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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

फिलिस्तीनी शरणार्थी संकट

  • 20 May 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये

फिलिस्तीनी शरणार्थी संकट, इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद

मेन्स के लिये

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष से संबंधित विभिन्न पहलू 

चर्चा में क्यों?

फिलिस्तीन शरणार्थियों के कल्याण हेतु कार्य करने वाली ‘संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी’ (United Nations Relief and Works Agency-UNRWA) ने COVID-19 संकट से उत्पन्न परिस्थितियों में अपनी बुनियादी सेवाओं को संचालित करने के लिये भारत द्वारा दी जा रही वित्तीय सहायता की सराहना की है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि हाल ही में भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA) को शिक्षा एवं स्वास्थ्य समेत उसके विभिन्न कार्यक्रमों और सेवाओं में समर्थन देने हेतु 2 मिलियन डॉलर प्रदान किये थे।
  • भारत के इस योगदान से UNRWA को अपनी नकदी प्रवाह संबंधी चुनौतियों का समाधान करने में मदद मिलेगी।
  • उल्लेखनीय है कि भारत ने UNRWA को दिये जाने वाले अपने वार्षिक योगदान को वर्ष 2016 में 1.25 मिलियन डॉलर से बढ़ाकर वर्ष 2019 में 5 मिलियन डॉलर तक कर दिया है।
  • इसके अतिरिक्त भारत ने UNRWA को वर्ष 2020 के दौरान 5 मिलियन डॉलर देने का वचन दिया है, इस पूरे योगदान से भारत का UNRWA के सलाहकार आयोग का सदस्य बनने का मार्ग काफी आसान हो गया है।
  • भारत का यह योगदान संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA) को फंडिंग की कमी के कारण उत्पन्न हुए वित्तीय संकट से निपटने में मदद करेगा, जिसके कारण एजेंसी फिलिस्तीनी शरणार्थियों को स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने में भी असमर्थ है।
    • इस अवसर पर भारतीय प्रतिनिधि ने UNRWA द्वारा किये गए सराहनीय कार्य और प्रयासों के प्रति प्रशंसा व्यक्त की। 
  • ध्यातव्य है कि विश्व में लगभग 5 मिलियन फिलिस्तीनी शरणार्थी UNRWA द्वारा प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर हैं।
  • वहीं, एजेंसी द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों में प्रत्येक वर्ष 526,000 छात्रों को शिक्षित किया जाता हैं, जिनमें से आधी महिलाएँ होती हैं।
  • इसी बीच, भारत फिलिस्तीनियों के लिये मेडिकल आपूर्ति की भी तैयारी कर रहा है ताकि उन्हें कोरोनोवायरस से लड़ने में मदद प्रदान की जा सके।

कौन हैं फिलिस्तीनी शरणार्थी?

  • संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA) द्वारा फिलिस्तीनी शरणार्थियों को ‘उन व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिनका निवास स्थान 1 जून, 1946 से 15 मई, 1948 की अवधि के दौरान फिलिस्तीन था और जिन्होंने वर्ष 1948 के संघर्ष के परिणामस्वरूप घर और आजीविका दोनों को खो दिया था।’
  • UNRWA अपनी सेवाएँ मुख्यतः उन्ही लोगों को प्रदान करता है, जो फिलिस्तीनी शरणार्थी की इस परिभाषा के अंतर्गत आते हैं और जो संस्था के साथ पंजीकृत हैं तथा जिन्हें सहायता की आवश्यकता है।
  • इस परिभाषा के तहत पंजीकरण के लिये फिलिस्तीन शरणार्थियों के वंशज भी पात्र हैं, जिसमें गोद लिये बच्चे भी शामिल हैं।
  • UNRWA के आधिकारिक आँकड़े के अनुसार, पंजीकृत फिलिस्तीनी शरणार्थियों में से लगभग एक-तिहाई से अधिक लोग पूर्वी येरुशलम सहित जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में लगभग 58 मान्यता प्राप्त फिलिस्तीन शरणार्थी शिविरों में रहते हैं।

फिलिस्तीनी शरणार्थी संकट

  • उल्लेखनीय है कि फिलिस्तीनी शरणार्थी संकट को समझने के लिये हमें सर्वप्रथम इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को समझना होगा।
  • अरब और यहूदियों के बीच संघर्ष को समाप्त करने में असफल रहे ब्रिटेन ने वर्ष 1948 में फिलिस्तीन से अपने सुरक्षा बलों को हटा लिया और अरब तथा यहूदियों के दावों का समाधान करने के लिये इस मुद्दे को नवनिर्मित संगठन संयुक्त राष्ट्र (UN) के विचारार्थ प्रस्तुत किया।
  • संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन में स्वतंत्र यहूदी और अरब राज्यों की स्थापना करने के लिये एक विभाजन योजना (Partition Plan) प्रस्तुत की जिसे फिलिस्तीन में रह रहे अधिकांश यहूदियों ने स्वीकार कर लिया किंतु अरबों ने इस पर अपनी सहमति प्रकट नहीं की।
  • वर्ष 1948 में यहूदियों ने स्वतंत्र इज़राइल की घोषणा कर दी और इज़राइल एक देश बन गया, इसके परिणामस्वरूप आस-पास के अरब राज्यों (इजिप्ट, जॉर्डन, इराक और सीरिया) ने इज़राइल पर आक्रमण कर दिया। युद्ध के अंत में इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के आदेशानुसार प्राप्त भूमि से भी अधिक भूमि पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • युद्ध के परिणामस्वरूप, फिलिस्तीनियों की एक बड़ी संख्या या तो पलायन कर गई या उन्हें इज़राइल से बाहर जाने और इज़राइल की सीमा के पास शरणार्थी शिविरों में बसने के लिये विवश किया गया और अंततः फिलिस्तीनी शरणार्थी संकट का उदय हुआ। 

इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद के वर्तमान कारण:

  • येरूशलम पर अधिकार को लेकर दोनों देशों में संघर्ष होता रहा है। इज़राइल के द्वारा वर्तमान में तेल अवीब से अपनी राजधानी येरुशलम स्थानांतरित करने का भी फिलिस्तीन द्वारा विरोध किया गया।
  • शरणार्थियों के पुनर्वास को लेकर भी दोनों देशों में मतभिन्नता की स्थिति है। इज़राइल इन्हें फिलिस्तीन में पुनर्स्थापित करना चाहता है और फिलिस्तीन इन्हें वास्तविक स्थानों पर पुनर्स्थापित करने की बात कहता है।
  • फिलिस्तीन, इज़राइल की प्रसारकारी नीतिओं का भी लगातार विरोध कर रहा है।

आगे की राह

  • फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिये चलाए जा रहे कार्यक्रमों हेतु वित्त की कमी सर्वविदित है। संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA) वित्तपोषण की कमी का सामना कर रही है, जिसके कारण संस्था के परिचालन समेत विभिन्न कार्यक्रम प्रभावित हुए हैं।
  • भारत द्वारा इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA) को दी गई फंडिंग, एक स्वागत योग्य कदम है, जिससे एजेंसी अपने कार्यक्रमों का सुचारु संचालन सुनिश्चित कर सकेगी।
  • आवश्यक है कि वर्तमान परिदृश्य को ध्यान में देखते हुए फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिये बेहतर नीतियों और कार्यक्रमों का निर्माण किया जाए और साथ ही इस विषय से संबंधित विभिन्न हितधारकों को भी नीति निर्माण में शामिल किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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