नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा

  • 22 Mar 2022
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संवैधानिक प्रावधान और संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

बाल यौन शोषण से संबंधित मुद्दे और आवश्यक कदम, बच्चों से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की बेंच ने इस मुद्दे पर एक विभाजित फैसला दिया है कि क्या आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 155 (2) यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पॉक्सो) की धारा 23 के तहत अपराध की जाँच पर लागू होगी।

  • सीआरपीसी की धारा 155 (2) के अनुसार, एक पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना गैर-संज्ञेय अपराध की जाँच नहीं कर सकता है।
  • POCSO की धारा 23 यौन अपराध पीड़िता की पहचान का खुलासा करने के अपराध से संबंधित है।
  • न्यायाधीशों में से एक ने कहा कि एक बच्चे की पहचान का खुलासा करना जो यौन अपराधों का शिकार है या जो कानून का उल्लंघन करता है, बच्चे के सम्मान के अधिकार, शर्मिंदा न होने के अधिकार का मौलिक उल्लंघन है।

बाल यौन शोषण से संबंधित मुद्दे:

  • बहुस्तरीय समस्या: बाल यौन शोषण एक बहुस्तरीय समस्या है जो बच्चों की शारीरिक सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य, कल्याण और व्यवहार संबंधी पहलुओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है।
  • डिजिटल प्रौद्योगिकियों के कारण प्रवर्द्धन: मोबाइल और डिजिटल प्रौद्योगिकियों ने बाल शोषण को और अधिक बढ़ा दिया है। ऑनलाइन चोरी, उत्पीड़न और चाइल्ड पोर्नोग्राफी जैसे बाल शोषण के नए रूप भी सामने आए हैं।
  • अप्रभावी विधान: हालाँकि भारत सरकार ने यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 (पॉक्सो अधिनियम) अधिनियमित किया है, लेकिन यह बच्चे को यौन शोषण से बचाने में विफल रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:
    • दोषसिद्धि की निम्न दर: POCSO अधिनियम के तहत दोषसिद्धि की दर केवल लगभग 32% है यदि कोई पिछले 5 वर्षों का औसत निकाले तो लंबित मामले लगभग 90% हैं।
    • न्यायिक विलंब: कठुआ बलात्कार मामले में मुख्य आरोपी को दोषी ठहराने में 16 महीने लग गए, जबकि पॉक्सो अधिनियम में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि मामले की पूरी सुनवाई तथा दोषसिद्धि की प्रक्रिया एक साल में पूरी करनी होगी।
    • बच्चे के प्रति मित्रता का अभाव: बच्चे की आयु-निर्धारण से संबंधित चुनौतियाँ विशेष रूप से ऐसे कानून जो जैविक उम्र पर ध्यान केंद्रित करते हैं, न कि मानसिक उम्र पर।

संबंधित पहल:

संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • संविधान प्रत्येक बच्चे को सम्मान के साथ जीने का अधिकार (अनुच्छेद 21), व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21), निजता का अधिकार (अनुच्छेद 21), समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14) और/या भेदभाव के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 15), शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 और 24) की गारंटी देता है।
    • 6-14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिये निशुल्क और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21 A)
  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों और विशेष रूप से अनुच्छेद 39 (F) द्वारा बच्चों को स्वस्थ तरीके से तथा स्वतंत्रता व सम्मान की स्थिति में विकसित होने के अवसर व सुविधाएंँ दी जाएंँ, बाल्यावस्था और युवावस्था में नैतिक एवं भौतिक शोषण से बचाया जाए, यह सुनिश्चित करने के लिये राज्य के दायित्व को निर्धारित किया गया।

आगे की राह 

  • बच्चों के लिये सुरक्षित वातावरण का निर्माण करते हुए दुर्व्यवहार के खिलाफ रोकथाम गतिविधियों को प्राथमिकता देना समय की मांग है।
  • कानूनी ढांँचे, नीतियों, राष्ट्रीय रणनीतियों और मानकों के बेहतर कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु माता-पिता, स्कूलों, समुदायों, गैर-सरकारी संगठनों के भागीदारों और स्थानीय सरकारों के साथ-साथ पुलिस तथा वकीलों को शामिल करने के लिये एक व्यापक आउटरीच प्रणाली विकसित करना आवश्यक है।

विगत वर्षों के प्रश्न: 

बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेशन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विकास का अधिकार
  2. अभिव्यक्ति का अधिकार
  3. मनोरंजन का अधिकार

उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चे का/के अधिकार है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)

स्रोत: द हिंदू  

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow