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डेली अपडेट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था

नवीन आर्थिक सिद्धांतों को लागू करने आवश्यकता

  • 13 May 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

वाशिंगटन सहमति

मेन्स के लिये:

भारत को नवीन आर्थिक मॉडल की आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?

अर्थशास्त्रियों के अनुसार, COVID-19 महामारी के साथ 'वाशिंगटन सहमति' (Washington Consensus) प्रतिमान; जो व्यापक आर्थिक उदारीकरण पर बल देती है, की समाप्ति संभव है तथा वैश्विक अर्थव्यवस्थाएँ महामारी के बाद नवीन आर्थिक प्रतिमानों को अपना सकती है।

प्रमुख बिंदु:

  • COVID-19 महामारी, सभी देशों को अपने अर्थव्यवस्थाओं के मॉडलों पर पुनर्विचार करने का अवसर देता है।
  • यह महामारी देशों को अर्थव्यवस्था को अधिक लचीला तथा निष्पक्ष बनाने का बेहतर अवसर प्रदान करती है।

वाशिंगटन सहमति' (Washington Consensus):

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध तक 'राज्य समर्थित अर्थव्यवस्था' के साथ जुड़ी अनेक सीमाओं से विश्व परिचित हुआ तथा बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्थाओं अर्थात् निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन देना प्रारंभ किया गया।
  • निजी क्षेत्र की भूमिका को बढ़ाने की दिशा में कई देशों द्वारा अर्थव्यवस्था में 'सरकार की न्यूनतम भूमिका' के तर्क के साथ अपनी आर्थिक नीतियों में व्यापक बदलाव का समर्थन किया गया।
  • 'वाशिंगटन सहमति' के माध्यम से देशों को उदारवादी विकास रणनीतियों को अपनाने पर बल दिया गया।
  • यह आम सहमति आर्थिक सुधार को निर्देशित करने वाली आर्थिक नीतियों का एक समूह है। इसमें वृहद आर्थिक स्थिरीकरण, व्यापार तथा निवेश के क्षेत्र में अर्थव्यवस्था को खोलना तथा घरेलू अर्थव्यवस्था के लिये भी बाज़ार आधारित शक्तियों का विस्तार करना आदि शामिल हैं।

‘वाशिंगटन सहमति’ नाम क्यों? 

  • 'वाशिंगटन सहमति' शब्द का प्रयोग सामान्यत: ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund), विश्व बैंक (World Bank) और 'अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ ट्रेज़री' के बीच आर्थिक सुधारों तथा उदारीकरण की सहमति के लिये प्रयुक्त किया जाता है। 
  • इस सहमति के माध्यम से इस बात पर ज़ोर दिया गया कि ‘वैश्विक दक्षिण’ (Global South) एशिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका के विकासशील देशों के लिये प्रयुक्त किया जाने वाला सामान्य शब्द) के विकास के लिये नव उदारवाद, मुक्त बाज़ार व्यवस्था तथा ‘राज्य का न्यूनतम हस्तक्षेप’ आवश्यक है।

नवीन आर्थिक प्रतिमान: 

  • ‘COVID-19 महामारी के बाद के चरण में हमें नवीन आर्थिक मॉडल; जो बॉटम-अप उपागम पर आधारित है, की आवश्यकता है। इस दिशा में निम्नलिखित तीन आर्थिक सिद्धांतों को लागू किया जाना चाहिये।

'इकॉनोमी ऑफ स्केल' के स्थान पर 'इकॉनोमी ऑफ स्कॉप' की आवश्यकता:

  • ‘इकॉनोमी ऑफ स्केल’ में कम लागत पर वृहद उत्पादन करके विश्व में आपूर्ति बढ़ाने पर बल दिया जाता है। परंतु इस प्रतिमान पर आधारित देशों का आर्थिक विकास, वैश्विक आपूर्ति श्रंखला में कहीं भी होने वाले आर्थिक नाकेबंदी के प्रति सुभेद्य होता है।
  • 'मेक इन इंडिया' पहल जिसे मुक्त व्यापार के समर्थकों द्वारा खारिज़ कर दिया गया था COVID-19 महामारी के कारण एक आवश्यकता बन गई है। 'मेक इन इंडिया' जैसी पहल आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बनाए रखने तथा रोज़गार का सृजन करने के लिये आवश्यक है।

वैश्विक प्रणालीगत समस्याओं के समाधान के लिये स्थानीय प्रणालियों की आवश्यकता:

  • 'साझा संसाधनों की त्रासदी' (Tragedy of the Commons)-1968, यह वह स्थिति होती है जिसमें देश खुद के स्वार्थ की दिशा में कार्य करते हैं तथा साझा संसाधनों की बर्बादी की दिशा में कार्य करते हैं। यह सिद्धांत साझा संपत्तियों के निजीकरण पर बल देता है। वर्ष 1970 के दशक से यह सिद्धांत अर्थशास्त्र का प्रमुख स्कूल बन गया।
  • एलिनॉर ओस्ट्रोम, जिन्हें वर्ष 2008 में अर्थशास्त्र के लिये नोबेल पुरस्कार दिया गया था (62 पुरुषों के बाद पहली महिला अर्थशास्त्र पुरस्कार विजेता), ने ‘साझा संसाधनों की त्रासदी’ के लिये स्पष्टीकरण देते हुए तर्क दिया कि ‘साझा संसाधनों’ का प्रबंधन लाभकारी होता है यदि इन संसाधनों के निकटस्थ देश प्रबंधन में शामिल हैं।
  • 'साझा संसाधनों की त्रासदी' तब होती है जब बाहरी समूह अपनी शक्ति (राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक रूप से) के आधार पर व्यक्तिगत लाभ में वृद्धि करते हैं। अत: उसके द्वारा 'बॉटम अप' दृष्टिकोण का बहुत समर्थन किया गया तथा व्यक्तियों और समुदायों की भागीदारी पर बल दिया गया।

लोगों को सशक्त बनाना वास्तविक लोकतंत्र की मूलभूत आवश्यकता:

  • महात्मा गांधी ने कहा था भारत गाँवों में रहता है। गांधी के अनुसार वैश्विक गाँव की अवधारणा तब तक साकार नहीं होती जब तक स्थानीय गाँव तथा नगरों के मध्य संतुलन स्थापित नहीं होता है। लोगों को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों के प्रति अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है। 

निष्कर्ष: 

  • COVID- 19 महामारी के संकट के बाद दुनिया में जो स्थिति बनी है उसे नए नज़रिये से देखने की आवश्यकता है। भारत को व्यापक आर्थिक सुधारों की ओर बढ़ते हुए आत्मनिर्भर भारत के निर्माण करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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