प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को क्षमता बढ़ाने का आदेश | 03 Apr 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Haryana State Pollution Control Board) को निर्देश दिया है कि वह अपनी क्षमता को मज़बूत करे, साथ ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) से कहा कि वह एक समान भर्ती मापदंड अपनाए।
- यह निर्देश पर्यावरणीय मानदंडों के अनुपालन हेतु बेहतर निगरानी सुनिश्चित करने के लिये दिया गया।
- इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने जनवरी 2021 में हरियाणा में अनुपचारित सीवेज द्वारा जल निकायों में प्रदूषण पर स्वतः संज्ञान लिया था।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- याचिका:
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स (State Pollution Control Boards) द्वारा वर्ष 2018 में मौजूदा निगरानी तंत्र को संशोधित करने के लिये NGT की प्रमुख पीठ के समक्ष एक मामला दायर किया गया था।
- इसमें जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के साथ-साथ वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के अनिवार्य निरीक्षण और स्वतः नवीनीकरण के लिये कंसेंट टू ऑपरेट (Consent to Operate) प्रमाणपत्र शामिल है।
- इस याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board) की एक पूर्व रिपोर्ट ने हरियाणा में भूजल की गुणवत्ता में गिरावट की तरफ इशारा किया था।
- भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General) की वर्ष 2016 की रिपोर्ट में भी बताया गया था कि निगरानी तंत्र की कमज़ोरी से कई परियोजनाएँ बिना सीटीओ प्रमाणपत्र के संचालित हैं।
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स (State Pollution Control Boards) द्वारा वर्ष 2018 में मौजूदा निगरानी तंत्र को संशोधित करने के लिये NGT की प्रमुख पीठ के समक्ष एक मामला दायर किया गया था।
- एनजीटी की कार्रवाई:
- एनजीटी ने हरियाणा सरकार को अपनी निरीक्षण नीति को फिर से लागू करने और कानून का प्रभावी प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिये एक आदेश पारित किया।
- हरियाणा का प्रस्ताव:
- एनजीटी के आदेश का पालन करते हुए हरियाणा सरकार ने निरीक्षण की आवृत्ति में वृद्धि, रियल टाइम डेटा के लिये ऑनलाइन निगरानी उपकरणों की स्थापना करने और दस्तावेज़ों के नवीनीकरण से पूर्व उनके सत्यापन हेतु एक संशोधित नीति का प्रस्ताव किया।
वर्तमान आदेश:
- निरीक्षण की आवृत्ति में वृद्धि करना।
- SPCB की क्षमता में वृद्धि करना/प्रदूषण नियंत्रण समितियों (Pollution Control Committees) की क्षमता में वृद्धि करना।
- पर्यावरण क्षतिपूर्ति निधि का उपयोग करने के लिये CPCB की क्षमता में वृद्धि।
- राज्य PCB/PCC के वार्षिक निष्पादन का लेखापरीक्षा करना।
- CPCB के प्रमुख पदों के लिये योग्यता, न्यूनतम पात्रता मानदंड और आवश्यक अनुभव का प्रारूप तैयार करना।
महत्त्व:
- SPCB की शक्ति और प्राधिकारियों के साथ 'ईज़ ऑफ डूइंग' के नाम पर समझौता किया गया। यह एनजीटी के हालिया निर्णय CPCB/SPCB/PCCs को मज़बूत करने की लंबे समय से विलंबित पहल की शुरुआत है।
- एनजीटी के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया जा सकता है। एनजीटी ने उन अड़चनों को दूर करने की कोशिश की है, जिनका इस्तेमाल पर्यावरण नियमन की मज़बूती को रोकने के लिये किया जा रहा था।
- CPCB को मानक भर्ती नियमों को लाने लिये कहा गया, इस फैसले का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका सभी राज्यों द्वारा पालन किया जा सकता है। मौजूदा SPCBs भर्ती नियमों का दशकों से नवीनीकरण नहीं किया गया है।
नोट:
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:
- इसका गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
- इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
- यह बोर्ड पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:
- ये बोर्ड CPCB के पूरक और सांविधिक होते हैं जो संबंधित राज्य के अधिकार क्षेत्र के भीतर पर्यावरण कानूनों और नियमों को लागू करने के लिये अधिकृत होते हैं।
पर्यावरण मुआवज़ा:
- पर्यावरण क्षतिपूर्ति पर्यावरण के संरक्षण का एक साधन है जो “पॉल्यूटर पे प्रिंसिपल” (Polluter Pays Principle) पर काम करता है।
पर्यावरण क्षतिपूर्ति कोष:
- यह पर्यावरण के उल्लंघन के चलते वसूले गए धन का एक विशेष प्रकार का कोष है।
- उदाहरण: जल निकायों में अवैध निर्वहन।