विश्व वन लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर नहीं | 12 Nov 2022
प्रिलिम्स के लिये:पेरिस समझौता, वन, क्योटो प्रोटोकॉल, ग्रीन हाउस गैस, पार्टियों का सम्मेलन, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (COP 26), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) मेन्स के लिये:पेरिस जलवायु समझौता और इसके प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया वर्ष 2030 तक वनों की कटाई को रोकने और पूर्व स्थिति को प्राप्त करने संबंधी वन लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर नहीं है।
- पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु वनों की कटाई को रोकना आवश्यक है।
प्रमुख बिंदु:
- उत्सर्जन में कटौती के लिये आवश्यक प्रतिबद्धताओं का केवल 24% ही अब तक पूरा किया गया है।
- वन आधारित कार्य पेरिस समझौते की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने में एक आवश्यक योगदान दे सकते हैं। यह जलवायु आपदा को रोकने में मदद करने के लिये लगभग 27% समाधान प्रदान कर सकता है।
- वन आधारित समाधान वर्ष 2030 तक लगभग 4 गीगाटन की एक महत्त्वपूर्ण वार्षिक शमन क्षमता प्रदान करते हैं
- स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदाय इन परिणामों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- हाई फारेस्ट लो डिफॉरेस्टशन (HFLD) देश दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय वन कार्बन का 18% संग्रहीत करते हैं और पर्याप्त जलवायु वित्त तक उनकी पहुँच में तेज़ी से सुधार किया जाना चाहिये।
- लेकिन वर्तमान वन जलवायु वित्त तंत्र उनके ऐतिहासिक संरक्षण को पुरस्कृत करने और वनों की कटाई के बढ़ते दबावों का विरोध करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
रिपोर्ट में दिये गए सुझाव:
- मौजूदा प्रतिबद्धताओं को वास्तविकता में परिवर्तित किया जाना चाहिये और वनों के वित्तपोषण के लिये तत्काल नई प्रतिबद्धताएँ की जानी चाहिये।
- इनमें से केवल आधी प्रतिबद्धताओं को ‘उत्सर्जन में कमी खरीद समझौतों’ के माध्यम से प्राप्त किया गया है। इन प्रतिबद्धताओं के लिये धन अभी तक उपलब्ध नहीं कराया गया है।
- महत्त्वाकांक्षी वन-आधारित जलवायु समाधानों को विकसित करने और कार्यान्वित करने के लिये देशों को अपने कार्यों को बढ़ाने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
- वनों की रक्षा, स्थायी प्रबंधन और पुनर्स्थापना के लिये प्रभावी कार्य लागत जलवायु परिवर्तन शमन प्रदान कर सकते हैं। ये क्रियाएँ जैवविविधता में गिरावट को भी कम कर सकती हैं तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ा सकती हैं।
- वर्ष 2030 के लक्ष्यों को पहुँच के भीतर बनाए रखने के लिये वर्ष 2025 के बाद से प्रत्येक वर्ष उत्सर्जन में कमी की जानी चाहिये।
पेरिस समझौता:
- परिचय:
- पेरिस समझौते (जिसे कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़-21 या COP-21 के रूप में भी जाना जाता है) को वर्ष 2015 में अपनाया गया था।
- इसने क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लिया जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये पूर्व में किया गया समझौता था।
- पेरिस समझौता एक वैश्विक संधि है जिसमें लगभग 200 देश, ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) के उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिये सहयोग करने पर सहमत हुए हैं।
- यह पूर्व-उद्योग स्तरों की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे, अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का प्रयास करता है।
- पेरिस समझौते (जिसे कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़-21 या COP-21 के रूप में भी जाना जाता है) को वर्ष 2015 में अपनाया गया था।
- कार्य:
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के अलावा पेरिस समझौते में हर पाँच वर्ष में उत्सर्जन में कटौती के लिये प्रत्येक देश के योगदान की समीक्षा करने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है ताकि वे संभावित चुनौती के लिये तैयार हो सकें। वर्ष 2020 तक, देशों ने NDCs के रूप में ज्ञात जलवायु कार्रवाई के लिये अपनी योजनाएँ प्रस्तुत की थीं।
- दीर्घकालिक रणनीतियाँ: पेरिस समझौते के तहत दीर्घकालिक लक्ष्य की दिशा में उचित प्रयास करने के लिये देशों को वर्ष 2020 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने हेतु दीर्घकालिक विकास रणनीति (LT-LEDS) तैयार करने एवं प्रस्तुत करने को कहा गया है।
- दीर्घकाल में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने हेतु विकास रणनीतियांँ (LT-LEDS) NDC के लिये दीर्घकालिक क्षितिज प्रदान करती हैं परंतु NDC की तरह वे अनिवार्य नहीं हैं।
- प्रगति रिपोर्ट:
- पेरिस समझौते के सहयोग से देशों ने उन्नत पारदर्शी ढाँचा (ETF) स्थापित किया है। वर्ष 2024 से शुरू होने वाले ETF के तहत देश जलवायु परिवर्तन शमन, अनुकूलन उपायों और प्रदत्त या प्राप्त समर्थन से की गई कार्रवाइयों एवं प्रगति की पारदर्शी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।
- इसमें प्रस्तुत रिपोर्टों की समीक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रक्रियाओं का भी प्रावधान है।
- ETF के माध्यम से एकत्र की गई जानकारी वैश्विक स्टॉकटेक में उपलब्ध होगी जो दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में सामूहिक प्रगति का आकलन करेगी।
- पेरिस समझौते के सहयोग से देशों ने उन्नत पारदर्शी ढाँचा (ETF) स्थापित किया है। वर्ष 2024 से शुरू होने वाले ETF के तहत देश जलवायु परिवर्तन शमन, अनुकूलन उपायों और प्रदत्त या प्राप्त समर्थन से की गई कार्रवाइयों एवं प्रगति की पारदर्शी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।
आगे की राह
- इस दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये देशों को सदी के मध्य तक जलवायु-तटस्थ विश्व निर्माण के लिये जल्द-से-जल्द ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी हेतु वैश्विक लक्ष्य रखना चाहिये।
- मध्यम अवधि के डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये स्पष्ट मार्ग के साथ विश्वसनीय अल्पकालिक प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता है, जो वायु प्रदूषण जैसी कई चुनौतियों को ध्यान में रखता हो, साथ ही विकास के लिये अधिक रक्षात्मक विकल्प हो सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) |