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भारतीय अर्थव्यवस्था

आरबीआई द्वारा रेपो रेट और सीआरआर में वृद्धि

  • 06 May 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये: आरबीआई, रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, मौद्रिक नीति, मौद्रिक नीति समिति (MPC)।

मेन्स के लिये: मौद्रिक नीति, वृद्धि और विकास, आरबीआई और इसके मौद्रिक नीति उपकरण।

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने तत्काल प्रभाव से नीति रेपो दर को 40 आधार अंकों से बढ़ाकर 4.40% कर दिया है और बैंकों के नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को 50 आधार अंकों से बढ़ाकर 4.5% शुद्ध मांग और समय देयताएँ (NDTL) कर दिया है।

  • RBI की ओर से मई 2020 के बाद पॉलिसी रेपो रेट में यह पहली बढ़ोतरी है।

मौद्रिक नीति समिति:

  • यह विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत एक सांविधिक और संस्थागत ढाँचा है।
  • RBI का गवर्नर समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।
  • MPC मुद्रास्फीति लक्ष्य (4%) को प्राप्त करने के लिये आवश्यक नीतिगत ब्याज दर (रेपो दर) निर्धारित करती है।
  • वर्ष 2014 में तत्कालीन डिप्टी गवर्नर उर्जित पटेल के नेतृत्व में RBI द्वारा नियुक्त समिति ने मौद्रिक नीति समिति की स्थापना की सिफारिश की थी।

वर्तमान दरें:

  • रेपो दर: 4.40%
    • रेपो दर वह दर है जिस पर किसी देश का केंद्रीय बैंक (भारत के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक) किसी भी तरह की धनराशि की कमी होने पर वाणिज्यिक बैंकों को धन देता है। इस प्रक्रिया में केंद्रीय बैंक प्रतिभूति खरीदता है।
  • स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ): 4.15%
    • वस्तुतः इसे अधिशेष तरलता (Surplus Liquidity) को समाप्त करने एवं बैंकिंग प्रणाली की समस्या को कम करने के एक उपकरण के तौर पर देखा जा रहा है|
    • यह रिवर्स रेपो सुविधा से इस मायने में अलग है कि इसमें बैंकों को फंड जमा करते समय संपार्श्विक प्रदान करने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • सीमांत स्थायी सुविधा दर: 4.65%
    • MSF ऐसी स्थिति में अनुसूचित बैंकों के लिये आपातकालीन स्थिति में RBI से ओवरनाइट (रातों-रात) ऋण लेने की सुविधा है जब अंतर-बैंक तरलता पूरी तरह से कम हो जाती है।
    • इंटरबैंक लेंडिंग के तहत बैंक एक निश्चित अवधि के लिये एक-दूसरे को फंड उधार देते हैं।
  • बैंक दर: 4.65%
    • यह वाणिज्यिक बैंकों को धन उधार देने के लिये आरबीआई द्वारा वसूल की जाने वाली दर है।
  • CRR: 4.50% (21 मई, 2022 से प्रभावी)
    • CRRके तहत वाणिज्यिक बैंकों को केंद्रीय बैंक के पास एक निश्चित न्यूनतम जमा राशि (NDTL) आरक्षित रखनी होती है।
  • SLR: 18.00%
    • वैधानिक तरलता अनुपात या SLR जमा का न्यूनतम प्रतिशत है जिसे एक वाणिज्यिक बैंक को तरल नकदी, सोना या अन्य प्रतिभूतियों के रूप में बनाए रखना होता है।

RBI ने रेपो रेट और CRR क्यों बढ़ाया है?

  • वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है, जिसमें मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव के कारण मुद्रास्फीति में तेज़ वृद्धि हुई है।
    • वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और 100 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से ऊपर रहने के साथ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति पिछले 3-4 दशकों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंँच गई है।
  • रेपो दर और CRR में वृद्धि का उद्देश्य यूक्रेन युद्ध के मद्देनज़र वैश्विक अशांति के बीच बढ़ी हुई मुद्रास्फीति पर लगाम लगाना है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक का लक्ष्य मुद्रास्फीति को अपने वांछित स्तर पर रखना (जो पहले से ही 7% के करीब है) और बैंकिंग प्रणाली में धन के प्रवाह को नियंत्रित और मॉनीटर करना है।
  • यदि मुद्रास्फीति इन स्तरों पर बहुत अधिक समय तक बनी रहती है तो संपार्श्विक (Collateral) जोखिम उत्पन्न होता है।
    • संपार्श्विक जोखिम: प्रकृति, मात्रा, मूल्य निर्धारण या क्रेडिट जोखिम युक्त विनिमय को सुरक्षित करने वाली संपार्श्विक संपत्तियों की विशेषताओं में त्रुटियों से उत्पन्न जोखिम।
    • संपार्श्विक वस्तु का मूल्य है जिसका उपयोग ऋण (क्रेडिट) को सुरक्षित करने के लिये किया जाता है।

रेपो रेट और CRR में वृद्धि:

  • रेपो रेट:
    • इससे बैंकिंग सिस्टम में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की उम्मीद है। घर, वाहन और अन्य व्यक्तिगत एवं कॉर्पोरेट ऋणों पर समान मासिक किस्त (EMIs) में वृद्धि की संभावना है।
    • जमा दरों, मुख्य रूप से निश्चित अवधि की दरों में भी वृद्धि होना तय है।
    • रेपो रेट में बढ़ोतरी से उपभोग और मांग पर असर पड़ सकता है।
  • CRR:
    • CRR में वृद्धि से बैंकिंग प्रणाली से 87000 करोड़ रुपए का नुकसान होगा जिससे बैंकों के उधार देने योग्य संसाधन कम हो जाएंगे।
    • इसका मतलब यह भी है कि फंड की लागत बढ़ जाएगी और बैंकों के शुद्ध ब्याज मार्जिन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
      • नेट इंटरेस्ट मार्जिन (NIM) एक बैंक या अन्य वित्तीय संस्थान द्वारा ब्याज के दरो में अर्जित आय तथा अपने उधारदाताओं (उदाहरण के लिये जमाकर्त्ताओं) को भुगतान किये जाने वाले ब्याज के बीच का अंतर है, जो ब्याज अर्जित करने वाली उनकी संपत्ति की राशि के सापेक्ष होती है।

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):

प्र. अगर आरबीआई एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का फैसला करता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं नहीं करेगा? (2020)

1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन

2. सीमांत स्थायी सुविधा दर को बढ़ाना

3. बैंक रेट और रेपो रेट में कटौती

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2
(C) केवल 1 और 3
(D) 1, 2 और 3

उत्तर: (B)

  • विस्तारित मौद्रिक नीति या आसान मौद्रिक नीति वह है जब कोई केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिये अपने उपकरणों का उपयोग करता है। यह बाज़ार में धन की आपूर्ति बढ़ाकर,ब्याज दरों को कम करता है और मांग को बढ़ाता है। यह कदम आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
  • SLR बढ़ाने से बैंक सरकारी प्रतिभूतियों में अधिक पैसा लगाते हैं और अर्थव्यवस्था में नकदी के स्तर को कम करते हैं। इसके विपरीत कदम से अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को बनाए रखने में मदद मिलती है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • MSF दर में वृद्धि के साथ बैंकों के लिये उधार लेने की लागत बढ़ जाती है जिसके परिणामस्वरूप उधार देने के लिये उपलब्ध संसाधन कम हो जाते हैं। अत: कथन 2 सही है।
    • विस्तारवादी मौद्रिक नीति के तहत आर.बी.आई बैंकिंग क्षेत्र में तरलता बढ़ाने के लिये रेपो दर और बैंक दर को कम करता है। अत: कथन 3 सही नहीं है।
    • अतः विकल्प (B) सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू

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