अंतर्राष्ट्रीय संबंध
संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA)
- 05 Jul 2019
- 8 min read
चर्चा में क्यों ?
भारत ने वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र की फिलिस्तीन शरणार्थी एजेंसी को 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान देने की पेशकश की है।
प्रमुख बिंदु
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (United Nations Relief and Works Agency-UNRWA) के मुख्य बजट में अपने वार्षिक वित्तीय योगदान को वर्ष 2016 के 1.25 मिलियन अमेरिकी डालर से चार गुना बढ़ाकर वर्ष 2018 में 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर कर दिया है।
- UNRWA में वित्तीय योगदान की प्रकृति स्वैच्छिक होने के कारण इस वर्ष UNRWA के लिये आवश्यक 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि में से केवल 200 मिलियन डॉलर ही प्राप्त हुए है। इससे फिलिस्तीनी शरणार्थियों को मूलभूत सुविधाएँ प्रदान करने में समस्या हो रही है।
- UNRWA की एक तदर्थ बैठक में 23 देशों ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिये वित्तीय सहायता देने की पेशकश की है। भारत ने सभी देशों से वित्तीय सहायता की राशि में बढ़ोत्तरी की अपील भी की है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, UNRWA की गतिविधियों से शिक्षा में विशेष लाभ हुआ है साथ ही एजेंसी ने लाखों लोगों को मौलिक सेवाएँ भी प्रदान की हैं।
- संयुक्त राष्ट्र ने मौजूदा वित्तपोषण में कमी को देखते हुए सदस्य देशों से सहायता राशि बढ़ाने का आह्वान किया है।
- वर्तमान में फिलीस्तीनी शरणार्थियों की संख्या 5.4 मिलियन है जो पूरे विश्व के शरणार्थियों का 20% है।
भारत और फिलिस्तीन:
- वर्तमान में भारत, फिलिस्तीन में संस्थानों, सेवाओं और प्रशिक्षण के माध्यम से क्षमता निर्माण का कार्य कर रहा है। इसके अतिरिक्त फिलिस्तीनी पेशेवरों को तकनीकी और वित्तीय सहायता भी प्रदान कर रहा है।
- भारत-फिलिस्तीन विकास साझेदारी के तहत पिछले पाँच वर्षों के दौरान कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, सूचना प्रौद्योगिकी, युवा मामलों, महिला सशक्तीकरण और मीडिया के क्षेत्र में 17 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
UNRWA जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में आपातकालीन मानवीय सहायता प्रदान कर रहा है। UNRWA स्वास्थ्य, शिक्षा, राहत कार्य और सामाजिक सेवाओं के माध्यम से इस क्षेत्र के लोगों को मौलिक सुविधाएँ प्रदान करके उनका जीवन स्तर सुधारने का प्रयास कर रहा है।
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष
यूरोप में यहूदियों की जनसंख्या कम परंतु प्रभाव अधिक होने के कारण संघर्ष की स्थिति पैदा हुई। इसी दौरान वर्ष 1897 में यहूदी आंदोलन की शुरुआत हुई और वृहद् यहूदी राष्ट्र की महत्त्वाकाँक्षा लिये यहूदियों ने यूरोप से फिलिस्तीन के क्षेत्रों की ओर पलायन किया। बाल्फोर घोषणा और साइक्स-पिकॉट (Sykes-Picot Agreement) समझौते के बाद इस क्षेत्र में यहूदियों का पलायन और बढ़ा, इससे धार्मिक संघर्षो की भी शुरुआत हुई। वर्तमान में यह क्षेत्र विश्व के सबसे अशांत क्षेत्रों में से एक है।
शरणार्थी समस्या:
वर्ष 1948 में इज़राइल के ऊपर मिस्त्र ,जॉर्डन, इराक और सीरिया ने आक्रमण कर दिया। इस घटना के बाद इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच भी सशस्त्र संघर्ष शुरू हो गया। इन सभी घटनाओं के बाद शरणार्थी समस्या की शुरुआत हुई। 6 दिवसीय(Six Days) और योम किप्यूर के युद्धों के बाद तो शरणार्थी समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया।
इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद के वर्तमान कारण:
- येरूशलम पर अधिकार को लेकर दोनों देशों में संघर्ष होता रहा है। इज़राइल के द्वारा वर्तमान में तेल अवीब से अपनी राजधानी येरुशलम स्थानांतरित करने का भी फिलिस्तीन द्वारा विरोध किया गया।
- शरणार्थियों के पुनर्वास को लेकर भी दोनों देशों में मतभिन्नता की स्थिति है। इज़राइल इन्हें फिलिस्तीन में पुनर्स्थापित करना चाहता है और फिलिस्तीन इन्हें वास्तविक स्थानों पर पुनर्स्थापित करने की बात कहता है।
- फिलिस्तीन, इज़राइल की प्रसारकारी नीतिओं का भी लगातार विरोध कर रहा है।
UN द्वारा उठाये गये कदम:
- वर्ष 1947 में फिलिस्तीन-इज़राइल संघर्ष पर स्थायी समिति बनाई गई।
- वर्ष 1973 में सीज़ फायर रोकने के लिये संकल्प 338 पारित किया गया।
- ओस्लो शांति समझौते, मेड्रिड शांति प्रक्रिया, कैंप डेविड सम्मेलन के माध्यम से भी इस समस्या के समाधान के समाधान के प्रयास किये गए।
- यूरोपीय संघ (EU), अमेरिका (US), संयुक्त राष्ट्र (UN) और रूस द्वारा वर्ष 2003 में एक शांति प्रस्ताव लाया गया।
- येरूशलम को राजधानी निर्धारित करने पर भी महासभा द्वारा इज़राइल की आलोचना की गई।
उपरोक्त प्रयासों के बावजूद भी आज तक इस समस्या का समाधान नही किया जा सका है।
इस मुद्दे पर भारत का दृष्टिकोण:
- भारत वर्ष 1974 में फिलिस्तीन को मान्यता देने वाला पहला गैर-इस्लामिक राष्ट्र था। भारत ने UN में फिलिस्तीन की पूर्ण सदस्यता और येरुशलम को राजधानी बनाने संबंधी प्रस्तावों का भी सदैव समर्थन किया है। वर्तमान की बदलती भू-राजनीति और कृषि के आधुनिकीकरण, हथियार, विज्ञान प्रौद्यौगिकी जैसी आवश्यकताओं के कारण भारत का झुकाव इज़राइल की तरफ हो रहा है।
- भारत को इस मुद्दे पर वैश्विक राजनीति के साथ ही साथ अरब में बड़ी संख्या में भारतीयों की संख्या और खनिज तेल आवश्यकता के मद्देनज़र अपनी नीति का निर्धारण करना चाहिये।
आगे की राह :
- दो राज्य समाधान को मूर्त रूप प्रदान किया जाये।
- इस मुद्दे पर अरब देशों के बजाय फिलिस्तीन को अपना पक्ष रखने दिया जाए साथ ही अरब-इज़राइल संघर्ष समाधान के लिये अलग से प्रयास किये जाएँ।
- वर्तमान मे शरणार्थियों के लियेबेहतर नीतियाँ और कार्यक्रम बनाये जाए।
- शरणार्थियों के कार्यक्रमों के लिये वित्त की कमी को दूर करने के लिये UN में विशेष संकल्प पारित किया जाए।