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भारतीय अर्थव्यवस्था

डिजिटल ऋण के लिये प्रस्तावित मानदंड: आरबीआई

  • 19 Nov 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल ऋण, भारतीय रिज़र्व बैंक, NBFC 

मेन्स के लिये:

डिजिटल ऋण का महत्त्व एवं चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) वर्किंग ग्रुप (WG) समिति ने अवैध डिजिटल ऋण गतिविधियों को रोकने के लिये एक अलग कानून सहित डिजिटल ऋण से संबंधित सिफारिशें की हैं।

  • आरबीआई ने जनवरी 2021 में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मोबाइल एप के माध्यम से ऋण देने सहित डिजिटल ऋण से संबंधित विभिन्न विषयों पर एक वर्किंग ग्रुप (WG) समिति का गठन किया।
  • समिति का गठन डिजिटल ऋण गतिविधियों में व्यावसायिक आचरण और ग्राहक सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखकर किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • आरबीआई का कहना है कि बैंकों के मामले में भौतिक मोड के सापेक्ष डिजिटल मोड के माध्यम से ऋण देना अभी भी प्रारंभिक चरण में है (डिजिटल मोड के माध्यम से 1.12 लाख करोड़ रुपए, भौतिक मोड के माध्यम से 53.08 लाख करोड़ रुपए)।
    • जबकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) के लिये ऋण का एक उच्च अनुपात (डिजिटल मोड के माध्यम से 0.23 लाख करोड़ रुपए तथा भौतिक मोड के माध्यम से 1.93 लाख करोड़ रुपए के मुकाबले) डिजिटल मोड के माध्यम से हो रहा है।
    • बैंक तेज़ी से डिजिटल प्रक्रियाओं में नवीन दृष्टिकोण अपना रहे हैं, NBFC भागीदारी वाले डिजिटल ऋण देने में सबसे आगे रहे हैं।
  • प्रमुख प्रस्ताव:
    • डिजिटल लेंडिंग एप्स को हितधारकों के परामर्श से स्थापित की जाने वाली नोडल एजेंसी द्वारा सत्यापन प्रक्रिया के अधीन किया जाना चाहिये।
    • डिजिटल लेंडिंग इकोसिस्टम में प्रतिभागियों को कवर करते हुए एक स्व-नियामक संगठन (SRO) की स्थापना करनी चाहिये।
      • डिजिटल ऋणों के लिये अवांछित वाणिज्यिक संचार का उपयोग प्रस्तावित SRO द्वारा लागू की जाने वाली आचार संहिता के माध्यम से नियंत्रित किया जाएगा।
      • प्रस्तावित SRO द्वारा ऋण सेवा प्रदाताओं की 'नकारात्मक सूची' का रखरखाव।
    • ऋणों का संवितरण सीधे उधारकर्त्ताओं के बैंक खातों में होना चाहिये।
    • सभी डेटा भारत में स्थित सर्वरों में संग्रहीत किया जाना है।
    • दस्तावेज़ीकरण के लिये डिजिटल उधार में उपयोग की जाने वाली एल्गोरिथम विशेषताओं द्वारा आवश्यक पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिये।

डिजिटल ऋण:

  • परिचय:
    • इसका अभिप्राय प्रमाणीकरण और क्रेडिट मूल्यांकन हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए वेब प्लेटफॉर्म या मोबाइल एप के माध्यम से ऋण वितरित करने की प्रक्रिया से है।
    • बैंकों ने पारंपरिक ऋण प्रणाली में मौजूदा क्षमताओं का लाभ उठाकर डिजिटल ऋण बाज़ार में नए अवसरों का लाभ प्राप्त करने के लिये अपने स्वतंत्र डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म लॉन्च किये हैं।
  • महत्त्व:
    • वित्तीय समावेशन: यह भारत में विशेष रूप से लघु उद्योग और कम आय वाले उपभोक्ताओं की व्यापक ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता करता है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र के ऋण में कमी: उधार लेने की प्रकिया को सरल और सुगम बनाकर यह अनौपचारिक क्षेत्र से लिये जाने वाले ऋण को कम करने में मदद करता है।
    • समय की बचत: यह बैंकों में जाकर पारंपरिक माध्यम से ऋण लेने में लगने वाले समय को कम करता है। डिजिटल ऋण प्लेटफॉर्म को अतिरिक्त लागत  में 30-50% की कटौती करने के लिये भी जाना जाता है।
  • चुनौतियाँ:
    • अनधिकृत डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफार्मों और मोबाइल एप्लीकेशन की बढ़ती संख्या के रूप में:
      • ये प्लेटफॉर्म अत्यधिक ब्याज़ दर और अतिरिक्त अप्रत्यक्ष शुल्क लेते हैं।
      • ये ऋण की वापसी के लिये अस्वीकार्य और क्रूर विधियाँ अपनाते हैं।
      • ये प्लेटफॉर्म उधारकर्त्ताओं के मोबाइल फोन से डेटा प्राप्त करने के लिये समझौतों का दुरुपयोग करते हैं।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा उठाए गए कदम:
    • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) और बैंकों को रिज़र्व बैंक के समक्ष उस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का नाम बताना होगा, जिसके साथ वे कार्य कर रहे हैं।
    • आरबीआई ने यह भी अनिवार्य किया है कि किसी भी बैंक अथवा NBFC के साथ काम करने वाले डिजिटल ऋण प्लेटफॉर्म को ग्राहकों हेतु उस बैंक या NBFC के नाम का खुलासा करना चाहिये।
    • केंद्रीय बैंक ने ऋण देने वाले प्लेटफॉर्म को ऋण समझौते के निष्पादन से पूर्व संबंधित बैंक/NBFC के लैटरहेड पर उधारकर्त्ता को एक स्वीकृति पत्र जारी करने का निर्देश दिया है।
    • नियम के अनुसार, रिज़र्व बैंक के साथ पंजीकृत बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ और अन्य संस्थान, जो सांविधिक प्रावधानों के अंतर्गत राज्य सरकारों द्वारा विनियमित किये जाते हों, द्वारा ही वैध सार्वजनिक ऋण देने की गतिविधि शुरू की जा सकती है।
    •  ईज़ रिफॉर्म्स (EASE Reforms)

भारत का डिजिटल इकोसिस्टम

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) के लगभग 72% वित्तीय लेन-देन डिजिटल चैनलों के माध्यम से किये जाते हैं, जिसमें डिजिटल चैनलों पर सक्रिय ग्राहकों की संख्या वित्त वर्ष 2019-20 में 3.4 करोड़ से बढ़कर वित्त वर्ष 2020-21 में 7.6 करोड़ हो गई है।
  • घरेलू और मोबाइल चैनलों के माध्यम से किये गए वित्तीय लेन-देन की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2018-19 के 29% से बढ़कर वित्त वर्ष 2020-21 में 76% हो गई है।

आगे की राह

  • यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत एक डिजिटल ऋण क्रांति के कगार पर खड़ा है और इस क्रांति को सफल बनाने के लिये यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि ऋण व्यवस्थित और वैध तरीके से प्रदान किया जाए।
  • चूँकि इस प्रक्रिया में कई लोगों की पहुँच उपभोक्ताओं के संवेदनशील डेटा तक होती है, इसलिये इस संबंध कानून बनाया जाना काफी आवश्यक है। उदाहरण के लिये कानून के माध्यम से यह तय किया जा सकता है कि सेवा प्रदाताओं द्वारा किस प्रकार का डेटा एकत्रित किया जाएगा और उस डेटा का उपयोग किस कार्य के लिये किया जाएगा।
  • डिजिटल ऋणदाताओं को सत्यनिष्ठा, पारदर्शिता और उपभोक्ता संरक्षण के सिद्धांतों को रेखांकित करने वाली आचार संहिता का विकास करना चाहिये और उसके प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करनी चाहिये।
  • इस संबंध में एक एजेंसी बनाई जा सकती है, जो कि सभी डिजिटल ऋण समझौतों और उपभोक्ता/ऋणदाता क्रेडिट हिस्ट्री को ट्रैक करने में सक्षम होगी।
  • तकनीकी स्तर पर सुरक्षा उपायों के अलावा डिजिटल ऋण के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित और प्रशिक्षित करना भी आवश्यक है।

स्रोत- द हिंदू

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