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शासन व्यवस्था

नए आईटी नियमों पर आपत्ति

  • 06 Mar 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

नए आईटी नियम 2021 में सोशल मीडिया मध्यस्थों के लिये निर्धारित नवीनतम मानदंडों पर विशेषज्ञों और वकीलों ने अपनी आपत्ति व्यक्त की है।

  • गौरतलब है कि वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने  सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A पर रोक लगा दी थी, जिसे न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 19 (मुक्त भाषण) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) दोनों के विपरीत पाया था।

प्रमुख बिंदु: 

सभी पर संशय:

  • 'महत्त्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों से स्वचालित रूप से कुछ विशेष शब्दों की निगरानी या ट्रैक (Track)  करने के लिये कहना "एक्टिव हंटिंग" (Active Hunting) के समान है और यह "लोगों को संदिग्ध बना देगा।"
    • उदाहरण: अंतर-धार्मिक विवाह (Interfaith Marriage) या लव जिहाद (Love Jihad) जैसे शब्दों को ट्रैक करना एक प्रकार से पूरी आबादी का अपराधीकरण करने जैसा है क्योंकि अधिकांश लोग अपनी सामान्य चर्चाओं में इन शब्दों का उपयोग कर रहे होंगे। इस तरह एक पूरी आबादी को संदिग्ध बनाया जा रहा है।

      गोपनीयता के अधिकार के खिलाफ:

      • वर्ष 2021 के नए आईटी नियमों के अनुसार, मुख्य रूप से संदेश भेजने संबंधी सेवाएँ प्रदान करने वाले सोशल मीडिया मध्यस्थों को सूचना के पहले प्रवर्तक की पहचान करने की प्रणाली को संभव बनाना चाहिये।
        • यह प्रावधान समग्र सुरक्षा को कमज़ोर करने के साथ गोपनीयता को क्षति पहुँचाएगा और आईटी मंत्रालय द्वारा जारी डेटा संरक्षण विधेयक 2019 के मसौदे में समर्थित डेटा न्यूनीकरण के सिद्धांतों के विपरीत होगा।

          डेटा न्यूनीकरण

          • डेटा न्यूनीकरण का सिद्धांत बताता है कि एकत्र किये गए और संसाधित डेटा को एक निर्धारित समय के बाद रखा या उपयोग नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि यह उन उद्देश्यों/कारणों जिन्हें डेटा गोपनीयता का समर्थन के लिये पहले से स्पष्ट कर दिया गया था, के लिये आवश्यक न हो।
        • किसी संदेश के पहले प्रवर्तक/लेखक की पहचान के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को तोड़ने की आवश्यकता होगी, जिसके लिये उस मौलिक तकनीक से समझौता करना होगा, जिस पर अधिकांश एप आधारित हैं।
        • इसके अतिरिक्त डेटा की अत्यधिक मात्रा के कारण एन्क्रिप्शन करना अब और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि वर्तमान में बड़े पैमाने पर अधिक-से-अधिक व्यक्तिगत डेटा को एकत्र और विश्लेषित किया जा रहा है जो पहले कभी संभव नहीं था।
      • यह "मुक्त और सुलभ इंटरनेट के सिद्धांतों तथा विशेष रूप से एक मज़बूत डेटा संरक्षण कानून की अनुपस्थिति के कारण संविधान में प्रदत्त गोपनीयता के मौलिक अधिकार को कमज़ोर करेगा।" 
        • उदाहरण:  
          • इसके एक प्रावधान के तहत महत्त्वपूर्ण मध्यस्थों को उपयोगकर्त्ताओं द्वारा स्वेच्छा से अपनी पहचान  सत्यापित करने का विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता होगी। 
          • इसके तहत संभवत: उपयोगकर्त्ताओं के लिये कंपनियों को फोन नंबर साझा करना या सरकार द्वारा जारी आईडी पर तस्वीरें भेजना अपरिहार्य हो जाएगा।
          • यह प्रावधान सत्यापन के लिये प्रेषित संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा के संग्रह को प्रोत्साहित करेगा, जो उपयोगकर्त्ताओं की प्रोफाइलिंग और उन्हें लक्षित करने के लिये भी उपयोग किया जा सकता है
        • गोपनीयता का अधिकार:
          • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारतीय संघ ऐतिहासिक निर्णय में गोपनीयता और उसके महत्त्व का वर्णन किया। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार,  निजता का अधिकार एक मौलिक और अविच्छेद्य अधिकार है तथा इसके तहत व्यक्ति से जुड़ी सभी सूचनाओं के साथ उसके द्वारा लिये गए निर्णय शामिल हैं।
          • निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक भाग के रूप में तथा संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित किया गया है।

      अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ:

      • स्वचालित सेंसरशिप और निगरानी उपयोगकर्त्ताओं की रचनात्मकता को दबाने के साथ ही उनकी वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
        • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (a) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।

      अत्यधिक सेंसरशिप:

      • नए नियम सामग्री की सक्रिय निगरानी के लिये मध्यस्थों पर कठोर और व्यापक दायित्व लागू करने का प्रावधान करते हैं।
      • कानूनी जवाबदेही या कार्रवाई के भय से कंटेंट की अति-सेंसरशिप को बढ़ावा मिल सकता है।

      जवाबदेही और पारदर्शिता का अभाव:

      • नए नियमों में सोशल मीडिया कंपनियों को "बाल यौन शोषण जैसी आपत्तिजनक सामग्री को फिल्टर करने के लिये "प्रौद्योगिकी आधारित उपायों (जिसमें स्वचालित उपकरण जैसे-कृत्रिम बुद्धिमत्ता या एआई शामिल हैं) को तैनात करने का निर्देश दिया गया है।
      • हालाँकि पूर्व के उदाहरणों से पता चलता है कि ऐसे उपकरणों में न सिर्फ सटीकता की गंभीर समस्याएँ होती हैं, बल्कि पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों के विपरीत ये प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग को बढ़ावा देते हैं।
        • इससे पहले वर्ष 2020 में एक एआई-चालित टूल 'जेंडरीफाई' (Genderify) जिसे उपभोक्ताओं के  नाम या ईमेल पते का विश्लेषण करके एक व्यक्ति के लिंग की पहचान करने के लिये डिज़ाइन किया गया था, को लॉन्च किये जाने के एक हफ्ते बाद ही पक्षपाती होने के आरोपों के कारण बंद कर दिया गया था।
      • एआई के विकास में कोडिंग पक्षपात अक्सर भेदभाव, अशुद्धि और जवाबदेही तथा पारदर्शिता की कमी का कारण बनता है।

      ऑनलाइन समाचार मीडिया पर नियंत्रण:

      • ये नियम निगरानी में वृद्धि के साथ-साथ अनुपालन की लागत को बढ़ाने हेतु रास्ता खोलते हैं और स्वतंत्र तथा निर्बाध समाचार रिपोर्टिंग पर नियंत्रण को बढ़ावा दे सकते हैं।

      स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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