ओज़ोन प्रदूषण और लॉकडाउन | 26 Jun 2020
प्रीलिम्स के लियेओज़ोन प्रदूषण, पार्टिकुलेट मैटर मेन्स के लियेओज़ोन परत की भूमिका और मानव स्वास्थ्य पर ओज़ोन प्रदूषण का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
'सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट' (Center for Science and Environment-CSE) नामक पर्यावरण विशेषज्ञों के एक समूह द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार, लॉकडाउन की अवधि के दौरान जहाँ पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter-PM) और नाइट्रस ऑक्साइड (Nitrous Oxide) के स्तर में कमी आई है, वहीं कई शहरों में ओज़ोन (Ozone) के स्तर में बढ़ोतरी हुई है।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि CSE द्वारा किया गया यह विश्लेषण 25 मार्च से 31 मई, 2020 तक की लॉकडाउन अवधि के दौरान कुल 15 राज्यों के 22 शहरों के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board-CPCB) द्वारा प्रस्तुत किये गए आँकड़ों पर आधारित है।
- विश्लेषण में यह सामने आया कि दिल्ली-NCR और अहमदाबाद में तकरीबन 65 प्रतिशत लॉकडाउन अवधि में कम-से-कम एक अवलोकन स्टेशन (Observation Station) ऐसा था, जहाँ ओज़ोन का स्तर मानक स्तर से अधिक था।
- विश्लेषण के अनुसार, दिल्ली में इस अवधि (25 मार्च से 31 मई) के दौरान ओज़ोन प्रदूषण की गंभीरता तुलनात्मक रूप से वर्ष 2019 की गर्मियों की अपेक्षा काफी कम थी, किंतु महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि 25 मार्च से 31 मई के दौरान भी ओज़ोन का प्रदूषण स्तर मानक स्तर से अधिक था।
- लॉकडाउन की अवधि के दौरान पार्टिकुलेट मैटर (PM) के स्तर में काफी कमी आई। विश्लेषण के मुताबिक, लगभग सभी शहरों में लॉकडाउन के दौरान औसत PM 2.5 का स्तर 2019 में इसी अवधि की अपेक्षा काफी कम पाया गया।
- हालाँकि जैसे-जैसे लॉकडाउन में छूट प्रदान की गई, उसी के साथ प्रदूषण के स्तर में भी बढ़ोतरी होने लगी। विश्लेषण के अनुसार, लॉकडाउन 4.0 के दौरान जैसे ही सड़कों पर अधिक गाड़ियाँ चलना शुरू हुई वैसे ही औसत NO2 का स्तर तेज़ी से बढ़ने लगा।
क्या है ओज़ोन?
- ओज़ोन (O3) ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है जो वायुमंडल में काफी कम मात्रा में पाई जाती हैं। यह हल्के नीले रंग की तीव्र गंध वाली विषैली गैस होती है।
- ओज़ोन गैस की खोज जर्मन वैज्ञानिक क्रिश्चियन फ्रेडरिक श्योनबाइन ने वर्ष 1839 में की थी।
- इस तीखी विशेष गंध के कारण इसका नाम ग्रीक शब्द 'ओज़िन' से बना है, जिसका अर्थ है सूंघना।
- यह अत्यधिक अस्थायी और प्रतिक्रियाशील गैस है। वायुमंडल में ओज़ोन की मात्रा प्राकृतिक रूप से बदलती रहती है। यह मौसम वायु-प्रवाह तथा अन्य कारकों पर निर्भर है।
ओज़ोन का निर्माण
- ध्यातव्य है कि ओज़ोन गैस किसी भी स्रोत द्वारा प्रत्यक्ष रूप से उत्सर्जित नहीं होती है, बल्कि इसका निर्माण नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जैसी गैसों के तेज़ धूप और ऊष्मा के साथ प्रतिक्रिया करने से होता है। इस प्रकार ओज़ोन गैस को केवल तभी नियंत्रित किया जा सकता है जब सभी स्रोतों से गैसों को नियंत्रित किया जाए।
- ध्यातव्य है कि जब तापमान में वृद्धि होती है, तो ओज़ोन के उत्पादन की दर भी बढ़ जाती है।
- वाहनों और फैक्टरियों से निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड व अन्य गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण करती है।
ओज़ोन प्रदूषण
- ओज़ोन गैस समतापमंडल (Stratosphere) में अत्यंत पतली एवं पारदर्शी परत के रूप में पाई जाती है। यह वायुमंडल में मौज़ूद समस्त ओज़ोन का कुल 90 प्रतिशत है, इसे अच्छा ओज़ोन (Good Ozone) माना जाता है।
- समतापमंडल में यह पृथ्वी को हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (Ultraviolet Radiation) से बचाती है।
- समतापमंडल के अतिरिक्त ओज़ोन की कुछ मात्रा निचले वायुमंडल (क्षोभमंडल- Troposphere) में भी पाई जाती है। ध्यातव्य है कि समतापमंडल में ओज़ोन हानिकारक संदूषक (Pollutants) के रूप में कार्य करती है।
ओज़ोन प्रदूषण का प्रभाव
- ओज़ोन के अंत:श्वसन पर सीने में दर्द, खाँसी और गले में दर्द सहित कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यह ब्रोन्काइटिस (Bronchitis), वातस्फीति (Emphysema) और अस्थमा की स्थिति को और बद्दतर सकता है।
- वैज्ञानिक बताते हैं कि यदि श्वसन संबंधी बीमारियों और अस्थमा आदि से पीड़ित लोग इसके संपर्क में आते हैं तो यह उनके लिये काफी जोखिम भरा हो सकता है।
- इसके अलावा जब किसी संवेदनशील पौधे की पत्तियों में ओज़ोन अत्यधिक मात्रा में प्रवेश करती है तो यह उस पौधे में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को प्रभावित कर सकती है तथा पौधे की वृद्धि को धीमा कर सकती है।