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शासन व्यवस्था

प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम

  • 31 May 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, MSME 

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम, सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों का महत्त्व तथा चुनौतियांँ। 

चर्चा में क्यों? 

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) को वित्त वर्ष 2026 तक पांँच साल के लिये विस्तार की मंज़ूरी दे दी है। 

  • PMEGP को अब 13,554.42 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ 2021-22 से 2025-26 तक पांच साल के लिये 15वें वित्त आयोग अवधि तक जारी रखने की मंज़ूरी दी गई है। 

PMEGP योजना: 

  • शुरुआत:  
    • भारत सरकार ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना के माध्यम से रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये वर्ष 2008 में प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) नामक एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी कार्यक्रम की शुरुआत को मंज़ूरी दी। 
    • यह उद्यमियों को कारखाने या इकाइयाँ स्थापित करने की अनुमति देता है 
  • प्रशासन 
    • यह सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MoMSME) द्वारा प्रशासित एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। 
    • ‘केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय’ के तहत संचालित इस योजना का क्रियान्वयन ‘खादी और ग्रामोद्योग आयोग’ (Khadi and Village Industries Commission- KVIC) द्वारा किया जाता है। 
  • विशेषताएँ: 
    • पात्रता: 
      • कोई भी व्यक्ति जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक हो। 
      • इस कार्यक्रम के तहत केवल नई इकाइयों की स्थापना के लिये सहायता प्रदान की जाती है। 
      • इसके साथ ही ऐसे स्वयं सहायता समूह जिन्हें किसी अन्य सरकारी योजना का लाभ न मिल रहा हो, ‘सोसायटी रजिस्‍ट्रेशन अधिनियम, 1860’ के तहत पंजीकृत संस्‍थान, उत्‍पादक कोऑपरेटिव सोसायटी और चैरिटेबल ट्रस्‍ट आदि इसके तहत लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 
    • परियोजना / यूनिट की अधिकतम स्वीकार्य लागत: 
      • विनिर्माण क्षेत्र: 50 लाख रुपए 
      • सेवा क्षेत्र: 20 लाख रुपए 
    • सरकारी सब्सिडी: 
      • ग्रामीण क्षेत्र: सामान्य वर्ग के लिये 25% और विशेष श्रेणी के लिये 35%, जिसमें एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक, एनईआर, पहाड़ी और सीमावर्ती क्षेत्र, ट्रांसजेंडर, शारीरिक रूप से अक्षम, उत्तर पूर्वी क्षेत्र, आकांक्षी व सीमावर्ती ज़िले के लाभार्थी शामिल हैं। 
      • शहरी क्षेत्र: सामान्य श्रेणी के लिये 15% और विशेष श्रेणी के लिये 25%। 
    • बैंकों की भूमिका: संबंधित राज्य टास्क फोर्स समिति द्वारा अनुमोदित सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों और निजी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण प्रदान किये जाते हैं। 
  • बदलाव: 
    • योजना के लिये ग्रामोद्योग और ग्रामीण क्षेत्र की परिभाषा में बदलाव किया गया है। 
    • पंचायती राज संस्थाओं के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को ग्रामीण क्षेत्रों के अंतर्गत, जबकि नगर पालिका के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को शहरी क्षेत्रों के रूप में माना जाएगा। 
  • महत्त्व: 
    • यह योजना पाँच वित्तीय वर्षों में लगभग 40 लाख व्यक्तियों के लिये स्थायी रोज़गार के अवसर पैदा करेगी। 
    • यह गैर-कृषि क्षेत्र में सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना में सहायता करके देश भर में बेरोज़गार युवाओं के लिये रोज़गार के अवसर पैदा करने की सुविधा प्रदान करती है। 
    • 2008-09 में इसकी स्थापना के बाद से लगभग 7.8 लाख सूक्ष्म उद्यमों को 19,995 करोड़ रुपए की सब्सिडी के साथ अनुमानित 64 लाख व्यक्तियों के लिये स्थायी रोज़गार पैदा करने में सहायता मिली है। सहायता प्राप्त इकाइयों में से लगभग 80% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और लगभग 50% इकाइयाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला श्रेणियों के स्वामित्व में हैं। 

चुनौतियांँ: 

  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 से वित्तीय वर्ष 2018-19 के बीच इस कार्यक्रम के तहत 10,169 रुपए आवंटित किये गए थे जिनमें से 1,537 करोड़ रुपए NPA में बदल गए। 
  • कौशल में कमी, बाज़ार अध्ययन की कमी, कम मांग और कड़ी प्रतिस्पर्द्धा को इतनी बड़ी संख्या में एनपीए का प्रमुख कारण माना जाता है। 
  • जब आमतौर पर सभी केंद्रीय योजनाओं को निश्चित वार्षिक लक्ष्य दिये जाते हैं तो यह योजना ऐसे किसी लक्ष्य से प्रेरित नहीं है। चूँकि राज्य और बैंक दोनों ऋणों के वितरण के वार्षिक लक्ष्य को पूरा करने के उद्देश्य के बिना कार्य करते हैं, जिससे कार्यक्रम अपनी गति खो सकता है। 

आगे की राह 

  • वित्तीय सहायता प्रदान करने के अलावा सरकार को संभावित उद्यमियों को सही बाज़ार और सही उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद के लिये एक गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की आवश्यकता है। 
  • यह योजना ऐसे समय में फायदेमंद साबित हो सकती है जब अर्थव्यवस्था को कोविड-19 महामारी के प्रभाव से उबरने की ज़रूरत है। परियोजनाओं के निष्पादन और देश में रोज़गार पैदा करने के लिये धन का समय पर वितरण आवश्यक है। 
  • सरकार को बेहतर तकनीक और मार्केटिंग सपोर्ट के साथ माइक्रो सेगमेंट पर फोकस करना होगा। केवल वित्तीय सहायता ही पर्याप्त नहीं है। योजना के बारे में जागरूकता एक अन्य चुनौती है। 

स्रोत: पी.आई.बी. 

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