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जैव विविधता और पर्यावरण

नीलगिरि हाथी कॉरिडोर का मामला

  • 01 Feb 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने अक्तूबर 2020 में गठित एक तकनीकी समिति में संरक्षणवादी (Conservationist) की नियुक्ति की है। इस समिति का कार्य तमिलनाडु में अधिकारियों द्वारा नीलगिरि हाथी कॉरिडोर के क्षेत्रफल में मनमाना बदलाव करने और लोगों के घरों को ज़बरदस्ती सील करने के खिलाफ भूस्वामियों की शिकायतों की जाँच करना है।

प्रमुख बिंदु

अक्तूबर 2020 का मामला:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार के हाथी कॉरिडोरकी अधिसूचना और नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व के मध्य से आने-जाने वाले जंगली जानवरों के प्रवासी मार्ग की सुरक्षा के अधिकार को बरकरार रखा था।
  • शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि पर्यावरण के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण "कीस्टोन प्रजाति" जैसे- हाथियों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने हाथी कॉरिडोर के संदर्भ में रिसॉर्ट मालिकों एवं निजी भूमि मालिकों की आपत्तियों पर सुनवाई के लिये एक समिति के गठन की अनुमति दी जिसमें उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश एवं दो अन्य व्यक्ति शामिल होंगे।
  • सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला जुलाई 2011 के मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ रिसॉर्ट्स/प्राइवेट ज़मींदारों द्वारा दायर अपील पर आधारित था।

मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला:

  • मद्रास उच्च न्यायालय ने वर्ष 2011 में नीलगिरि ज़िले के सिगुर पठार में एलीफेंट कॉरिडोर के लिये तमिलनाडु सरकार की अधिसूचना (2010) की वैधता को  बरकरार रखा।
  • मद्रास उच्च न्यायालय ने जुलाई 2011 में घोषणा की थी कि तमिलनाडु सरकार को केंद्र सरकार के 'प्रोजेक्ट एलीफेंट' (Project Elephant) के साथ-साथ राज्य के नीलगिरि ज़िले में हाथी कॉरिडोर को अधिसूचित करने के लिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A (G) के तहत अधिकार प्राप्त है। 
    • अनुच्छेद 51A(G) में कहा गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार का कार्य करेगा एवं जीवित प्राणियों के प्रति दया का भाव रखेगा।
  • इस निर्णय द्वारा नीलगिरि हाथी गलियारे के भीतर आने वाली रिसॉर्ट मालिकों और अन्य निजी भूस्वामियों की भूमि को खाली कराने की अधिसूचना को बरकरार रखा गया।

नीलगिरि हाथी कॉरिडोर:

  • यह हाथी गलियारा, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील सिगुर पठार (Sigur Plateau) में स्थित है, यह पठार परस्पर पश्चिमी और पूर्वी घाटों से संबद्ध है और हाथियों की आबादी तथा उनकी आनुवंशिक विविधता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • इस कॉरिडोर के दक्षिण-पश्चिम में नीलगिरि पहाड़ियाँ और उत्तर-पूर्वी भाग में मोयार (Moyar) नदी घाटी स्थित है। हाथी प्रायः भोजन और पानी की तलाश में पठार को पार करते हैं।
  • भारत में लगभग 100 हाथी कॉरिडोर हैं, जिनमें से लगभग 70% का उपयोग नियमित रूप से किया जाता है।
    • 75%  हाथी कॉरिडोर दक्षिणी, मध्य और उत्तर-पूर्वी जंगलों में है।
    • ब्रह्मगिरि-नीलगिरि-पूर्वी घाट पर्वतमाला में लगभग 6,500 हाथी रहते हैं।

हाथी कॉरिडोर के लिये चुनौतियाँ: अगस्त 2017 में जारी 800 पृष्ठ वाले एक अध्ययन 'राइट ऑफ पैसेज' (Right of Passage) में भारत में अवस्थित 101 हाथी गलियारों से संबंधित विवरणों की पहचान आदि के विषय में जानकारी प्रदान की गई थी।

  • पैसेज की चौड़ाई में कमी: वर्ष 2005 में 41% कॉरिडोरों की चौड़ाई तीन किलोमीटर थी लेकिन वर्ष 2017 में यह केवल 22% बचा था। इससे यह पता चलता है कि कैसे पिछले 12 वर्षों में कॉरिडोरों की चौड़ाई संकुचित होती रही है।
  • गलियारों पर मानव अतिक्रमण: वर्ष 2017 में 21.8% कॉरिडोर मानव बस्तियों से मुक्त थे, जबकि यह संख्या वर्ष 2005 में 22.8% थी।
  • बाधित क्षेत्र: उत्तर-पश्चिम भारत में लगभग 36.4% हाथी गलियारों में से मध्य भारत में 32%, उत्तरी पश्चिम बंगाल में 35.7% और पूर्वोत्तर में 13% हाथी गलियारों के पास से रेलवे लाइनें गुज़रती हैं। 
    • लगभग दो-तिहाई गलियारों के पास से या तो राष्ट्रीय या राज्य राजमार्ग गुज़रता है। स्पष्ट रूप से इससे न केवल हाथियों का निवास स्थान प्रभावित होता है बल्कि उनकी गतिविधियाँ भी बाधित होती हैं।
    • रेलवे पटरियों और राजमार्गों के अलावा 11% गलियारों के पास से नहरें गुज़रती हैं, जबकि 12% हाथी गलियारे खनन एवं पत्थरों के उत्खनन से प्रभावित हैं।
  • कॉरिडोर के साथ-साथ भूमि उपयोग: भूमि उपयोग के संदर्भ में वर्ष 2005 के 24% की तुलना में वर्ष 2017 में केवल 12.9% गलियारे पूरी तरह से वनावरण के अधीन हैं।
    • देश के हर तीन हाथी गलियारों में से दो अब कृषि गतिविधियों से प्रभावित हैं।

हाथियों के संरक्षण के लिये अन्य पहलें:

नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व

  • उत्पत्ति: 
    • ‘नीलगिरि’ का शाब्दिक अर्थ ’नीले पहाड़ों’ से है। इस नाम की उत्पत्ति नीलगिरि पठार के नीले फूलों वाले पहाड़ों से हुई है।
    • नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व भारत का पहला बायोस्फीयर रिज़र्व है। इसकी स्थापना  वर्ष 1986 में की गई थी।
  • भौगोलिक अवस्थिति:
    • नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व का कुल क्षेत्रफल 5,520 वर्ग किमी. है।
    • यह बायोस्फीयर रिज़र्व तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के कुछ हिस्सों को शामिल करता है।
  • पारिस्थितिक विशेषताएँ:
    • बायोटिक ज़ोन का संधि-स्थल: यह उष्णकटिबंधीय वन बायोम का उदाहरण है जो विश्व के एफ्रो-ट्रॉपिकल (Afro-Tropical) और इंडो-मलायन (Indo-Malayan) बायोटिक ज़ोन के संधि-स्थल को चित्रित करता है।
    • जैव विविधता हॉटस्पॉट: पश्चिमी घाट बायोग्राफिकल रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है और विख्यात जैव विविधता हॉटस्पॉट्स (बायोग्राफिकल क्षेत्रों में स्थानिक प्रजातियों का घनत्व अत्यधिक होता है) क्षेत्रों में में से एक है।
  • वनस्पति:
    • यह रिज़र्व पारिस्थितिकी तंत्र का एक विस्तृत क्षेत्र है। इसका कोर क्षेत्र केरल और तमिलनाडु में फैला हुआ है, जिसमें सदाबहार, अर्द्ध सदाबहार, पर्वतीय शोला वन और घास के मैदान पाए जाते हैं।
    • कर्नाटक के कोर क्षेत्र में ज़्यादातर शुष्क पर्णपाती, नम पर्णपाती, अर्द्ध सदाबहार  वन और झाड़ियाँ पाई जाती हैं।
  • जीव-जंतु:
    • इस रिज़र्व में नीलगिरि ताहर, नीलगिरि लंगूर, ब्लैकबक, टाइगर, भारतीय हाथी आदि जानवर पाए जाते हैं।
    • इस क्षेत्र में नीलगिरि डानियो (Nilgiri danio), नीलगिरि बार्ब (Nilgiri barb), बोवनी बार्ब (Bowany barb) आदि स्थानिक मछलियाँ पाई जाती हैं।
  • जल संसाधन:
    • रिज़र्व क्षेत्र में कावेरी नदी की कई प्रमुख सहायक नदियों जैसे- भवानी, मोयार, काबिनी साथ ही चालियार, पुनमपुझा आदि का उद्दगम स्रोत और जलग्रहण क्षेत्र है।
  • जनजातीय जनसंख्या:
    • नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व में कई आदिवासी समूह जैसे- टोडा, इरुल्लास, कुरुम्बस, पनियास, आदियंस, अल्लार, मलायन आदि रहते हैं।
  • NBR में संरक्षित क्षेत्र:
    • मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, वायनाड वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान और साइलेंट वैली इस आरक्षित क्षेत्र में मौजूद संरक्षित क्षेत्र हैं।

स्रोत: द हिंदू

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