नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


सामाजिक न्याय

निषेध कानून और मुद्दे

  • 01 Jan 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लये:

निजता का अधिकार, शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने वाले राज्य, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (DPSP), मौलिक कर्त्तव्य।

मेन्स के लिये:

भारत में प्रोहिबिशन एक्ट्स से जुड़ी चिंताएँ, अनुच्छेद 47 बनाम निजता का अधिकार (अपनी पसंद के खाने और पीने के अधिकार सहित जीवन का अधिकार)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिहार सरकार ने अवैध शराब निर्माण की निगरानी के लिये ड्रोन का उपयोग करने का निर्णय लिया है।

  • इसने निषेध अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिये भौतिक और वित्तीय संसाधनों के उपयोग की उपयोगिता पर बहस शुरू कर दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • निषेध कानून द्वारा किसी चीज़ को मना करने का कार्य या अभ्यास है: विशेष रूप से यह शब्द मादक पेय पदार्थों के निर्माण, भंडारण (चाहे बैरल में या बोतलों में), परिवहन, बिक्री, कब्ज़ा और खपत पर प्रतिबंध लगाने को संदर्भित करता है।
    • संवैधानिक प्रावधान:
      • अनुच्छेद 47: भारत के संविधान में निर्देशक सिद्धांतों में कहा गया है कि "राज्य मादक पेय और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक दवाओं के औषधीय प्रयोजनों को छोड़कर इनके उपभोग पर प्रतिबंध लगाने के लिये नियम बनाएगा"।
      • राज्य का विषय: शराब, भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची में एक विषय है।
  • भारत में अन्य निषेध अधिनियम:
    • बॉम्बे आबकारी अधिनियम, 1878: शराब निषेध पर पहला संकेत बॉम्बे आबकारी अधिनियम, 1878 के माध्यम से था
      • यह अधिनियम वर्ष 1939 और 1947 में किये गए संशोधनों के माध्यम से अन्य बातों और शराब निषेध के पहलुओं पर नशीले पदार्थों को लेकर शुल्क लगाने से संबंधित था।
    • बॉम्बे निषेध अधिनियम, 1949: बॉम्बे आबकारी अधिनियम, 1878 में शराबबंदी लागू करने के सरकार के फैसले के दृष्टिकोण से "कई खामियाँ" थीं।
      • इसके कारण बॉम्बे प्रोहिबिशन एक्ट, 1949 का जन्म हुआ।
      • सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने वर्ष 1951 में बॉम्बे राज्य बनाम एफएन बलसारा के फैसले में कुछ धाराओं को छोड़कर अधिनियम को व्यापक रूप से बरकरार रखा।
    • गुजरात निषेध अधिनियम, 1949:
      • गुजरात ने वर्ष 1960 में शराबबंदी नीति को अपनाया और बाद में इसे और अधिक कठोरता के साथ लागू किया, लेकिन विदेशी पर्यटकों और आगंतुकों के लिये शराब परमिट प्राप्त करने की प्रक्रिया को भी आसान बना दिया।
      • वर्ष 2011 में, अधिनियम का नाम बदलकर गुजरात निषेध अधिनियम कर दिया गया। वर्ष 2017 में गुजरात निषेध (संशोधन) अधिनियम को इस राज्य में शराब के निर्माण, खरीद, बिक्री और परिवहन पर दस साल तक की जेल के प्रावधान के साथ पारित किया गया था।
    • बिहार मद्य निषेध अधिनियम, 2016: बिहार मद्य निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम 2016 में लागू किया गया था।
      • 2016 से कड़े शराबबंदी कानून के तहत 3.5 लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिसके कारण जेलों में भीड़भाड़ है और अदालतें बंद हैं।
    • अन्य राज्य: मिज़ोरम, नगालैंड राज्यों के साथ-साथ केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप में शराबबंदी लागू है।
  • शराबबंदी के खिलाफ तर्क:
    • निजता का अधिकार: 
      • किसी व्यक्ति के भोजन और पेय पदार्थों के चुनाव के अधिकार में राज्य द्वारा कोई भी हस्तक्षेप एक अनुचित प्रतिबंध के बराबर है और व्यक्ति की निर्णयात्मक व शारीरिक स्वायत्तता को नष्ट कर देता है।
      • वर्ष 2017 के बाद से कई फैसलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में रखा गया है।
    • हिंसा की भावना: विभिन्न शोधों और अध्ययनों से पता चला है कि शराब हिंसा की भावना को बढ़ा देती है।
      • महिलाओं और बच्चों के खिलाफ घरेलू हिंसा के अधिकांश अपराध बंद दरवाजों के पीछे होते हैं।
    • राजस्व की हानि: शराब से प्राप्त कर राजस्व किसी भी सरकार के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है। ये सरकार को कई जन कल्याणकारी योजनाओं को वित्तपोषित करने में सक्षम बनाती हैं। इन राजस्वों की अनुपस्थिति राज्य की लोक कल्याणकारी कार्यक्रमों को चलाने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
    • रोज़गार का स्रोत: आज भारतीय विदेशी शराब (आईएमएफएल) उद्योग हर साल करों में 1 लाख करोड़ से अधिक का योगदान देता है। यह लाखों किसान परिवारों की आजीविका का समर्थन करता है और उद्योग में कार्यरत लाखों श्रमिकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्रदान करता है।
  • शराबबंदी के पक्ष में तर्क:
    • आजीविका पर प्रभाव: शराब पारिवारिक संसाधनों नष्ट कर देती है और महिलाओं और बच्चों को इसके सबसे कमज़ोर शिकार के रूप में छोड़ देती है। कम से कम जहां तक ​​परिवार इकाई का संबंध है, एक सामाजिक कलंक अभी भी शराब के सेवन से जुड़ा हुआ है।
    • नियमित खपत को हतोत्साहित करें: शराब के नियमित और अत्यधिक सेवन को हतोत्साहित करने के लिये सख्त राज्य विनियमन अनिवार्य है।
    • जैसा कि अनुसूची सात के तहत राज्य सूची में निषेध का उल्लेख है, यह राज्य का कर्तव्य है कि वह शराबबंदी से संबंधित प्रावधान करे।

आगे की राह

  • नैतिकता, निषेध या पसंद की स्वतंत्रता जैसे मुद्दों के बीच अर्थव्यवस्था, नौकरी आदि जैसे कारक भी हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। इसके कारणों और प्रभावों पर एक सूचित और रचनात्मक संवाद की आवश्यकता है।
  • नीति निर्माताओं को ऐसे कानून बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो ज़िम्मेदार व्यवहार और अनुपालन को प्रोत्साहित करते हैं।
    • शराब पीने की उम्र को पूरे देश में एक समान किया जाना चाहिये और इससे नीचे के किसी भी व्यक्ति को शराब खरीदने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
    • सार्वजनिक रूप से शराब के नशे में व्यवहार, प्रभाव में घरेलू हिंसा और शराब पीकर गाड़ी चलाने के खिलाफ सख्त कानून बनाए जाने चाहिये।
    • सरकारों को शराब से अर्जित राजस्व का एक हिस्सा सामाजिक शिक्षा, नशामुक्ति और सामुदायिक समर्थन के लिये अलग रखना चाहिये।

स्रोत- द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow