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जैव विविधता और पर्यावरण

सुंदरबन में प्लास्टिक से संबंधित समस्या

  • 18 Aug 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्लास्टिक प्रदूषण, उष्णकटिबंधीय तूफान, सुंदरबन, सुपोषण

मेन्स के लिये:

प्लास्टिक प्रदूषण से उत्पन्न समस्याएँ, संबंधित पहलें

चर्चा के क्यों?    

सुंदरबन में चक्रवात प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री के अनियंत्रित प्रवाह के परिणामस्वरूप प्लास्टिक जमा होने के कारण एक नया संकट उत्पन्न  हो गया है।

  • प्लास्टिक से उत्पन्न खतरा सुंदरबन के लिये एक बहुत गंभीर समस्या है क्योंकि इस क्षेत्र में लगातार उष्णकटिबंधीय तूफान आ रहे हैं  जो इस क्षेत्र के विनाश का कारण बन सकते हैं।

प्रमुख बिंदु: 

प्लास्टिक प्रदूषण:

  • प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण में प्लास्टिक कचरे के जमा होने के कारण होता है।
  • इसे प्राथमिक प्लास्टिक (Primary Plastics) जैसे- सिगरेट बट्स और बॉटल कैप्स या फिर सेकेंडरी प्लास्टिक (Secondary Plastics), जो प्राथमिक प्लास्टिक के क्षरण के परिणामस्वरूप होता है, के रुप में वर्गीकृत किया जाता है।

सुंदरबन में प्लास्टिक जमा होने का कारण:

  • चक्रवात:
    • इस क्षेत्र में लगातार चक्रवात आ रहे हैं, जिनके बाद राहत और निवासियों के पुनर्वास की आवश्यकता होती है। 
      • भूगोल में किसी स्थान का उभार/उच्चावच उसकी उच्चतम और निम्नतम ऊँचाई के बीच का अंतर होता है।
    • सुंदरबन में चक्रवात अम्फान (मई 2020) के बाद वितरित राहत सामग्री की वजह से इक्कठा हुआ प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र को नुकसान पहुंँचा सकता है।
  • पर्यटन:
    • इस क्षेत्र में हाल में आए चक्रवातों के अलावा पर्यटकों ने भी प्लास्टिक कचरा फैलाने में योगदान दिया है क्योंकि वे अपने पीछे प्लास्टिक कचरे का ढेर छोड़ जाते हैं जो पूरे जंगल में बिखरा हुआ है।

चिंताएँ:

  • विषाक्तता में बढ़ोतरी:
    • खारे जल में प्लास्टिक की मौजूदगी से जल की विषाक्तता में बढ़ोतरी हो जाती है जो पानी में  सुपोषण (Eutrophication) की क्रिया को बढ़ा सकता है।
      • यूट्रोफिकेशन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जल क्षेत्र या उसके किसी हिस्से में खनिजों और पोषक तत्त्वों की मात्रा में वृद्धि होती है।
      • इससे जल में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आती है।
    • चूँकि सुंदरबन क्षेत्र समुद्र से लगा हुआ है, इसलिये क्षेत्र में प्लास्टिक के बढ़ने से प्लास्टिक कचरा समुद्र में प्रवेश कर सकता है।
  • खाद्य  प्रणाली के लिये खतरा:
    • पानी में प्लास्टिक के टूटने से माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा में वृद्धि होगी, जिसके  बाद खाद्य शृंखला में इसके प्रवेश का खतरा है।
  • आजीविका पर प्रभाव:
    • सुंदरबन काफी हद तक मत्स्य पालन और जलीय कृषि पर निर्भर है तथा  पारिस्थितिकी तंत्र में कोई भी नाज़ुक बदलाव न केवल पारिस्थितिकी के लिये बल्कि आजीविका के विनाश का भी कारण बन सकता है।

कुछ संबंधित पहलें:

  • वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक भारत को एकल उपयोग वाले प्लास्टिक से मुक्त करने हेतु देश भर में एकल उपयोग प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिये एक बहु-मंत्रालयी योजना तैयार की थी।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, उत्पादों से उत्पन्न कचरे को इकट्ठा करने की ज़िम्मेदारी उन उत्पादों के उत्पादकों और ब्रांड मालिकों को सौंपी गई है।

सुंदरबन का महत्त्व

  • सुंदरबन पारिस्थितिकी क्षेत्र गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना (GBM) बेसिन के ज्वारीय सक्रिय निचले डेल्टा मैदान में स्थित है।
  • यह सबसे बड़े मैंग्रोव वन और विश्व में एकमात्र मैंग्रोव बाघ निवास स्थान की मेज़बानी करता है।
    • मैंग्रोव वन कई पारिस्थितिकी कार्य करते हैं जैसे कि बहुमूल्य लकड़ी हेतु पेड़ों का उत्पादन, आवास की व्यवस्था, फिनफिश एवं शेलफिश के लिये भोजन और प्रजनन स्थल (Spawning Ground), पक्षियों व अन्य महत्त्वपूर्ण जीवों हेतु आवास का प्रावधान, नई भूमि के निर्माण के लिये सुरक्षित तटरेखाओं तथा तलछट की अभिवृद्धि।
  • बांग्लादेश और भारत के कुछ हिस्सों में फैले, वनाच्छादित क्षेत्रों के भीतर संरक्षित क्षेत्रों (PA) को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा दोनों देशों में विश्व धरोहर स्थलों के रूप में नामित किया गया है।
  • दोनों देशों में 10,000 वर्ग किलोमीटर में फैले प्राकृतिक क्षेत्र भी रामसर साइट या अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की  आर्द्रभूमि हैं।
  • दोनों देशों में वन क्षेत्र को साफ कर अब वहाँ सामूहिक रूप से 7.5 मिलियन से अधिक लोगों के आवास हैं।
  • यह क्षेत्र जीवों की विस्तृत शृंखला के लिये जाना जाता है, जिसमें 260 पक्षी प्रजातियाँ शामिल हैं और यह कई दुर्लभ एवं विश्व स्तर पर खतरे में पड़ी वन्यजीव प्रजातियों जैसे- एस्टुअरीन क्रोकोडाइल, रॉयल बंगाल टाइगर, वाटर मॉनिटर छिपकली, गंगा डॉल्फिन और ओलिव रिडले कछुओं का निवास स्थान है।

आगे की राह

  • सरकार को सुंदरबन बायोस्फीयर रिज़र्व और सुंदरबन टाइगर रिज़र्व के प्रवेश द्वारों की मज़बूत सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • गैर-सरकारी संगठनों (NGO) और स्थानीय लोगों को प्लास्टिक अपशिष्ट को इकट्ठा करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये तथा उसका पुनर्नवीनीकरण भी किया जाना चाहिये।
  • साथ ही सुंदरबन से प्लास्टिक हटाने के लिये सरकार को सफाई अभियान चलाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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