राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग | 07 Feb 2023

प्रिलिम्स के लिये:

NCST, ST से संबंधित संवैधानिक प्रावधान।

मेन्स के लिये:

NCST: कार्य, अनुसूचित जनजाति: प्रावधान, पहल।

चर्चा में क्यों? 

जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MoTA) द्वारा प्रदान किये गए नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) वर्तमान में अधिकृत सदस्यों की संख्या के आधे से भी कम के साथ कार्यरत है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग: 

  • गठन: NCST की स्थापना  वर्ष 2004 में अनुच्छेद 338 में संशोधन कर और 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A सम्मिलित कर की गई थी, इसलिये यह एक संवैधानिक निकाय है।
    • इस संशोधन द्वारा पूर्ववर्ती राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को दो निम्नलिखित अलग-अलग आयोगों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था:
  • उद्देश्य: NCST को संविधान के अनुच्छेद 338A के तहत वर्तमान में प्रभावी किसी कानून या सरकार के किसी अन्य आदेश के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों (ST) को प्रदान किये गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी का अधिकार दिया गया है। NCST यह आकलन करने के लिये भी अधिकृत है कि ये सुरक्षा उपाय कितनी अच्छी तरह काम कर रहे हैं।
  • संरचना: इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और 3 अन्य सदस्य होते हैं जिन्हें राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा।
    • इसमें एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य है।
      • अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिये पद धारण करते हैं। 
    • अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के दर्जे के समकक्ष माना गया है, उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है और अन्य सदस्य भारत सरकार के सचिव दर्जे के होते हैं।
    • सदस्य दो से अधिक कार्यकाल हेतु नियुक्ति के लिये पात्र नहीं हैं।

NCST के कर्त्तव्य और कार्य:

  • संविधान या किसी अन्य कानून या सरकार के किसी आदेश के अधीन अनुसूचित जनजातियों के लिये प्रदत्त सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच एवं निगरानी करना। 
  • अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जाँच करना।
  • अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना तथा उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
  • आयोग सुरक्षा उपायों के संचालन के बारे में राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष और आवश्यकतानुसार रिपोर्ट प्रदान करेगा। 
  • इन रक्षोपायों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु संघ या किसी राज्य द्वारा किये जाने वाले उपायों के बारे में ऐसी रिपोर्टों में सिफारिशें करना।
  • राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए नियम द्वारा अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण, विकास और उन्नति से संबंधित किसी अन्य कृत्य का निर्वहन कर सकेगा। 

भारत में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित प्रावधान: 

  • परिभाषा: 
    • भारत का संविधान अनुसूचित जनजातियों की मान्यता के मानदंडों को परिभाषित नहीं करता है। वर्ष 1931 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों को "बहिष्कृत" और "आंशिक रूप से बहिष्कृत" क्षेत्रों में रहने वाली "पिछड़ी जनजातियों" के रूप में जाना जाता है। 
    • वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने पहली बार प्रांतीय विधानसभाओं में "पिछड़ी जनजातियों" के प्रतिनिधियों का आह्वान किया। 
  • संवैधानिक प्रावधान:  
    • अनुच्छेद 366(25): यह केवल अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने हेतु प्रक्रिया निर्धारित करता है:
      • इसमें अनुसूचित जनजातियों को “ऐसी आदिवासी जाति या आदिवासी समुदाय या इन आदिवासी जातियों और आदिवासी समुदायों के भाग या उनके समूह के रूप में परिभाषित किया गया है, जिन्हें इस संविधान के उद्देश्यों के लिये अनुच्छेद 342 में अनुसूचित जनजातियाँ माना गया है”। 
    • अनुच्छेद 342(1): राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात्‌ लोक अधिसूचना द्वारा उन जनजातियों या जनजातीय समुदायों अथवा जनजातियों या जनजातीय समुदायों के भागों या उनके समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा।
    • पाँचवीं अनुसूची: यह छठी अनुसूची में शामिल राज्यों के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन एवं नियंत्रण हेतु प्रावधान निर्धारित करती है।
    • छठी अनुसूची: यह असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।
  • वैधानिक प्रावधान:

निष्कर्ष 

आयोग में रिक्तियों को तुरंत भरा जाना चाहिये अर्थात् इसमें देरी करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि भर्ती नियमों को उपयुक्त रूप से संशोधित किया गया है। इसके अलावा जनशक्ति की कमी कार्यों के संचालन में भी कठिनाइयों का कारण बन रही है, जिससे आयोग के प्रभावी प्रदर्शन हेतु रिक्तियों को तुरंत भरना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. प्रत्येक वर्ष कतिपय विशिष्ट समुदाय/जनजाति, पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण, मास-भर चलने वाले अभियान/त्योंहार के दौरान फलदार वृक्षों का पौधरोपण करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-से ऐसे समुदाय/जनजाति हैं? (2014) 

(a) भूटिया और लेप्चा
(b) गोंड और कोर्कू
(c) इरूला और तोडा
(d) सहरिया और अगरिया

उत्तर: (b) 


प्रश्न. भारत के संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूची में किससे संबंधित प्रावधान हैं? (2015)

(a) अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा
(b) राज्यों के बीच सीमाओं का निर्धारण
(c) पंचायतों की शक्तियों, अधिकार और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण
(d) सभी सीमावर्ती राज्यों के हितों की रक्षा

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये निजी पार्टियों को आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को शून्य और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019)

(A) तीसरी अनुसूची
(B) पाँचवी अनुसूची
(C) नौवीं अनुसूची
(D) बारहवीं अनुसूची

उत्तर: (B)


प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में कौन-सा एक इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से दर्शाता है? (2022)

(a) इससे जनजातीय लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों को अंतरित करने पर रोक लगेगी।
(b) इससे उस क्षेत्र में एक स्थानीय स्वशासी निकाय का सृजन होगा।
(c) इससे वह क्षेत्र संघ राज्य क्षेत्र में बदल जाएगा।
(d) ऐसे क्षेत्रों वाले राज्य को विशेष श्रेणी का राज्य घोषित किया जाएगा।

उत्तर: (a)


प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (मुख्य परीक्षा- 2017)

स्रोत: द हिंदू