संसदीय विशेषाधिकार और संबंधित मामले | 06 Mar 2024

प्रिलिम्स के लिये:

अविश्वास प्रस्ताव, संसदीय विशेषाधिकार, सर्वोच्च न्यायालय, संविधान के अनुच्छेद 105 और 194

मेन्स के लिये:

संसदीय विशेषाधिकार, संसद और राज्य विधानमंडल

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पी. वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य (CBI/Spe) मामला, 1998, जिसे झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) रिश्वत मामले के रूप में भी जाना जाता है, में 25 वर्ष पुरानी बहुमत की राय को बदल दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है।

  • पिछले फैसले में कहा गया था कि रिश्वत लेने वाले सांसदों पर भ्रष्टाचार के लिये मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, यदि वे सहमति के अनुसार मतदान करते हैं या सदन में बोलते हैं।

पी. वी. नरसिम्हा राव मामला और सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला क्या था?

  • मामले की पृष्ठभूमि:
    • पी.वी. नरसिम्हा राव मामला 1993 के झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) रिश्वतखोरी मामले को संदर्भित करता है। इस मामले में कुछ सांसदों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट करने के लिये रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था।
    • इस मामले ने संसदीय प्रणाली के भीतर भ्रष्टाचार के आरोपों को उजागर किया, विधायी प्रक्रियाओं की अखंडता और निर्वाचित प्रतिनिधियों की जवाबदेही के बारे में चिंताएँ उत्पन्न कीं।
  • 1998 मामले में न्यायालय की टिप्पणी:
    • वर्ष 1998 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने सांसदों (संसद सदस्यों) और विधानसभा के सदस्यों (विधायकों) के लिये रिश्वत के मामलों में अभियोजन से छूट की स्थापना की, जब तक कि वे सौदेबाज़ी के अंत को पूरा नहीं करते।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ मत देने वाले रिश्वत लेने वालों को संसदीय विशेषाधिकार (अनुच्छेद 105(2)) के तहत आपराधिक मुकदमे से छूट दी गई थी।
    • इस निर्णय ने शासन और संसदीय लोकतंत्र के कामकाज में स्थिरता के महत्त्व को रेखांकित किया।
    • न्यायालय की टिप्पणी ने व्यक्तिगत जवाबदेही पर सरकार के सुचारु संचालन को प्राथमिकता दी, यह सुझाव दिया कि रिश्वतखोरी के लिये सांसदों पर मुकदमा चलाने से सरकार की स्थिरता संभावित रूप से बाधित हो सकती है।
  • 2024 मामले में न्यायालय की टिप्पणी:
    • 7-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पी. वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य मामले, 1998 के 5-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को बदल दिया।
      • जिसमें यह स्थापित किया गया था कि संसद सदस्यों और विधान सभाओं के सदस्यों को छूट प्राप्त थी यदि वे इसके लिये रिश्वत लेने के बाद सदन में वोट देते थे।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने लोकतांत्रिक सिद्धांतों और शासन पर रिश्वतखोरी के हानिकारक प्रभाव पर ज़ोर दिया।
    • न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि रिश्वत लेना एक अलग आपराधिक कृत्य है, जो संसद या विधानसभा के भीतर सांसदों के मूल कर्त्तव्यों से असंबंधित है।
    • इसलिये संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के तहत प्रदान की गई छूट रिश्वतखोरी के मामलों तक विस्तारित नहीं होती है।
      • यह निर्णय भारत में एक ज़िम्मेदार, उत्तरदायी और प्रतिनिधि लोकतंत्र के आदर्शों को बनाए रखने के लक्ष्य के साथ, केवल स्थिरता के बदले शासन में जवाबदेही एवं अखंडता को प्राथमिकता देने की दिशा में बदलाव का प्रतीक है।

संसदीय विशेषाधिकार क्या हैं?

  • परिचय:
    • संसदीय विशेषाधिकार संसद के सदस्यों और उनकी समितियों को प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ एवं छूट हैं।
      • ये विशेषाधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में परिभाषित हैं।
      • अनुच्छेद 194 राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों को समान विशेषाधिकार की गारंटी देता है।
    • इन विशेषाधिकारों के तहत, संसद सदस्यों को अपने कर्त्तव्यों के दौरान दिये गए किसी भी बयान या किये गए कार्य के लिये किसी भी नागरिक दायित्व (लेकिन आपराधिक दायित्व नहीं) से छूट दी गई है।
    • संसद ने सभी विशेषाधिकारों को विस्तृत रूप से संहिताबद्ध करने के लिये कोई विशेष कानून नहीं बनाया है। वे पाँच स्रोतों पर आधारित हैं:
      • संवैधानिक प्रावधान
      • संसद द्वारा बनाये गए विभिन्न कानून
      • दोनों सदनों के नियम
      • संसदीय सम्मेलन
      • न्यायिक व्याख्याएँ
  • व्यक्तिगत सदस्य के विशेषाधिकार:
    • संसद में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता {अनुच्छेद 105(1)}
    • किसी सदस्य को संसद या उसकी किसी समिति [अनुच्छेद 105(2)] में कही गई किसी बात या दिये गए वोट के संबंध में किसी भी न्यायालय में किसी भी कार्यवाही से छूट।
    • किसी भी रिपोर्ट, पेपर, वोट या कार्यवाही {अनुच्छेद 105(2)} के संसद के किसी भी सदन के अधिकार के तहत या प्रकाशन के संबंध में किसी भी न्यायालय में कार्यवाही से किसी व्यक्ति को छूट। 
    • प्रक्रिया की किसी भी कथित अनियमितता के आधार पर संसद में किसी भी कार्यवाही [अनुच्छेद 122(1)] की वैधता की जाँच करने के लिये न्यायालयों पर प्रतिबंध। 
    • सदन या उसकी समिति की बैठक जारी रहने के दौरान और बैठक शुरू होने से चालीस दिन पूर्व व समाप्ति (सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 135A) के चालीस दिन बाद तक दीवानी मामलों में सदस्यों की गिरफ्तारी से मुक्ति
  • सदन का सामूहिक विशेषाधिकार:
    • किसी सदस्य की गिरफ्तारी, हिरासत, दोषसिद्धि, कारावास और रिहाई की तत्काल सूचना प्राप्त करने का सदन का अधिकार
    • सभापति/अध्यक्ष की अनुमति प्राप्त किये बिना सदन के परिसर के भीतर गिरफ्तारी से छूट और कानूनी प्रक्रिया।
    • सदन की गुप्त बैठक की कार्यवाही के प्रकाशन का संरक्षण
    • संसदीय समिति के समक्ष प्रस्तुत किये गए साक्ष्य और उसकी रिपोर्ट एवं कार्यवाही को कोई भी तब तक प्रकट या प्रकाशित नहीं कर सकता जब तक कि इन्हें सदन के समक्ष न रखा जाए
    • किसी संसदीय समिति के समक्ष दिये गए साक्ष्य और उसके प्रतिवेदन तथा उसकी कार्यवाही को को किसी के द्वारा तब तक प्रकट अथवा प्रकाशित नहीं किया जा सकता जब तक कि उन्हें सभा पटल पर न रख दिया गया हो।
    • संसद सदस्य अथवा सभा के पदाधिकारी सभा की अनुमति के बिना न्यायालयों में सदन की कार्यवाही के संबंध में न तो कोई साक्ष्य दे सकते हैं, न ही कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सकते हैं।

नोट:

संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ क्या हैं?

  • यूनाइटेड किंगडम:
    • वेस्टमिंस्टर की संसद को उक्त प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जिनमें वाक् स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से उन्मुक्ति और अपनी कार्यवाही को विनियमित करने का अधिकार शामिल है।
    • ये विशेषाधिकार कानून, सामान्य कानून और पूर्व निर्णय/उदाहरण के संयोजन के माध्यम से स्थापित किये जाते हैं।
  • कनाडा: 
    • कनाडा की संसद ने भी अपने सदस्यों के लिये विशेषाधिकार का प्रावधान किया है जिनमें वाक् स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से उन्मुक्ति और विशेषाधिकार के उल्लंघन के लिये दंडित करने का अधिकार शामिल है।
    • ये विशेषाधिकार संविधान अधिनियम, 1867 और कनाडा संसद अधिनियम में उल्लिखित हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया:ऑस्ट्रेलिया की संसद अपने संविधान में निहित विशेषाधिकारों के साथ समान सिद्धांतों का अनुपालन करती है। सदस्यों को वाक् स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से उन्मुक्ति और अपनी कार्यवाही को विनियमित करने का अधिकार प्राप्त है।

संसदीय विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने की क्या आवश्यकता है?

  • संसदीय विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता:
    • स्पष्टता और परिशुद्धता: विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने से संसदीय विशेषाधिकारों की स्पष्ट और सटीक परिभाषा सुनिश्चित होगी। यह किसी भी अस्पष्टता को दूर करते हुए विशेषाधिकारों के उल्लंघनों का स्पष्टीकरण करने में सहायता प्रदान करेगा।
      • एक संविधि/कानून एक सटीक सीमा स्थापित करेगा जिसके प्रावधानों के अतिरिक्त विशेषाधिकार उल्लंघन के लिये कोई दंड नहीं दिया जा सकता है।
    • विस्तारित उत्तरदायित्व: संसदीय विशेषाधिकार के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश बेहतर उत्तरदायित्व तंत्र की सुविधा प्रदान करेंगे जिससे सांसद अपने विशेषाधिकारों का ज़िम्मेदारीपूर्ण उपयोग करने में सक्षम होंगे और साथ ही उनकी उचित जाँच तथा निरीक्षण भी किया जा सकेगा।
    • आधुनिकीकरण और अनुकूलन: संसदीय विशेषाधिकार को संहिताबद्ध करने से समकालीन शासन प्रथाओं और सामाजिक मानदंडों को प्रतिबिंबित करने के लिये मौजूदा कानूनों को अद्यतन तथा आधुनिक बनाने का अवसर मिलेगा जिससे यह सुनिश्चित होगा कि विधायी विशेषाधिकार तीव्रता से विकसित हो रहे राजनीतिक परिदृश्य में प्रासंगिक तथा प्रभावी बने रहेंगे।
    • नियंत्रण एवं संतुलन: संहिताकरण से विशेषाधिकारों पर नियंत्रण और संतुलन स्थापित होगा, जिससे उनके दुरुपयोग को रोका जा सकेगा। इससे प्रेस की स्वतंत्रता में अनावश्यक कटौती पर भी रोक लगेगी।
  • संसदीय विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता नहीं है:
    • संसदीय स्वायत्तता पर अतिक्रमण का जोखिम: संसदीय विशेषाधिकार को संहिताबद्ध करने से संसदीय मामलों को अधिक न्यायिक जाँच या सरकारी हस्तक्षेप के अधीन करके संभावित रूप से विधायिका की स्वायत्तता पर अतिक्रमण हो सकता है।
    • संवैधानिक आदेश के विरुद्ध: अनुच्छेद 122 न्यायालय पर संसद की कार्यवाही की जाँच न करने के प्रतिबंध से संबंधित है। इसमें आगे निम्नलिखित कहा गया है: प्रक्रिया की किसी भी कथित अनियमितता के आधार पर संसद में किसी भी कार्यवाही की वैधता पर प्रश्न नहीं उठाया जाएगा।
    • लचीलेपन में कमी: संहिताकरण संसदीय विशेषाधिकार के लचीलेपन को सीमित कर सकता है, जिससे अप्रत्याशित परिस्थितियों अथवा बदलती राजनीतिक गतिशीलता के अनुकूल होना चुनौतीपूर्ण हो सकता है जिसके लिये विधायी मामलों हेतु अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण की आवश्यकता हो सकती है।
    • जटिलता एवं लंबी प्रक्रिया: संसदीय विशेषाधिकार को संहिताबद्ध करने की प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली हो सकती है, जिसमें विधायकों, कानूनी विशेषज्ञों तथा नागरिक समाज संगठनों सहित हितधारकों के बीच व्यापक विचार-विमर्श एवं आम सहमति बनाने की आवश्यकता होती है।

आगे की राह

  • सुचारु कामकाज सुनिश्चित करने के लिये सदस्यों को संसदीय विशेषाधिकार दिये जाते हैं। हालाँकि इन विशेषाधिकारों को मौलिक अधिकारों के साथ संरेखित किया जाना चाहिये, क्योंकि सांसद नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • यदि विशेषाधिकार इन अधिकारों से टकराते हैं, तो लोकतंत्र अपना सार खो देता है। सांसदों को विशेषाधिकारों का उपयोग ज़िम्मेदारी से किया जाना चाहिये और साथ ही इसके दुरुपयोग से भी बचना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना। 
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना। राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये आरक्षित करना।
  3. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. "भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? क्या इसमें घृणास्पद भाषण भी शामिल है? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य स्वरूपों से थोड़ा अलग धरातल पर क्यों खड़ी हैं? व्याख्या कीजिये. (2014)