शासन व्यवस्था
जम्मू और कश्मीर के लिये नियमों की अधिसूचना
- 29 Aug 2020
- 6 min read
प्रीलिम्स के लिये:जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम-2019, धारा 370 को निरस्त करने के कारण मेन्स के लिये:जम्मू और कश्मीर से संबंधित नए नियम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गृह मंत्रालय (Ministry Of Home Affairs- MHA) ने जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के लिये व्यापार के लेन-देन के नियमों को अधिसूचित किया है।
प्रमुख बिंदु:
- इन नियमों को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 55 के तहत अधिसूचित किया गया है।
- अधिनियम की धारा 55 के अनुसार, “उपराज्यपाल (Lieutenant Governor-LG) मंत्रियों को दायित्त्वों के आवंटन के लिये और उपराज्यपाल एवं मंत्रिपरिषद या एक मंत्री के मध्य मतभेद के मामले में व्यापार के अधिक सुविधाजनक लेन देन के लिये मंत्रिपरिषद की सलाह पर नियम बनाएगा।
- ये नियम जम्मू कश्मीर में कार्य आवंटन, विभागों के मध्य व्यापार का वितरण एवं उनकी शक्तियाँ, उपराज्यपाल की कार्यकारी शक्तियाँ आदि का विवरण प्रदान करते हैं।
- नियमों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में स्कूली शिक्षा, कृषि, उच्च शिक्षा, बागवानी, चुनाव, सामान्य प्रशासन, गृह, खनन, बिजली, लोक निर्माण विभाग, आदिवासी मामले और परिवहन जैसे 39 विभाग होंगे।
- पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, अखिल भारतीय सेवाएँ और भ्रष्टाचार विरोधी कार्य उपराज्यपाल के कार्यकारी कार्यों के अंतर्गत आएंगे।
- इसका तात्पर्य यह है कि मुख्यमंत्री या मंत्रिपरिषद की कार्यप्रणाली में अधिक अंतर नहीं होगा।
- ऐसे प्रस्ताव या मामले जो केंद्र शासित प्रदेश की शांति और अमन को प्रभावित करते हैं या किसी अल्पसंख्यक समुदाय, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के हित को प्रभावित करते हैं, उन्हें अनिवार्य रूप से मुख्यमंत्री को सूचित करते हुए मुख्य सचिव के माध्यम से उपराज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
- केंद्र या राज्य सरकार के विवाद से संबंधित कोई भी ऐसा मामला, जिसमें केंद्र शासित प्रदेश के हस्तक्षेप की आवश्यकता है, उसे जल्द से जल्द, मुख्य सचिव के माध्यम से उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया जाएगा।
- केंद्र से प्राप्त सभी महत्त्वपूर्ण आदेशों/दिशा निर्देशों से संबंधित सूचना को जल्द से जल्द मुख्य सचिव, प्रभारी मंत्री, मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के समक्ष लाया जाएगा।
- उपराज्यपाल और एक मंत्री के मध्य उत्पन्न मतभेद के मामले में एक माह उपरांत भी कोई समझौता नहीं हो पाने पर, उपराज्यपाल के निर्णय को मंत्रिपरिषद द्वारा स्वीकार कर लिया जाएगा।
पृष्ठभूमि:
- 5 अगस्त 2019 को केंद्र ने संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिये आवेदन) आदेश, 2019 के माध्यम से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द कर दिया था।
- एक अलग विधेयक जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर (विधायिका के साथ), और लद्दाख (विधायिका के बिना) में विभाजित करने के लिये पेश किया गया था।
- इस कदम ने कई नागरिक समूहों के साथ विवाद पैदा कर दिया और वे जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे की बहाली की मांग करने लगे। सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।
- इस कदम का लाभ उठाते हुए, पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, सर क्रीक और जूनागढ़ को शामिल करते हुए अपना एक नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया।
- चीन ने भारत के इस कदम को "अवैध और अमान्य" कहा और इस मुद्दे को न्यूयॉर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका) में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) में उठाया।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक विशेष समिति ने जम्मू और कश्मीर में एक परीक्षण के आधार पर 4G इंटरनेट सेवाओं की बहाली की सिफारिश की, जिसे अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद राज्य में हिंसा से बचने के लिये निलंबित कर दिया गया था।