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शासन व्यवस्था

‘ओपन डेटा’ सप्ताह

  • 18 Jan 2022
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने ओपन डेटा अपनाने को प्रोत्साहित करने और भारत के शहरी पारिस्थितिकी तंत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये ‘ओपन डेटा’ सप्ताह शुरू करने की घोषणा की है।

  • यह जनवरी के तीसरे सप्ताह के दौरान यानी 17 जनवरी, 2022 से 21 जनवरी, 2022 तक आयोजित किया जा रहा है।
  • इसका उद्देश्य एक ऐसा मंच प्रदान करना है, जो जटिल शहरी मुद्दों, जैसे कि कोविड -19 महामारी को संबोधित करने हेतु डेटा के उपयोग और प्रचार को बढ़ावा देने के लिये पर्याप्त अवसर प्रदान करता हो।

प्रमुख बिंदु

  • ओपन डेटा के विषय में:
    • ‘ओपन डेटा’ वह डेटा है, जिसे किसी के द्वारा स्वतंत्र रूप से उपयोग, पुन: उपयोग और पुनर्वितरित किया जा सकता है। इसे तीन व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:
      • उपलब्धता और पहुँच: यह न्यूनतम लागत पर आसानी से उपलब्ध होता है और यह प्रयोग करने योग्य रूप में भी उपलब्ध होना चाहिये।
      • पुन: उपयोग और पुनर्वितरण: यह पुन: उपयोग और पुनर्वितरण पर बिना किसी प्रतिबंध के उपलब्ध कराया जाता है।
      • सार्वभौम भागीदारी: कोई भी या हर कोई इसका उपयोग कर सकता है और/या इसका पुन: उपयोग भी कर सकता है। किसी भी मानदंड के आधार पर किसी व्यक्ति या समूह के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिये।
  • शहरी नियोजन में ओपन डेटा के लाभ:
    • पारदर्शिता: सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक पारदर्शिता और अखंडता। यह सार्वजनिक धन के प्रवाह और बाज़ार अंतर्दृष्टि को ट्रैक करने की संभावना को बढ़ाता है।
    • बहु-आयामी सहसंबंध: यह वर्तमान और ऐतिहासिक प्रवृत्तियों को प्रकाशित करता है जिसे सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय जलवायु की जानकारी के साथ जोड़ा जा सकता है।
    • क्रिया-उन्मुख दृष्टिकोण: यह वास्तविक समय में परिवर्तनों को पहचानने, प्रतिक्रिया करने या यहाँ तक कि भविष्यवाणी करने की क्षमता प्रदान करता है।
      • मॉडलिंग और सिमुलेशन के माध्यम से विभिन्न प्रकार के परिवर्तन के प्रभाव का अनुमान और उपलब्ध डेटा की मात्रा के आधार पर उच्च सटीकता के साथ  पूर्वानुमानों का परीक्षण करने की क्षमता।
      • अक्षम या अप्रभावी प्रथाओं की आसान पहचान की अनुमति देकर प्रक्रियाओं और सेवाओं को सुव्यवस्थित करके उत्पादकता में वृद्धि करना। 
    • पर्यावरणीय स्थिरता: अपने स्रोतों की पहचान को सरल बनाकर तथा मौजूदा परियोजनाओं, सेवाओं और बुनियादी ढांँचे के पर्यावरणीय नियमों के अनुपालन में सहायता करके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना।
    • अनुरूप समाधान: समान समस्याओं को विभिन्न कानूनी ढांँचे और विभिन्न जनसांख्यिकी में संबोधित करने की अनुमति देना।
    • डेटा का लोकतंत्रीकरण: यह सूचना को औसत अंतिम-उपयोगकर्त्ता तक पहुँचाने की अनुमति देगा।
      • यह मूल्यों और कार्यों के एक पद्धतिगत ढांँचे का वर्णन करता है जो लोगो या विशिष्ट उपयोगकर्त्ताओं के किसी भी नुकसान को कम करने में सक्षम है।

आगे की राह 

  • कॉन्टैक्टलेस इन्फ्रास्ट्रक्चर का लाभ: भारतीयों के पास बड़े पैमाने पर डेटा की कमी के कारण  एक स्केलेबल मॉडल हेतु  बिल्डिंग ब्लॉक्स तेजी से अपने डिजिटल पदचिह्न का विस्तार कर रहे  हैं-खासकर कोविड- 19 के बाद।
    • भारत पहले से मौजूद संपर्क रहित व्यवहार का लाभ उठा सकता है।
    • आधार ने भारत में 1 अरब से अधिक लोगों को एक विशिष्ट पहचान प्रदान की है।
    • वित्तीय लेन-देन को एक नई परिभाषा देने के लिये एकीकृत भुगतान इंटरफेस जैसे अंतर-संचालित भुगतान तंत्र।
  • व्यक्तिगत डेटा के उपयोग के लिये सहमति: एक ऐसे कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है जो डेटा गोपनीयता सुरक्षा प्रदान करे और इस तरह शासन को डेटा लोकतांत्रिकरण की ओर ले जाए।
    • इस संदर्भ में डेटा प्राइवेसी के लिये गठित जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा समिति की सिफारिशें बेहद महत्त्वपूर्ण हैं।
    • ऐसा कानून भारत के डिजिटल भविष्य को परिभाषित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो व्यक्ति पर केंद्रित हो।

स्रोत-पी.आई.बी.

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