सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में इसका बड़ा हिस्सा होता है।
    • यह आवश्यक सेवाएँ प्रदान करके श्रम बल को समर्थन प्रदान करता है, जिससे अन्य लोग भी वेतनभोगी कार्य में भाग लेने में सक्षम हो जाते हैं।
  • लैंगिक असमानताएँ और सीमित अवसर: सामाजिक मानदंडों के कारण महिलाओं को असमान रूप से अवैतनिक कार्यों का बोझ उठाना पड़ता है, जिससे शिक्षा, कौशल विकास और सवेतन रोज़गार तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है, जो असमानता के चक्र को मज़बूत करता है एवं आर्थिक स्वतंत्रता में बाधा डालता है।
  • अवैतनिक कार्य का महत्त्व: अवैतनिक कार्य को महत्त्व देने से लैंगिक असमानताओं के अंतर को कम करने और श्रम ज़िम्मेदारियों के निष्पक्ष वितरण को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
    • राष्ट्रीय खातों में अवैतनिक कार्य को शामिल करना सतत् विकास के लक्ष्यों, विशेष रूप से लैंगिक समानता प्राप्त करने (जैसा कि संयुक्त राष्ट्र (UN) सतत् विकास लक्ष्यों (SGD) में रेखांकित किया गया है), के साथ संरेखित है।

SGD 5:

  • संयुक्त राष्ट्र का सतत् विकास लक्ष्य 5 लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण पर केंद्रित हैतथा  SGD लक्ष्य 5.4 का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्य को मान्यता और महत्त्व देना।

अवैतनिक कार्य पर अध्ययन के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • अवैतनिक कार्य का परिमाणन: लेखकों ने अवैतनिक घरेलू कार्य के आर्थिक मूल्य को मापने के लिये, सितंबर, 2019 से मार्च 2023 तक 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को कवर करते हुए, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण (CPHS) के आंकड़ों का उपयोग किया।
    • निष्कर्ष बताते हैं कि श्रम बल में शामिल न होने वाली महिलाएँ प्रतिदिन अवैतनिक घरेलू कार्यों में 7 घंटे से अधिक समय व्यतीत करती हैं, जबकि कार्यरत महिलाएँ लगभग 5.8 घंटे कार्य करती हैं। 
      • इसके विपरीत, पुरुषों का योगदान काफी कम है, बेरोज़गार पुरुषों के लिये यह औसतन प्रतिदिन 4 घंटे से कम हैतथा  कार्यरत पुरुषों के लिये यह 2.7 घंटे है।
      • यह तीव्र विरोधाभास महिलाओं द्वारा वहन किये जाने वाले अवैतनिक श्रम के महत्त्वपूर्ण बोझ को रेखांकित करता है। 
  • मूल्यांकन विधियाँ: इस अध्ययन में दो इनपुट-आधारित मूल्यांकन विधियों का उपयोग किया गया है:
    • अवसर लागत (GOC): इस विधि में अवैतनिक श्रम के मूल्य की गणना उस मज़दूरी के आधार पर की जाती है जिसमे अवैतनिक कार्य करने के कारण लोगों को जो मज़दूरी का नुकसान होता है।
    • प्रतिस्थापन लागत (RCM): किराये पर लिये गए बाज़ार कर्मचारी इन घरेलू कामों को पूरा कर सकते हैं, इस विधि के तहत बाज़ार में तुलनीय भूमिकाओं के लिये प्रचलित दरों के आधार पर मूल्य आवंटित करके मौद्रिक मूल्य की गणना की जाती है।
    • मूल्यांकन से निष्कर्ष: वर्ष 2019-20 के लिये GOC पद्धति का उपयोग करते हुए अवैतनिक घरेलू कार्य का अनुमानित मूल्य 49.5 लाख करोड़ रुपए तथा RCM पद्धति के साथ 65.1 लाख करोड़ रुपए था, जो कि नाममात्र GDP का क्रमशः 24.6% और 32.4% है।
  • नीतिगत सिफारिशें: शोधकर्त्ता ऐसी नीतियों का समर्थन करते हैं जो कार्यबल में लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करने के लिये अवैतनिक कार्य को मान्यता और महत्त्व दें।
    • यद्यपि राष्ट्रीय लेखा प्रणाली ने वर्ष 1993 से घरेलू उत्पादन को सकल घरेलू उत्पाद की गणना में शामिल किया है, लेकिन इसमें अवैतनिक देखभाल कार्य को विशेष रूप से शामिल नहीं किया गया।
    • भारतीय स्टेट बैंक की वर्ष 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, अवैतनिक कार्य भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 22.7 लाख करोड़ रुपए (GDP का लगभग 7.5%) का योगदान देगा।
      • शोधकर्त्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी बढ़ाने से भारत के सकल घरेलू उत्पाद में संभावित रूप से 27% की वृद्धि हो सकती है।
    • वे अवैतनिक कार्य को महत्त्व देने तथा देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियों के न्यायसंगत पुनर्वितरण को बढ़ावा देने के लिये कार्यप्रणाली को परिष्कृत करने हेतु भविष्य में अनुसंधान की आवश्यकता पर भी बल देते हैं ।

नोट: राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA) वर्ष 2008 अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, यूरोपीय संघ, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से विकसित व्यापक आर्थिक खातों का एक व्यापक, सुसंगत और अनुकूल शृंखला है।

  • SNA सरकारी और निजी क्षेत्र के विश्लेषकों, नीति निर्माताओं और निर्णय लेने वालों की आवश्कताओं को पूरा करने में मदद करता है।

भारत में अवैतनिक कार्य पर प्रमुख आँकड़े क्या हैं?

  • आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2023-24: PLFS रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार, 36.7% महिलाएँ और 19.4% कार्यबल घरेलू उद्यमों में अवैतनिक कार्य में संलग्न हैं।
    • वर्ष 2022-23 के आँकड़ों में भी इसी प्रकार की प्रवृत्ति दिखी, जिसमें 37.5% महिलाएँ और कुल कार्यबल का 18.3% हिस्सा अवैतनिक कार्यों में संलग्न है।
  • टाइम यूज सर्वे 2019 (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO)): 6+ आयु वर्ग की 81% महिलाएँ प्रतिदिन पाँच घंटे से ज़्यादा अवैतनिक घरेलू कार्य करती हैं। 15-29 आयु वर्ग के लिये यह आँकड़ा बढ़कर 85.1% और 15-59 आयु वर्ग के लिये 92% हो जाता है।
    • इसके विपरीत केवल 24.5% पुरुष (6 वर्ष से अधिक आयु के) प्रतिदिन एक घंटे से अधिक समय अवैतनिक घरेलू कार्य में बिताते हैं।  
  • अवैतनिक देखभाल सेवाएँ: 6 वर्ष से अधिक आयु की 26.2% महिलाएँ प्रतिदिन दो घंटे से अधिक समय देखभाल करती हैं, जबकि पुरुषों के लिये यह आँकड़ा 12.4% है।  
    • 15-29 आयु वर्ग में 38.4% महिलाएँ और केवल 10.2% पुरुष अवैतनिक देखभाल में शामिल हैं।

अवैतनिक कार्य का वैश्विक आर्थिक प्रभाव

  • वर्ष 2022 के एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) अध्ययन का अनुमान है कि अवैतनिक कार्य APEC अर्थव्यवस्थाओं में सकल घरेलू उत्पाद में 9% का योगदान देगा, जो कुल 11 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है।
  • विभिन्न देशों में अवैतनिक कार्य सकल घरेलू उत्पाद का 10-60% हिस्सा है। उदाहरण के लिये ऑस्ट्रेलिया का अवैतनिक कार्य उसके सकल घरेलू उत्पाद का 41.3% तक प्रतिनिधित्व करता है जबकि थाईलैंड का लगभग 5.5% है।

महिलाएँ अवैतनिक कार्यों में अधिक संलग्न क्यों रहती हैं?

  • सांस्कृतिक मानदंड और लैंगिक भूमिकाएँ: सामाजिक मानदंड देखभाल और घरेलू कर्त्तव्यों को महिलाओं की स्वाभाविक भूमिका मानते हैं, जिससे यह कार्य अवैतनिक तथा अप्रमाणित हो जाता है।
    • भारत में 53% महिलाएँ देखभाल की ज़िम्मेदारियों के कारण श्रम बल से बाहर रहती हैं। इसकी तुलना में केवल 1.1% पुरुष ही ऐसे हैं जो समान कारणों से श्रम शक्ति से बाहर हैं। 
  • आर्थिक बाधाएँ: कई घरों में महिलाओं द्वारा किये जाने वाले अवैतनिक कार्य को लागत-बचत उपाय के रूप में देखा जाता है, क्योंकि परिवार घरेलू कर्त्तव्यों और देखभाल के लिये महिलाओं पर निर्भर रहते हैं, विशेषकर कम आय वाले घरों में, जहाँ सहायता के लिये किसी को कार्य पर रखना आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण होता है।
    • संवहनीय देखभाल सेवाओं की कमी प्रायः महिलाओं को देखभाल के बुनियादी अवसरंचना में अपर्याप्त सार्वजनिक निवेश के कारण अवैतनिक देखभाल संबंधी भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। 
  • सीमित रोज़गार अवसर: महिलाओं, विशेष रूप से कम शिक्षित या ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं को रोज़गार के सीमित अवसरों का सामना करना पड़ता है। परिणामस्वरूप घर पर बिना वेतन के कार्य करना उनके परिवारों के लिये योगदान का प्राथमिक रूप बन जाता है।
  • नीतिगत अंतराल: दोनों लिंगों के लिये पैतृक अवकाश और अनुकूलन कार्य व्यवस्था जैसी परिवार-अनुकूल नीतियों का अभाव, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः महिलाओं को ही प्राथमिक देखभाल का बोझ उठाना पड़ता है।
    • संस्थागत समर्थन का अभाव महिलाओं द्वारा अवैतनिक कार्य करने की धारणा को मज़बूत करता है।
  • अवैतनिक कार्य की सीमित मान्यता: अवैतनिक घरेलू और देखभाल संबंधी कार्य को कम आंका जाता है तथा अक्सर आधिकारिक आर्थिक मापदंडों में अदृश्य कर दिया जाता है, जिससे यह धारणा बनी रहती है कि यह "वास्तविक कार्य" नहीं है एवं इसके लिये औपचारिक पारिश्रमिक या मान्यता की आवश्यकता नहीं होती है।

अवैतनिक कार्य में असमानता को दूर करने के लिये कौन-सी नीतियों की आवश्यकता है?

  • प्रारंभिक बाल्‍यावस्‍था देखभाल और शिक्षा (ECCE) में निवेश: सुलभ और संवहनीय बाल्यावस्था देखभाल सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिये ECCE पर सरकारी व्यय में वृद्धि करना, जिससे अधिकाधिक महिलाएँ कार्यबल में शामिल हो सकें।
    • बच्चों की देखभाल के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना तथा विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में बच्चों की देखभाल एवं शिक्षा प्रदान करने वाले सामुदायिक केंद्रों का विकास करना, ताकि महिलाओं पर अवैतनिक देखभाल का बोझ कम किया जा सके।
    • ईरान, मिस्र, जॉर्डन और माली जैसे देशों में भी देखभाल के कारण श्रम बल से बाहर महिलाओं का प्रतिशत अधिक है। इसके विपरीत बेलारूस, बुल्गारिया और स्वीडन जैसे देशों में ECCE में पर्याप्त निवेश के कारण 10% से भी कम महिलाएँ इस स्थिति में हैं।
  • लचीली कार्य नीतियाँ: कंपनियों को लचीली कार्य व्यवस्था लागू करने के लिये प्रोत्साहित करना, जिससे माता-पिता तथा देखभाल करने वालों को कार्य और घर की ज़िम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने में सहायता मिले।
    • वृद्धजनों और विशेष आवश्यकता वाले परिवार के सदस्यों की देखभाल को शामिल करने के लिये सशुल्क पारिवारिक अवकाश नीतियों का विस्तार करना। 
  • विधिक ढाँचा और श्रम अधिकार: ऐसे कानूनों को लागू करना, जो औपचारिक रूप से अवैतनिक देखभाल कार्य को अर्थव्यवस्था में वैध योगदान के रूप में मान्यता देते हैं।
    • कार्यस्थल पर लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले कानूनों को प्रभावी बनाना तथा लागू करना, जैसे भेदभाव-विरोधी उपाय और समान वेतन विनियम।
  • साझा ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देना: राष्ट्रीय जागरूकता अभियान शुरू करना, जो पारंपरिक लिंग भूमिकाओं को चुनौती देना और पुरुषों एवं महिलाओं के बीच साझा घरेलू ज़िम्मेदारियों को प्रोत्साहित करना।

निष्कर्ष

लैंगिक समानता और आर्थिक उत्पादकता के लिये, विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किये जाने वाले अवैतनिक कार्यों को मान्यता देना तथा उनका मूल्यांकन करना महत्त्वपूर्ण है। अवैतनिक कार्यों को मापदंड में शामिल करने और सहायक नीतियों को लागू करने से असमानताओं को दूर किया जा सकता है तथा महिलाओं की कार्यबल भागीदारी को सशक्त बनाया जा सकता है, जिससे अधिक समतापूर्ण समाज एवं सतत् आर्थिक विकास हो सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: चर्चा कीजिये कि कैसे सांस्कृतिक मानदंड अवैतनिक कार्यों में महिलाओं की भागीदारी और श्रम बाज़ार तक उनकी पहुँच को प्रभावित करते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

प्रश्न. 'देखभाल अर्थव्यवस्था' और 'मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था' के बीच अंतर कीजिये। महिला सशक्तीकरण के द्वारा देखभाल अर्थव्यवस्था को मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था में कैसे लाया जा सकता है? (2023)