भारतीय राजव्यवस्था
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
- 27 Apr 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities- NCM) के अध्यक्ष तथा पाँच अन्य सदस्यों के रिक्त पदों को 31 जुलाई 2021 तक भरने का निर्देश दिया है।
प्रमुख बिंदु
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना:
- वर्ष 1978 में गृह मंत्रालय द्वारा पारित एक संकल्प में अल्पसंख्यक आयोग (Minorities Commission- MC) की स्थापना की परिकल्पना की गई थी।
- वर्ष 1984 में, अल्पसंख्यक आयोग को गृह मंत्रालय से अलग कर दिया गया और इसे नव-निर्मित कल्याण मंत्रालय (Ministry of Welfare) के अधीन रखा गया, जिसने वर्ष 1988 में भाषाई अल्पसंख्यकों को आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया।
- वर्ष 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के अधिनियमन के साथ ही अल्पसंख्यक आयोग एक सांविधिक/वैधानिक (Statutory) निकाय बन गया और इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) कर दिया गया।
- वर्ष 1993 में, पहले वैधानिक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया गया और पाँच धार्मिक समुदायों- मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया।
- वर्ष 2014 में जैन धर्म मानने वालों को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था।
संरचना:
- NCM में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और पाँच सदस्य होते हैं और इन सभी का चयन अल्पसंख्यक समुदायों में से किया जाता है।
- केंद्र सरकार द्वारा नामित किये जाने वाले इन व्यक्तियों को योग्य, क्षमतावान और सत्यनिष्ठ होना चाहिये।
- कार्यकाल: प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल पद धारण करने की तिथि से तीन वर्ष की अवधि तक होता है।
कार्य:
- संघ और राज्यों के तहत अल्पसंख्यकों के विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना;
- संविधान और संघ तथा राज्य के कानूनों में अल्पसंख्यकों को प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों की निगरानी करना;
- अल्पसंख्यक समुदाय के हितों की सुरक्षा के लिये नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु आवश्यक सिफारिशें करना;
- अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों और रक्षोपायों से वंचित करने से संबंधित विनिर्दिष्ट शिकायतों की जाँच पड़ताल करना;
- अल्पसंख्यकों के विरुद्ध किसी भी प्रकार के विभेद के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का अध्ययन करना/करवाना और इन समस्याओं को दूर करने के लिये सिफारिश करना;
- अल्पसंख्यकों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास से संबंधित विषयों का अध्ययन अनुसंधान और विश्लेषण करना;
- केंद्र अथवा राज्य सरकारों को किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित उपायों को अपनाने का सुझाव देना;
- केंद्र और राज्य सरकारों को अल्पसंख्यकों से संबंधित किसी विषय पर विशिष्टतया कठिनाइयों पर नियतकालिक अथवा विशिष्ट रिपोर्ट प्रदान करना;
- कोई अन्य विषय जो केंद्र सरकार द्वारा उसे निर्दिष्ट किया जाए।
- यह सुनिश्चित करता है कि प्रधानमंत्री का 15 सूत्री कार्यक्रम लागू है और अल्पसंख्यक समुदायों के लिये यह कार्यक्रम वास्तव में काम कर रहा है।
विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस:
- प्रत्येक वर्ष 18 दिसंबर को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा विश्व अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (World Minorities Rights Day) का आयोजन किया जाता है।
- 18 दिसंबर, 1992 को संयुक्त राष्ट्र ने धार्मिक या भाषायी राष्ट्रीय अथवा जातीय अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्ति के अधिकारों पर वक्तव्य (Statement) को अपनाया था।
अल्पसंख्यकों से संबंधित संवैधानिक और कानूनी प्रावधान:
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम (NCM Act) अल्पसंख्यकों को "केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित एक समुदाय" के रूप में परिभाषित करता है।
- भारत सरकार द्वारा देश में छ: धर्मों मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी (पारसी) और जैन को धार्मिक अल्पसंख्यक घोषित किया है।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान अधिनियम' (NCMEIA), 2004:
- यह अधिनियम सरकार द्वारा अधिसूचित छह धार्मिक समुदायों के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्रदान करता है।
- भारतीय संविधान में "अल्पसंख्यक" शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। हालाँँकि संविधान धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है।
- अनुच्छेद 15 और 16:
- ये अनुच्छेद धर्म, जाति, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव का निषेध करते हैं।
- राज्य के अधीन किसी भी कार्यालय में रोज़गार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में नागरिकों को 'अवसर की समानता' का अधिकार है, जिसमे धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव निषेध है।
- अनुच्छेद 25 (1), 26 और 28:
- यह लोगों को अंत:करण की स्वतंत्रता और स्वतंत्र रूप से धर्म का प्रचार, अभ्यास और प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है।
- संबंधित अनुच्छेदों में प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या वर्ग को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों हेतु धार्मिक संस्थानों को स्थापित करने का अधिकार तथा अपने स्वयं के धार्मिक मामलों का प्रबंधन, संपत्ति का अधिग्रहण और उनके प्रशासन का अधिकार शामिल है।
- राज्य द्वारा पोषित संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक कार्यों में हिस्सा लेने या अनुदान सहायता प्राप्त करने की स्वतंत्रता होगी।
- अनुच्छेद 29:
- यह अनुच्छेद उपबंध करता है कि भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद-29 के तहत प्रदान किये गए अधिकार अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक दोनों को प्राप्त हैं।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस लेख का दायरा केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि अनुच्छेद में 'नागरिकों के वर्ग' शब्द के उपयोग में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुसंख्यक भी शामिल हैं।
- अनुच्छेद 30:
- धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा, संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षण केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषायी) तक ही सीमित है और नागरिकों के किसी भी वर्ग (जैसा कि अनुच्छेद 29 के तहत) तक विस्तारित नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 350 B:
- मूल रूप से भारत के संविधान में भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये विशेष अधिकारी के संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया गया था। इसे 7वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 350B के रूप में जोड़ा गया।
- यह भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष अधिकारी का प्रावधान करता है।