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सामाजिक न्याय

ग्रामीण भारत में प्रोटीन का अभाव

  • 04 Mar 2025
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कुपोषण, गरीबी, कैलोरी की कमी, हिडन हंगर, सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी

मेन्स के लिये:

भारत में कुपोषण से संबंधित मुद्दे, कुपोषण से निपटने के लिये वर्तमान सरकारी पहल।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की उपलब्धता और सामर्थ्य के बावजूद ग्रामीण भारतीय लोग 'हिडन हंगर' से पीड़ित हैं।

नोट:

  • हिडन हंगर: यह कुपोषण के एक ऐसे रूप को संदर्भित करता है जहाँ लोग पर्याप्त कैलोरी का उपभोग करते हैं लेकिन उनमें आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों तथा मैक्रोन्यूट्रिएंट्स (विशेष रूप से प्रोटीन) की कमी होती है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT): 
    • स्थापना: वर्ष 1972
    • स्थिति: इसे संयुक्त राष्ट्र (विशेषाधिकार और उन्मुक्ति) अधिनियम, 1947 की धारा 3 के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा निर्दिष्ट “अंतर्राष्ट्रीय संगठन” के रूप में मान्यता प्राप्त है।
    • विज़न: शुष्क भूमि वाले उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में समृद्धि, खाद्य सुरक्षा एवं अनुकूलन प्राप्त करना।
    • मिशन: शुष्क भूमि क्षेत्रों में गरीबी, भुखमरी एवं कुपोषण के साथ पर्यावरण क्षरण को कम करना।

हिडन हंगर पर ICRISATअध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • अनाज आधारित आहार का प्रभुत्व: ग्रामीण आहार चावल और गेहूँ पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जो दैनिक प्रोटीन सेवन का 60-75% योगदान देते हैं। 
    • हालाँकि, इन अनाजों में आवश्यक अमीनो एसिड की कमी होती है, जिससे आहार असंतुलित हो जाता है।
  • प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों का कम उपयोग: दालें, डेयरी और पशुधन उत्पादों जैसे प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की उपलब्धता के बावजूद, सांस्कृतिक प्राथमिकताओं, सीमित पोषण संबंधी जागरूकता और वित्तीय बाधाओं के कारण उनकी खपत कम रहती है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की सीमाएँ: हालाँकि PDS प्रभावी रूप से कैलोरी सेवन सुनिश्चित करता है, लेकिन यह पर्याप्त प्रोटीन युक्त विकल्पों को शामिल किये बिना अनाज-भारी आहार को बढ़ावा देता है, जिससे प्रोटीन की कमी बढ़ जाती है।
  • शिक्षा और पोषण संबंध: महिलाओं की शिक्षा का स्तर घरेलू आहार प्रारूप को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। बेहतर शिक्षित महिलाएँ अपने परिवार के लिये अधिक संतुलित और विविध आहार सुनिश्चित करती हैं।
  • प्रोटीन उपभोग में क्षेत्रीय भिन्नताएँ: प्रोटीन सेवन को प्रभावित करने वाले कारक राज्यों और ज़िलों में भिन्न-भिन्न होते हैं, जिससे क्षेत्र-विशिष्ट पोषण हस्तक्षेप की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
    • कई अमीर परिवार, आर्थिक क्षमता के बावजूद, पर्याप्त प्रोटीन का उपभोग करने में असफल रहते हैं।

और पढ़ें..: भारत में बढ़ते मोटापे की समस्या

मानव में प्रोटीन की कमी के परिणाम क्या हैं?

  • मांसपेशी अपक्षय और कमज़ोरी: दीर्घकालिक प्रोटीन की कमी से मांसपेशी अपक्षय होता है, जिससे कमज़ोरी, थकान और गतिशीलता में कमी आती है। 
    • गंभीर मामलों में कमज़ोरी से दैनिक गतिविधियों में प्रभावित होती।
  • कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली: प्रोटीन एंटीबॉडी और प्रतिरक्षा कोशिका उत्पादन के लिये आवश्यक है, तथा इसकी कमी से प्रतिरक्षा कमज़ोर हो जाती है, संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है तथा रिकवरी धीमी हो जाती है।
  • विकासात्मक बाधाएँ और अवरुद्ध विकास: जिन बच्चों में प्रोटीन की कमी होती है, उनमें यौवन में देरी, संज्ञानात्मक हानि और अवरुद्ध विकास होता है।
    • यदि इसका उपचार न किया जाए तो इससे बच्चों में विकास संबंधी स्थायी समस्याएँ हो सकती हैं, जिसका दीर्घकालिक स्वास्थ्य और उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है।
  • अंग क्षति: प्रोटीन की कमी से यकृत और गुर्दे पर दबाव पड़ता है, जिससे समय के साथ चयापचय असंतुलन, फैटी लीवर और गुर्दे की शिथिलता जैसी समस्याएँ होती हैं।

ICRISAT रिपोर्ट में कौन-सी प्रमुख अनुशंसाएँ की गई हैं?

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विविधीकरण: सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार कर इसमें दलहन, कदन्न और प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ शामिल किये जाने तथा सुभेद्य वर्गों में प्रोटीन का सेवन बढ़ाने के लिये फोर्टिफाइड खाद्य वितरण कार्यक्रमों का विस्तार किये जाने की अवश्यकता है।
  • पोषण शिक्षा: संतुलित आहार और प्रोटीन उपभोग पर समुदाय-आधारित जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देते हुए पोषण शिक्षा को स्कूल पाठ्यक्रम और सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों में एकीकृत करने की आवश्यकता है।
  • महिलाओं का सशक्तीकरण: आहार विकल्पों में सुधार हेतु महिलाओं की अधिक शिक्षित करना तथा प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों तक बेहतर पहुँच की सुविधा के लिये स्वयं सहायता समूहों का सुदृढ़ीकरण किया जाना चाहिये।
  • विविध कृषि पद्धतियाँ: खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संधारणीय कृषि मॉडल को बढ़ावा देते हुए दलहन और बाजरा जैसी प्रोटीन युक्त फसलों की खेती किये जाने के हेतु प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • लक्षित क्षेत्रीय रणनीतियाँ: यह ध्यान में रखते हुए कि प्रोटीन की खपत को प्रभावित करने वाले कारक क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होते हैं, राज्य-विशिष्ट पोषण संबंधी अभाव का निवारण करने हेतु अनुकूलित नीतियाँ विकसित की जानी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों और बुभुक्षा पर उनके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। भारत बुभुक्षा का निवारण करने के लिये दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकता है?

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