भारतीय अर्थव्यवस्था
श्रमिक आय और उपभोग व्यय को बढ़ावा देने की आवश्यकता
- 08 Feb 2022
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण व्यापक आर्थिक संकेतक, सरकारी बजट। मेन्स के लिये:बजट 2022 में राजकोषीय समेकन दृष्टिकोण। |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय बजट 2022-23 में राजकोषीय घाटा, नॉमिनल जीडीपी (Nominal GDP) का 6.4% रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है जो कि 31 मार्च, 2022 को समाप्त होने वाले चालू वित्त वर्ष के संशोधित आकलन के तहत अनुमानित 6.9% से कम है।
- सरल शब्दों में राजकोषीय घाटे का आशय सरकार के व्यय की तुलना में सरकार की आय में कमी से है।
- नॉमिनल जीडीपी, सकल घरेलू उत्पाद का मौजूदा बाज़ार कीमतों पर किया मूल्यांकन है। इसमें बाज़ार कीमतों में हुए सभी बदलाव शामिल होते हैं जो मुद्रास्फीति या अपस्फीति के कारण चालू वर्ष के दौरान होते हैं।
प्रमुख बिंदु
इस वर्ष के बजट का आर्थिक संदर्भ:
- श्रमिक आय और उपभोग व्यय में कमी:
- हालांँकि हर आर्थिक संकट में उत्पादन वृद्धि दर में तीव्र गिरावट शामिल होती है, भारत में वर्तमान संकट का कारण मुनाफे की तुलना में श्रमिक आय में तेज़ी से कमी आना है।
- श्रमिक आय में परिणामी कमी खपत-जीडीपी अनुपात में तीव्र गिरावट के साथ-साथ महामारी के दौरान उपभोग व्यय के से संबंधित थी।
- सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के चार घटकों में व्यक्तिगत उपभोग, व्यावसायिक निवेश, सरकारी खर्च और शुद्ध निर्यात शामिल हैं।
- श्रमिक आय में परिणामी कमी खपत-जीडीपी अनुपात में तीव्र गिरावट के साथ-साथ महामारी के दौरान उपभोग व्यय के से संबंधित थी।
- हालांँकि हर आर्थिक संकट में उत्पादन वृद्धि दर में तीव्र गिरावट शामिल होती है, भारत में वर्तमान संकट का कारण मुनाफे की तुलना में श्रमिक आय में तेज़ी से कमी आना है।
- संरचनात्मक चुनौती:
- यह भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने से संबंधित है जिसने महामारी से पूर्व की अवधि में भी विकास को प्रतिबंधित कर दिया था।
संरचनात्मक चुनौतियों के संबंध में बजट-2022 की प्रमुख कमियांँ:
- राजस्व व्यय:
- सकल घरेलू उत्पाद में राजस्व और गैर-ऋण प्राप्तियों का हिस्सा कमोबेश अपरिवर्तित रहा है, राजकोषीय समेकन (Fiscal Consolidation) द्वारा मुख्य रूप से व्यय-जीडीपी अनुपात को कम करने की मांग की गई है।
- राजकोषीय समेकन से तात्पर्य राजकोषीय घाटे को कम करने के तरीकों और साधनों से है।
- इस व्यय का भार बढ़ते राजस्व व्यय के रूप में सामने आया।
- मज़दूरी और वेतन, सब्सिडी या ब्याज के भुगतान पर व्यय को आमतौर पर राजस्व व्यय के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
- सकल घरेलू उत्पाद में राजस्व और गैर-ऋण प्राप्तियों का हिस्सा कमोबेश अपरिवर्तित रहा है, राजकोषीय समेकन (Fiscal Consolidation) द्वारा मुख्य रूप से व्यय-जीडीपी अनुपात को कम करने की मांग की गई है।
- श्रमिकों की आजीविका और आय पर प्रभाव:
- चूँकि राजस्व व्यय के बड़े हिस्से में खाद्य सब्सिडी तथा सामाजिक एवं आर्थिक सेवाओं में वर्तमान खर्च शामिल हैं, राजस्व व्यय के आवंटन में कमी कई प्रमुख खर्चों में गिरावट के साथ जुड़ी हुई है जो श्रमिक आय व आजीविका को प्रभावित करती है।
- उदाहरण के लिये कृषि और संबद्ध गतिविधियों तथा ग्रामीण विकास दोनों के लिये आवंटन में वर्ष 2021-22 की तुलना में वर्ष 2022-23 में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
- महामारी के बीच चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर कुल व्यय में वर्ष 2021-22 की तुलना में वर्ष 2022-23 में तेज़ गिरावट दर्ज की गई। इस तरह के व्यय में कमी सामाजिक क्षेत्र के कुल व्यय के लिये आवंटन में समग्र गिरावट के साथ जुड़ी हुई है।
- चूँकि राजस्व व्यय के बड़े हिस्से में खाद्य सब्सिडी तथा सामाजिक एवं आर्थिक सेवाओं में वर्तमान खर्च शामिल हैं, राजस्व व्यय के आवंटन में कमी कई प्रमुख खर्चों में गिरावट के साथ जुड़ी हुई है जो श्रमिक आय व आजीविका को प्रभावित करती है।
- कम निगम कर अनुपात:
- महामारी के दौरान मुनाफे में तेज़ वृद्धि के बावजूद कर रियायतों के कारण नगम कर-जीडीपी अनुपात 2018-19 के स्तर से नीचे बना हुआ है। राजकोषीय समेकन के उद्देश्य के बावजूद निगम कर अनुपात कम बना हुआ है जो राजस्व प्राप्तियों को सीमित कर रहा है।
विकास व्यय के निहितार्थ:
- राजस्व प्राप्तियों को बढ़ाने में असमर्थता के साथ-साथ राजकोषीय समेकन के उद्देश्य ने विकास व्यय के लिये एक बाधा उत्पन्न की है।
- विकासात्मक व्यय से तात्पर्य सरकार के उस व्यय से है जो देश के उत्पादन और वास्तविक आय को बढ़ाकर आर्थिक विकास में मदद करता है।
- गैर-विकास व्यय जिसमें ब्याज भुगतान, प्रशासनिक व्यय और विभिन्न अन्य घटक शामिल हैं, में कमी का खामियाजा विकास व्यय पर पड़ा है।
- वर्ष 2022-23 के लिये विकास व्यय अनुपात के आवंटन में कमी खाद्य सब्सिडी, राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कार्यक्रम, कृषि, ग्रामीण विकास एवं सामाजिक क्षेत्र में व्यय के आवंटन में कमी को दर्शाता है।
मैक्रोइकोनॉमिक परिप्रेक्ष्य से संबंधित मुद्दे:
- श्रमिक आय एवं उपभोग व्यय की वसूली पर प्रभाव:
- विकास व्यय हेतु आवंटन में कमी का श्रमिक आय एवं उपभोग व्यय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- वसूली प्रक्रिया पर उच्च पूंजीगत व्यय का सकारात्मक प्रभाव, राजस्व व्यय में आनुपातिक गिरावट के प्रतिकूल प्रभाव से काफी हद तक कम हो जाएगा।
- विकास व्यय हेतु आवंटन में कमी का श्रमिक आय एवं उपभोग व्यय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- आर्थिक रिकवरी के लिये बाह्य कारकों पर निर्भरता:
- सरकार की राजकोषीय सुदृढ़ीकरण रणनीति को देखते हुए वर्तमान में आर्थिक रिकवरी की संभावना और सीमा बाह्य मांग पर बहुत अधिक निर्भर है।
- पिछली कुछ तिमाहियों में निर्यात में सुधार के बावजूद निर्यात पर निर्भर आर्थिक सुधार की संभावना वर्तमान में धूमिल प्रतीत होती है, क्योंकि विभिन्न देशों ने पहले ही ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ के निर्देश पर राजकोषीय समेकन का प्रयास करना शुरू कर दिया है।
आगे की राह
- एक ऐसी अर्थव्यवस्था में जहाँ विकास काफी हद तक खपत से प्रेरित होता है, यह महत्त्वपूर्ण है कि आय निम्न और मध्यम आय वर्ग तक पहुँचे। निम्न और मध्यम आय वर्ग को मिलने वाला यह अतिरिक्त धन खपत प्रणाली में पहुँच जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप खपत-प्रेरित विकास को गति मिलेगी।
- भारत की नीतिगत प्रतिक्रिया 'कीन्सियन' (अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स के आर्थिक सिद्धांतों से संबंधित) होनी चाहिये अर्थात् संसाधनों को सामाजिक लक्ष्यों की ओर प्रणालीगत करने के लिये धन पर अधिक कराधान होना चाहिये। निम्न आय समूहों के लिये आय सृजन पर लक्षित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को पुनर्जीवित करके इसे ज़मीनी स्तर पर आर्थिक सशक्तीकरण द्वारा पूर्ण किये जाने की आवश्यकता है।