भारतीय राजनीति
सार्वजनिक व्यवस्था
- 16 Feb 2022
- 6 min read
प्रिलिम्स के लिये:सार्वजनिक व्यवस्था, हिजाब, मूल अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दे मेन्स के लिये:मूल अधिकार, न्यायतंत्र, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
कर्नाटक उच्च न्यायालय शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने वाली छात्राओं पर राज्य सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
- मामला इस तर्क से संबंधित है कि क्या राज्य 'सार्वजनिक व्यवस्था' (Public Order) के उल्लंघन के आधार पर इस प्रतिबंध को उचित ठहरा सकता है।
सार्वजनिक व्यवस्था क्या है?
- सार्वजनिक व्यवस्था को आमतौर पर सार्वजनिक शांति और सुरक्षा के समान माना जाता है।
- सार्वजनिक व्यवस्था उन तीन आधारों में से एक है जिस पर राज्य धर्म की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकता है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का सामान अधिकार देता है, बशर्ते ये अधिकार सार्वजनिक व्यवस्थाओं, नैतिकता, स्वास्थ्य एवं मूल अधिकारों से संबंधित अन्य प्रावधानों के अनुरूप हों।
- सार्वजनिक व्यवस्था, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा अन्य मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने वाले आधारों में से भी एक है।
- संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची (सूची 2) के अनुसार, सार्वजनिक व्यवस्था के पहलुओं पर कानून बनाने की शक्ति राज्यों में निहित है।
न्यायालयों द्वारा सार्वजनिक व्यवस्था की व्याख्या:
- सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारक प्रासंगिक हैं और इनका निर्धारण राज्य द्वारा किया जाता है।
- हालाँकि न्यायालयों ने मोटे तौर पर इसकी व्याख्या कुछ ऐसे साधनों के रूप में की है जो व्यापक स्तर पर किसी समुदाय को प्रभावित करते हैं, न कि कुछ व्यक्तियों को।
- राम मनोहर लोहिया बनाम बिहार राज्य (1965) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना कि 'सार्वजनिक व्यवस्था' के मामले में की गई एक विशेष कार्रवाई से किसी समुदाय या जनता को व्यापक रूप से प्रभावित होना पड़ता है।
- कानून का उल्लंघन (ऐसा कुछ करना जो कानून या नियम द्वारा निषिद्ध है) हमेशा आदेश को प्रभावित करता है लेकिन इससे पहले कि इसे सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करने वाला कहा जाए, बड़े पैमाने पर समुदाय या जनता प्रभावित होनी चाहिये।
- इसके लिये तीन संकेंद्रित वृत्तों की कल्पना करनी होगी, जिसमें सबसे बड़ा वृत्त 'कानून और व्यवस्था' का प्रतिनिधित्व करता है, दूसरा 'सार्वजनिक व्यवस्था' का प्रतिनिधित्व करता है और सबसे छोटा वृत्त 'राज्य की सुरक्षा' का प्रतिनिधित्व करता है।
हिजाब पर प्रतिबंध और सार्वजनिक व्यवस्था के बीच संबंध:
- कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 के तहत 5 फरवरी को जारी सरकारी आदेश के अनुसार, ‘एकता’ और ‘अखंडता’ के साथ-साथ ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ भी शैक्षणिक संस्थानों में छात्राओं को हिजाब/हेडस्कार्फ पहनने की अनुमति नहीं देने के कारणों में से एक है।
- इससे पहले भी कई न्यायालय सार्वजनिक संस्थानों में अल्पसंख्यकों के लिये ड्रेस कोड निर्धारित करने के आदेश दे चुके हैं।
- याचिकाकर्त्ताओं का तर्क: याचिकाकर्त्ताओं ने यह तर्क दिया है कि कानून और व्यवस्था का प्रत्येक उल्लंघन, सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित नहीं है।
- सार्वजनिक व्यवस्था अशांति का एक निकृष्ट रूप है जो कि कानून और व्यवस्था के मुद्दे से कहीं ऊपर है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने राज्य से कहा कि केवल छात्राओं द्वारा हिजाब पहनना सार्वजनिक व्यवस्था का मुद्दा कैसे बन सकता है।
- कर्नाटक सरकार का रुख: कर्नाटक के महाधिवक्ता ने तर्क दिया है कि सरकारी आदेश में ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ का कोई उल्लेख नहीं है और याचिकाकर्त्ता द्वारा आदेश को पढ़ने या उसके भाषांतरण में त्रुटि हो सकती है।
- कन्नड़ भाषा में दिये गए आदेश में वाक्यांश ‘सार्वजनिक सुव्यवस्था’ (Sarvajanika Suvyavasthe) का उपयोग किया गया है।