सामाजिक न्याय
धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी पर PM-EAC रिपोर्ट
- 14 May 2024
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प्रिलिम्स के लिये:जनसांख्यिकीय लाभांश, कुल प्रजनन दर (TFR), राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, जनगणना 2011, जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत। मेन्स के लिये:भारत में जनसांख्यिकीय परिवर्तन, भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का महत्त्व, भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश से जुड़ी चुनौतियाँ। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (PM-EAC) के एक नए विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 1950 से वर्ष 2015 के बीच भारत में हिंदुओं के जनसंख्या प्रतिशत में 7.82% की कमी आई है, जबकि मुसलमानों, ईसाइयों तथा सिखों के प्रतिशत में वृद्धि हुई है।
PM-EAC रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- विश्व भर में घटती बहुसंख्यक जनसंख्या:
- वर्ष 1950 से वर्ष 2015 तक 38 OECD देशों की धार्मिक जनसांख्यिकी पर एकत्रित किये गए आँकड़ों के अनुसार, इनमें से 30 देशों के प्रमुख धार्मिक समूह रोमन कैथोलिकों के अनुपात में उल्लेखनीय कमी देखी गई।
- सर्वेक्षण में शामिल 167 देशों में वर्ष 1950-2015 की अवधि के दौरान वैश्विक स्तर पर बहुसंख्यक धार्मिक समूहों की जनसंख्या में औसत गिरावट 22% आई।
- OECD देशों में बहुसंख्यक जनसंख्या तेज़ी से घटी है, जिसमें औसतन 29% की गिरावट दर्ज की गई है।
- वर्ष 1950 में अफ्रीका के 24 देशों में जीववाद अथवा स्थानीय मूल धर्म प्रमुख था।
- वर्ष 2015 में अफ्रीका के इन 24 देशों में से किसी में भी जीववाद अथवा स्थानीय धर्म मानने वाले बहुसंख्यकों की मौजूदगी नहीं देखी गई।
- दक्षिण एशियाई क्षेत्र में बहुसंख्यक धार्मिक समूह की जनसंख्या बढ़ रही है, जबकि बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, भूटान और अफगानिस्तान जैसे देशों में अल्पसंख्यक धार्मिक समूहों की जनसंख्या में काफी गिरावट आई है।
- भारत के संदर्भ में:
- हिंदू जनसंख्या में गिरावट: हिंदुओं की जनसंख्या में 7.82% की गिरावट आई है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, वर्ष 2011 तक भारत में हिंदू जनसंख्या लगभग 79.8% थी।
- अल्पसंख्यक जनसंख्या में वृद्धि: मुस्लिम जनसंख्या 9.84% से बढ़कर 14.095% और ईसाई जनसंख्या 2.24% से बढ़कर 2.36% हो गई।
- सिख जनसंख्या 1.24% से बढ़कर 1.85% और बौद्ध जनसंख्या 0.05% से बढ़कर 0.81% हो गई।
- जैन और पारसी समुदाय की जनसंख्या में गिरावट देखी गई है। जैन जनसंख्या 0.45% से घटकर 0.36% तथा पारसी जनसंख्या में 85% की गिरावट के साथ यह 0.03% से 0.0004% रह गई है।
- स्वस्थ जनसंख्या वृद्धि दर: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़ों के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate- TFR) वर्तमान में 2 के आसपास है, जो 2.19 के वांछित TFR के निकट है। जनसंख्या वृद्धि का अनुमान लगाने के लिये TFR एक विश्वसनीय संकेतक है।
- हिंदुओं के संदर्भ में यह वर्ष 1991 के 3.3 से घटकर वर्ष 2015 में 2.1 और वर्ष 2024 में 1.9 हो गई है।
- मुसलमानों में यह वर्ष 1991 के4.4 से घटकर वर्ष 2015 में 2.6 और वर्ष 2024 में 2.4 हो गई है।
अल्पसंख्यकों को समान लाभ: भारत में अल्पसंख्यकों को समान लाभ मिलता है और वे सुखद जीवन जीते हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर जनसांख्यिकीय बदलाव चिंता का कारण बना हुआ है।
जनसांख्यिकीय प्रतिरूप और इसकी प्रासंगिकता क्या हैं?
- जनसांख्यिकी प्रतिरूप:
- यह मानव जनसंख्या में देखी जाने वाली भिन्नताओं और प्रवृत्तियों को संदर्भित करता है।
- ये पैटर्न जनसंख्या गतिकी के अध्ययन के उपरांत प्राप्त होते हैं, जिसमें जन्म दर, मृत्यु दर, प्रवास और जनसंख्या संरचना जैसे कारक शामिल हैं।
- प्रासंगिकता:
- जनसंख्या की प्रवृत्तियों को समझना:
- जनसांख्यिकीय डेटा का उपयोग समय के साथ प्रतिरूप की पहचान करने के लिये किया जाता है। जन्म और मृत्यु दर का अध्ययन कर जनसंख्या में वृद्धि या गिरावट का अनुमान लगाया जा सकता है।
- यह आधारभूत ढाँचा, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं सामाजिक सेवाओं संबंधी योजनाएँ बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- कारणों और परिणामों का विश्लेषण:
- यह जनसंख्या में परिवर्तन के पीछे के कारणों की जाँच करता है। आर्थिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सांस्कृतिक मानदंड जैसे कारक जन्म एवं मृत्यु दर को प्रभावित करते हैं।
- परिणामों में कार्यबल की गतिशीलता, निर्भरता अनुपात (गैर-कार्यशील आयु समूहों का अनुपात) और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों संबंधी निहितार्थ शामिल हैं।
- नीति निर्माण एवं कार्यान्वयन:
- स्वास्थ्य देखभाल: आयु-विशिष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओं की समझ से संसाधनों के प्रभावी ढंग से आवंटन में सहायता मिलती है।
- शिक्षाः जनसांख्यिकी शैक्षिक योजना का मार्गदर्शन करती है, जैसे कि विद्यालय की अवसंरचना और शिक्षक भर्ती।
- शहरी नियोजन: जनसंख्या वितरण शहरी अवसंरचनात्मक ढाँचे, आवास और परिवहन को प्रभावित करता है।
- बुज़ुर्ग जनसंख्या: वरिष्ठ लोगों से संबंधित दो प्रमुख मुद्दों- पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल को जनसांख्यिकी नीतियों में प्रमुखता दी गई है।
- जनसंख्या की प्रवृत्तियों को समझना:
बुनियादी जनसंख्या नियंत्रण सिद्धांत क्या है?
- माल्थस का सिद्धांत: इसे वर्ष 1798 में एक ब्रिटिश अर्थशास्त्री और जनसांख्यिकीविद् थॉमस रॉबर्ट माल्थस ने "जनसंख्या के सिद्धांत पर अपने एक निबंध" में प्रस्तावित किया था।
- यह सिद्धांत संसाधनों और जनसंख्या विस्तार के बीच परस्पर क्रिया पर केंद्रित है।
- जनसंख्या वृद्धि: माल्थस ने तर्क दिया कि जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती है, जिसका अर्थ है कि जनसंख्या ज्यामितीय दर (1, 2, 4, 8,16 आदि) से बढ़ती है। जबकि संसाधनों की उपलब्धता केवल अंकगणितीय रूप (1, 2, 3, 4, 5 आदि) से बढ़ती है।
- नतीजतन, जनसंख्या में वृद्धि संसाधनों की क्षमता से अधिक होगी।
- संसाधन संबंधी बाधाएँ: माल्थस ने संसाधनों को लेकर दो प्राथमिक बाधाओं की पहचान की: निर्वाह (भोजन) और जनसंख्या का समर्थन करने के लिये पर्यावरण की क्षमता (सीमित भूमि, जल आदि)।
- माल्थस का मानना था कि जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ेगी, इन संसाधनों पर अधिक दबाव बढ़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप अकाल, संसाधनों की कमी के चलते अंततः भूख, बीमारी तथा संघर्ष जैसे कारकों एवं "सकारात्मक नियंत्रण" उपायों की वज़ह से जनसंख्या में कमी आएगी।
- जनसंख्या वृद्धि को लेकर जाँच: माल्थस ने जनसंख्या वृद्धि को लेकर जाँच को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया:
- सकारात्मक जाँच: ये प्राकृतिक कारक हैं जिससे जनसंख्या में कमी आती है, जैसे- अकाल, बीमारी और युद्ध आदि।
- निवारक जाँच: ये जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने हेतु व्यक्तियों या समुदायों द्वारा लिये गए सचेत निर्णय हैं, जैसे- विलंबित विवाह, संयम और जन्म नियंत्रण।
- हालाँकि माल्थस अंततः गलत साबित हुआ क्योंकि कृषि प्रौद्योगिकी में प्रगति ने भारत जैसे देश को शुद्ध खाद्य अधिशेष वाले देश की श्रेणी में ला दिया।
- जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत: यह समय के साथ जनसंख्या परिवर्तन की प्रक्रिया को रेखांकित करता है क्योंकि समाज आर्थिक और सामाजिक विकास के विभिन्न चरणों से गुज़रता है।
- चरण 1- पूर्व औद्योगिक समाज:
- इसकी विशेषता उच्च जन्म और मृत्यु दर है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या का आकार अपेक्षाकृत स्थिर रहता है।
- संयुक्त परिवारों में जन्म नियंत्रण और सांस्कृतिक प्राथमिकताओं के अभाव के कारण जन्म दर अधिक देखी जाती है।
- सीमित चिकित्सीय ज्ञान, पर्याप्त स्वच्छता का अभाव और बीमारी के व्यापक प्रसार के कारण मृत्यु दर भी अधिक होती है।
- चरण 2- संक्रमणकालीन चरण:
- इसकी शुरुआत औद्योगीकरण और स्वास्थ्य देखभाल एवं स्वच्छता में सुधार से होती है।
- इस दौरान चिकित्सा, स्वच्छता और खाद्य उत्पादन में प्रगति के कारण मृत्यु दर में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
- प्रारंभ में जन्म दर उच्च रहती है, जिससे मृत्यु दर कम होने के कारण तेज़ी से जनसंख्या वृद्धि होती है।
- इस चरण में अक्सर जनसंख्या विस्फोट देखा जाता है।
- चरण 3- औद्योगिक समाज:
- शहरीकरण, शिक्षा, आर्थिक परिवर्तन और महिला सशक्तीकरण जैसे विभिन्न कारकों के कारण जन्म दर में गिरावट आनी शुरू हो जाती है।
- हालाँकि जन्म दर, मृत्यु दर से कुछ अधिक होती है, जिसके परिणामस्वरूप धीमी गति से ही सही, जनसंख्या वृद्धि लगातार जारी रहती है।
- चरण 4- उत्तर-औद्योगिक समाज:
- जन्म दर और मृत्यु दर दोनों कम होती है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या स्थिर या धीरे-धीरे बढ़ती है।
- जन्म दर प्रतिस्थापन स्तर से भी नीचे गिर सकती है, जिससे जनसंख्या की उम्र बढ़ने और जनसांख्यिकीय असंतुलन के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- चरण 5:
- कुछ मॉडलों में पाँचवाँ चरण प्रस्तावित है, जहाँ जन्म दर प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर जाती है, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या में गिरावट आती है (जैसे- जर्मनी)।
- यह चरण की विशेषता एक महत्त्वपूर्ण वृद्ध जनसंख्या और संभावित जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. किसी भी देश के संदर्भ में निम्नलिखित में से किसे उसकी सामाजिक पूंजी का हिस्सा माना जाएगा? (2019) (a) जनसंख्या में साक्षरों का अनुपात उत्तर: (d) प्रश्न. 2 भारत को "जनसांख्यिकीय लाभांश" वाला देश माना जाता है। यह किस कारण है? (2011) (a) 15 वर्ष से कम आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न 1. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों का विस्तार से उल्लेख कीजिये। (2021) प्रश्न 2. ''महिलाओं को सशक्त बनाना जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न 3. समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये कि क्या बढ़ती जनसंख्या गरीबी का कारण है या गरीबी भारत में जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है। (2015) |