राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति | 30 May 2023
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति, दुर्लभ रोग, राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति मेन्स के लिये:स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दुर्लभ बीमारियों का प्रभाव, भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज से संबंधित पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र की दुर्लभ रोग नीति को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु पाँच सदस्यीय पैनल की स्थापना कर दुर्लभ रोगों से पीड़ित रोगियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये सक्रिय पहल की है।
- यह पैनल, जिसे राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति के रूप में जाना जाता है, का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All-India Institute of Medical Sciences- AIIMS), दिल्ली में नामांकित रोगियों को समय पर उपचार एवं नीति से लाभ मिले सके।
- इस पैनल का जनादेश प्रमुख रूप से राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति, 2021 के कार्यान्वयन हेतु आवश्यक सभी कदम उठाना है।
दुर्लभ रोग (Rare Diseases):
- वर्गीकृत दुर्लभ रोगों की संख्या लगभग 6,000-8,000 है, लेकिन 5% से भी कम दुर्लभ रोगों का उपचार उपलब्ध है।
- उदाहरण: लाइसोसोमल स्टोरेज डिसआर्डर (LSD), पोम्पे डिज़ीज़, सिस्टिक फाइब्रोसिस, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, स्पाइना बिफिडा, हीमोफीलिया आदि।
- लगभग 95% दुर्लभ रोगों का कोई स्वीकृत उपचार नहीं है और 10 में से 1 से कम रोगियों को रोग-विशिष्ट उपचार प्राप्त होता है।
- इनमें से 80% रोगों की उत्पत्ति आनुवंशिक होती है।
- इन रोगों की विभिन्न देशों में अलग-अलग परिभाषाएँ हैं। जनसंख्या में ये रोग 10,000 में से 1 या 10,000 में से प्रति 6 में प्रचलित हैं।
- हालाँकि एक 'दुर्लभ रोग' को कम व्यापकता वाली स्वास्थ्य स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है जो सामान्य आबादी में अन्य प्रचलित रोगों की तुलना में लोगों की कम संख्या को प्रभावित करता है। दुर्लभ रोगों के कई मामले गंभीर, पुराने और जानलेवा हो सकते हैं।
- भारत में लगभग 50-100 मिलियन लोग दुर्लभ रोगों या विकारों से प्रभावित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दुर्लभ स्थिति वाले रोगियों में लगभग 80% बच्चे हैं और उनमें से अधिकांश के वयस्कता तक नहीं पहुँचने का प्रमुख कारण उच्च रुग्णता और मृत्यु दर है।
राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति:
- परिचय:
- राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति एक पाँच सदस्यीय पैनल है, इसकी स्थापना दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दुर्लभ रोगों की नीति को लागू करने और रोगियों के लिये कुशल उपचार सुनिश्चित करने हेतु की गई है, ताकि दुर्लभ रोगों वाले रोगियों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये मिलकर काम किया जा सके।
- समिति में प्रासंगिक क्षेत्रों के विशेषज्ञ, जिनमें चिकित्सा पेशेवर, नीति निर्माता और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
- राष्ट्रीय दुर्लभ रोग समिति एक पाँच सदस्यीय पैनल है, इसकी स्थापना दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दुर्लभ रोगों की नीति को लागू करने और रोगियों के लिये कुशल उपचार सुनिश्चित करने हेतु की गई है, ताकि दुर्लभ रोगों वाले रोगियों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये मिलकर काम किया जा सके।
- उत्तरदायित्व और उद्देश्य:
- मामलों का आकलन:
- दिल्ली में एम्स में भर्ती मरीज़ों पर ध्यान देना।
- चिकित्सा आवश्यकताओं को समझने और उपचार निर्धारित करने के लिये व्यक्तिगत मामलों का मूल्यांकन करना।
- नीति का कार्यान्वयन:
- नीतिगत प्रावधानों को कार्रवाई में बदलने के लिये रणनीति और दिशा-निर्देश तैयार करना।
- समन्वय और सहयोग:
- चिकित्सा समुदाय, चिकित्सा प्रदाताओं और सरकारी एजेंसियों के बीच घनिष्ठ समन्वय की सुविधा प्रदान करना।
- दुर्लभ रोगों से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने के लिये सहयोगी वातावरण प्रदान करना।
- उपचार तक पहुँच:
- दुर्लभ रोगों के मरीज़ों का समय पर इलाज सुनिश्चित करना।
- आवश्यक चिकित्सा और दवाओं की खरीद के लिये मार्ग प्रशस्त करना।
- निर्बाध उपचार सुनिश्चित करने के लिये एक तार्किक ढाँचा स्थापित करना।
- मामलों का आकलन:
राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति, 2021:
- उद्देश्य:
- स्वदेशी अनुसंधान और औषधियों के स्थानीय उत्पादन में वृद्धि पर ध्यान देना।
- दुर्लभ बीमारियों के उपचार की लागत कमी करके।
- दुर्लभ रोगों की रोकथाम के लिये जाँच करना और उनका शीग्रता से पता लगाना।
- नीति के मुख्य प्रावधान:
- वर्गीकरण:
- समूह 1: एक बार के उपचारात्मक उपचार के लिये उत्तरदायी रोग।
- समूह 2: दीर्घकालिक या आजीवन उपचार की आवश्यकता वाले रोग।
- समूह 3: रोगी के चयन के साथ उपलब्ध उपचार, उच्च लागत और चिकित्सा में चुनौतियाँ।
- वर्गीकरण:
- वित्तीय सहायता:
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि के तहत अंब्रेला योजना केअतिरिक्त NPRD-2021 में उल्लिखित किसी भी दुर्लभ रोग के किसी भी समूह से पीड़ित रोगियों और किसी भी उत्कृष्टता केंद्र (COE) में उपचार के लिये 50 लाख रुपए तक की आर्थिक सहायता का प्रावधान है।
- समूह 1 के अंतर्गत सूचीबद्ध दुर्लभ रोगों के लिये राष्ट्रीय आरोग्य निधि के अंतर्गत 20 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता।
- राष्ट्रीय आरोग्य निधि, गरीबी की स्थिति की परवाह किये बिना प्रमुख जानलेवा रोगों से पीड़ित रोगियों को सहायता प्रदान करती है।
- व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट योगदान के लिये एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उपचार के लिये स्वैच्छिक क्राउडफंडिंग।
- उत्कृष्टता केंद्र:
- आठ स्वास्थ्य सुविधाओं को 'उत्कृष्टता केंद्र' के रूप में नामित करना।
- नैदानिक/डायग्नोस्टिक सुविधाओं के उन्नयन के लिये 5 करोड़ रुपए तक की एकमुश्त वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- राष्ट्रीय रजिस्ट्री:
- दुर्लभ रोगों की अस्पताल आधारित राष्ट्रीय रजिस्ट्री का निर्माण करना।
- अनुसंधान और विकास उद्देश्यों के लिये व्यापक डेटा और परिभाषाएँ सुनिश्चित करना।
- चिंता का कारण:
- समूह 3 रोग के मरीज़ों के लिये स्थायी वित्तपोषण की कमी।
- दुर्लभ रोगों के लिये दवाओं की निषेधात्मक लागत।
- दुर्लभ रोगों के लिये दवाओं के सीमित वैश्विक और घरेलू निर्माता।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' को प्राप्त करने के लिये समुचित स्थानीय सामुदायिक-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। व्याख्या कीजिये। (2018) |