उचित वर्गीकरण परीक्षण | 08 Mar 2025

प्रिलिम्स के लिये:

उचित वर्गीकरण, अनुच्छेद 14, विशेष न्यायालय, सत्र न्यायालय, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय।   

मेन्स के लिये:

उचित वर्गीकरण सिद्धांत का विकास एवं सामाजिक न्याय प्रदान करने में इसका महत्त्व।

 स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत अनवर अली सरकार मामला, 1952 द्वारा "उचित वर्गीकरण" परीक्षण का आधार तैयार हुआ।

  • यह परीक्षण अब कानूनों की संवैधानिकता के मूल्यांकन के लिये एक मानक बन गया है।

उचित वर्गीकरण परीक्षण क्या है?

  • परिचय: यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत एक विधिक सिद्धांत है जो स्पष्ट मतभेदों के आधार पर व्यक्तियों या संस्थाओं के समूहीकरण की अनुमति देकर निष्पक्ष व्यवहार सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
    • मनमाने भेदभाव को रोकने के साथ इसके तहत स्वीकार किया गया है कि सभी मामले एक जैसे नहीं होते हैं। 
  • विशेषताएँ: 
    • वर्गीकरण स्पष्ट एवं उचित अंतर पर आधारित होना चाहिये।
    • यह अंतर तार्किक रूप से कानून के उद्देश्य से जुड़ा होना चाहिये।
    • वर्गीकरण में अधिकारों का उल्लंघन किये बिना सामाजिक या नीतिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाना चाहिये।
    • बड़े समूहों को मनमाने ढंग से अलग-अलग व्यवहार के लिये नहीं चुना जा सकता (कोई वर्ग विधान नहीं) है। इसके तहत उपचार में यादृच्छिक नहीं, बल्कि उचित अंतर सुनिश्चित करना चाहिये।
  • महत्त्व:
    • विशिष्ट विनियमों का समर्थन: यह अलग-अलग सामाजिक स्थितियों के लिये अनुरूप विधियों की अनुमति देता है, यह सुनिश्चित करता है कि समान व्यवहार से अनुचितता न हो।
      • यह अतार्किक परिणामों को रोकने के लिये विधियों की व्याख्या करने में विधिनिर्माताओं और न्यायाधीशों का मार्गदर्शन करता है।
    • वैधता परीक्षण: यह विधियों की वैधता का आकलन करता है, तर्कसंगतता सुनिश्चित करता है और विधिक चुनौतियों को कम करता है।
    • न्यायिक समीक्षा के लिये मानक: यह न्यायालयों के लिये तर्कहीन या अविवेकपूर्ण प्रशासनिक कार्यों की समीक्षा करने तथा उन्हें निरस्त करने के लिये एक मानक प्रदान करता है, जिससे विधायी जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
  • सीमाएँ:
    • अनुचित विभेदीकरण का जोखिम: यदि इसे उचित रूप से लागू नहीं किया गया तो इससे अन्यायपूर्ण भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा तथा मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
    • व्यक्तिपरकता: वर्गीकरण कारक (जैसे, आयु, लिंग, शारीरिक शक्ति ) व्यक्तिपरक हो सकते हैं, जिससे सिद्धांत की असंगत न्यायिक व्याख्या हो सकती है।

अनवर अली सरकार केस, 1952 क्या है?

  • पृष्ठभूमि: वर्ष 1950 में, अनवर अली सरकार को अलीपुर सत्र न्यायालय द्वारा पश्चिम बंगाल विशेष न्यायालय अधिनियम, 1950 के तहत दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (1952): सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष न्यायालयों को मामलों को मनमाने ढंग से संदर्भित करने की अनुमति देने वाली विधि को यह कहते हुए अमान्य कर दिया कि वर्गीकरण में वैध उद्देश्य के साथ तार्किक संबंध का अभाव है।
    • इस निर्णय ने “उचित वर्गीकरण” परीक्षण की स्थापना की, जो कुछ शर्तों के तहत अनुच्छेद 14 के तहत समता के अपवाद की अनुमति देता है।

अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता)

  • परिचय: किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह नागरिक हो या विदेशी, भारत में  विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता।
    • विधि के समक्ष समता किसी भी विशेष विशेषाधिकार को सुनिश्चित नहीं करती है, सभी पर समान विधियाँ लागू होती हैं। विधियों का समान संरक्षण समान परिस्थितियों में समान व्यवहार की गारंटी देता है।
  • उचित वर्गीकरण: अनुच्छेद 14 के अंतर्गत वर्ग विधान का निषेध किया गया है, लेकिन बोधगम्य भिन्नताओं (पहचाने योग्य भेद) के आधार पर उचित वर्गीकरण किये जाने का प्रावधान किया गया है।

युक्तियुक्त वर्गीकरण के सिद्धांत पर न्यायिक रुख

  • सौरभ चौधरी केस, 2004: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दो प्रमुख सिद्धांत निर्धारित किये गए:
    • सुबोध विभेद: वर्गीकरण किसी समूह को अलग करने के लिये स्पष्ट और विशिष्ट कारणों पर आधारित होना चाहिये।
    • तर्कसंगत संबंध: वर्गीकरण का विधि के उद्देश्य से तार्किक संबंध होना चाहिये। 
  • श्री राम कृष्ण डालमिया, 1958: कोई कानून संवैधानिक हो सकता है यदि वह विशेष दशाओं के कारण किसी विशिष्ट व्यक्ति पर लागू होता है, तथा उन्हें एक वर्ग के रूप में मानता है।
    • इसमें संवैधानिकता की धारणा है, तथा यह सिद्ध करने का दायित्व आक्षेप कर रहे व्यक्तियों पर है कि यह संवैधानिक मानकों का उल्लंघन है।

निष्कर्ष

अनवर अली सरकार केस, 1952 से अनुच्छेद 14 के तहत "युक्तियुक्त वर्गीकरण" परीक्षण की नींव स्थापित हुई, जिससे निष्पक्षता और समानता सुनिश्चित हुई। यह ऐसे कानूनों को सक्षम बनाता है जिसमें अलग-अलग समूहों के लिये अलग-अलग प्रवाधान किये गए हों लेकिन तार्किक औचित्य की आवश्यकता होती है, जिससे सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हुए मनमाने भेदभाव को रोका जा सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. न्यायिक दृष्टिकोण के साथ युक्तियुक्त वर्गीकरण के सिद्धांत की व्याख्या कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के संविधानों में समता के अधिकार की धारणा की विशिष्ट विशेषताओं का विश्लेषण कीजिये। (2021)

प्रश्न. ‘आधारिक संरचना’ के सिद्धांत से प्रारंभ करते हुए न्यायपालिका ने यह सुनिश्चित करने के लिये कि भारत एक उन्नतिशील लोकतंत्र के रूप में विकसित हो, एक उच्चतः अग्रलक्षी (प्रोऐक्टिव) भूमिका निभाई है। इस कथन के प्रकाश में लोकतंत्र के आदर्शों की प्राप्ति के लिये हाल के समय में ‘न्यायिक सक्रियतावाद’ द्वारा निभाई भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। (2014)