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राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT)

  • 13 Mar 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण

मेन्स के लिये:

इन्फ्रास्ट्रक्चर लीज़िंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (IL&FS) संकट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) ने केंद्र सरकार और भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर लीज़िंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज़ (IL&FS) संबंधी मामले में सुझाए गए एक नए वितरण ढाँचे को स्वीकार किया है।

मुख्य बिंदु:

  • इस ढाँचे में सभी लेनदारों हेतु "उचित और न्यायसंगत" धन के वितरण का प्रावधान किया गया है।
  • NCLAT के अनुसार, यह संकल्प प्रस्ताव केंद्र सरकार और SBI द्वारा सुझाए गए संशोधित ढाँचे के आधार पर 90 दिनों के भीतर पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिये।

क्या था IL&FS संकट?

  • इस संकट की शुरुआत तब हुई जब SIDBI से लिये गए अल्पावधि ऋण को चुकाने में IL&FS असफल रही। डिफॉल्टर होने की वजह से IL&FS की रेटिंग लगातार गिरने लगी।
  • IL&FS की सहायक कंपनियाँ भी 46 करोड़ रुपए का ऋण चुकाने में असफल रहीं।
  • IL&FS द्वारा 10 वर्षों से अधिक अवधि की परियोजनाओं का वित्तपोषण किया जाता है, लेकिन इसके द्वारा लिया गया उधार कम अवधि का होता है, जो परिसंपत्ति-देयता अंतर को बढ़ा देता है।
  • IL&FS का सबसे बड़ा शेयरधारक LIC है, जिसके पास 25.34% शेयर हैं। LIC के बाद ORIX के पास 23.54% शेयर हैं।

SBI और केंद्र सरकार का प्रस्ताव:

  • केंद्र सरकार ने सुझाव दिया है कि संशोधित वितरण ढाँचे में सभी सार्वजनिक लेनदारों, जैसे-पेंशन और भविष्य निधि, सैन्य कल्याण, कर्मचारी भविष्य निधि, ग्रेच्युटी तथा सुपरनेशन फंड को उनके बकाया राशि का कम-से-कम कुछ हिस्सा चुकाया जाए।
  • केंद्र सरकार के अनुसार, यदि इन सार्वजनिक निधियों को उनकी बकाया राशि का भुगतान नहीं किया गया तो ऋण संकट उत्पन्न हो सकता है, जिसका असर देश के वित्तीय बाज़ारों पर पड़ सकता है।
  • इसके अलावा IL&FS की होल्डिंग कंपनियों के ऋणदाताओं के लिये रिज़ॉल्यूशन प्लान के अंतर्गत ब्याज घटक का भुगतान करने पर विचार किया जाना चाहिये।
  • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने ’रेड’ और, एम्बर ’श्रेणी के तहत कंपनियों के लिये एक रिज़ॉल्यूशन फ्रेमवर्क का सुझाव दिया था, जिसे NCLAT ने भी स्वीकार कर लिया है।
  • SBI ने यह सुझाव दिया है कि जिन कंपनियों में अब तक ‘कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स’ (Committee of Creditors- CoC) का गठन नहीं हुआ है, उनमें शीघ्र एक CoC का गठन किया जाए।
  • ऐसी कंपनियाँ जहाँ CoC का गठन हो चुका है वहाँ रिज़ॉल्यूशन सलाहकार को नवीनतम निष्पक्ष बाज़ार और परिसमापन मूल्य रिपोर्ट (liquidation Value Reports) के साथ CoC से संपर्क करना चाहिये।
  • SBI ने यह सुझाव दिया है कि एक पूर्व न्यायाधीश या वरिष्ठ अधिवक्ता की देखरेख में एक केंद्रीय समन्वय टीम, जिसमें IL&FS के 7-8 प्रतिनिधि शामिल हों, को वरिष्ठ ऋणदाता बैंक, रिज़ॉल्यूशन कंसल्टेंट की निगरानी के लिये गठित किया जा सकता है।
  • इस ढाँचे का कुछ अन्य लेनदारों द्वारा यह कहते हुए विरोध किया गया कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC) की धारा 53 का उपयोग इस ढाँचे के क्रियान्वयन के लिये किया जा सकता है, यह धारा परिचालन और अन्य सभी प्रकार के लेनदारों की तुलना में वित्तीय लेनदारों को वरीयता देती है।
  • NCLAT ने लेनदारों की इस आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि यह सार्वजनिक हित के खिलाफ होगा क्योंकि सार्वजनिक निधियों द्वारा निवेश किया गया धन शेयरधारकों का होता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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