भारतीय अर्थव्यवस्था
MPC के हालिया निर्णय: रेपो, मुद्रास्फीति अनुमान, आई-सीआरआर
- 17 Aug 2023
- 17 min read
प्रिलिम्स के लिये:मौद्रिक नीति समिति, भारतीय रिज़र्व बैंक, हेडलाइन मुद्रास्फीति, वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR), रिवर्स रेपो ऑपरेशन, मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण, खुला बाज़ार संचालन मेन्स के लिये:भारत में अतिरिक्त तरलता के निहितार्थ, अतिरिक्त तरलता को कम करने के लिये RBI द्वारा अपनाए गए उपाय, उच्च मुद्रास्फीति और उच्च तरलता को एक साथ प्रबंधित करने के तरीके |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) ने हाल ही में चालू वित्त वर्ष (2023-24) में खुदरा मुद्रास्फीति के लिये अपने अनुमान को संशोधित करते हुए नीति रेपो दर को 6.5% पर बनाए रखने का विकल्प चुना है।
- इसके अलावा अतिरिक्त तरलता को कम करने के लिये बैंकों के लिये अस्थायी 10% वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR) बनाए रखना आवश्यक है।
MPC के प्रमुख निर्णय:
- रेपो दर को अपरिवर्तित रखना: RBI ने आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति नियंत्रण को संतुलित करने के लिये नीतिगत रेपो दर को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया।
- मुद्रास्फीति का अनुमान बढ़ाना: चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान 30 आधार अंक बढ़ाकर 5.4% कर दिया गया है।
- यह समायोजन सब्जियों की बढ़ती कीमतों के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी की प्रवृत्ति को स्वीकार करता है।
- जबकि सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी अस्थायी होने की अपेक्षा होती है, संभावित अल नीनो (El Nino) मौसम की स्थिति तथा वैश्विक खाद्य कीमतें जैसे बाहरी कारक संभावित जोखिम उत्पन्न करते हैं।
- अनुमानित GDP वृद्धि: MPC ने वर्ष 2023-24 में वास्तविक GDP वृद्धि के अपने अनुमान को 6.5% पर बनाए रखा है।
- वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR): 12 अगस्त, 2023 से प्रभावी, अनुसूचित बैंकों को 19 मई, 2023 तथा 28 जुलाई, 2023 के बीच अपनी मांग और समय देनदारियों में शुद्ध वृद्धि पर 10% का I-CRR बनाए रखना आवश्यक है।
- इस कदम का उद्देश्य अधिशेष तरलता को कम करना है, विशेष रूप से हाल ही में 2000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण के कारण।
- RBI ने बैंकों को उनकी वर्तमान जमा राशि के लिये दंडित करने से रोकने तथा क्रेडिट वृद्धि और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को सीमित करने के लिये सामान्य CRR (Cash Reserve Ratio) वृद्धि के बजाय I-CRR का विकल्प चुना।
- CRR वृद्धि से ऋण निधि सीमित हो जाएगी तथा उधार लेने की लागत बढ़ जाएगी। I-CRR नियमित बैंकिंग परिचालन को बाधित किये बिना विमुद्रीकरण से अतिरिक्त तरलता को लक्षित करता है।
- मौजूदा CRR 4.5% पर अपरिवर्तित है।
- साथ ही RBI ने स्पष्ट किया कि I-CRR एक अस्थायी उपाय है। वर्ष 2016 में विमुद्रीकरण के समय 100% I-CRR नियोजित किया गया था।
- CRR वृद्धि से ऋण निधि सीमित हो जाएगी तथा उधार लेने की लागत बढ़ जाएगी। I-CRR नियमित बैंकिंग परिचालन को बाधित किये बिना विमुद्रीकरण से अतिरिक्त तरलता को लक्षित करता है।
HDFC लिमिटेड-HDFC बैंक विलय एवं RBI का हालिया कदम:
- अनुमान: इस अतिरिक्त CRR को शुरू करने का RBI का निर्णय विलय के बाद अनुग्रह अवधि के दौरान HDFC बैंक द्वारा प्राप्त किसी भी संभावित लाभ की भरपाई करने का एक प्रयास हो सकता है।
- पृष्ठभूमि: HDFC लिमिटेड एक बैंक नहीं था, लेकिन यह जमा राशि ही एकत्रित कर सकता था। हालाँकि यह CRR नियम के अधीन नहीं था। इसके बाद HDFC लिमिटेड का HDFC बैंक में विलय हो गया, जिससे बैंकिंग प्रणाली में बड़ी मात्रा में जमा राशि आ गई।
- विलय के बाद HDFC बैंक को एक छूट अवधि दी गई थी, जिसके दौरान उसे अपनी नई जमा राशि पर सामान्य 4.5% CRR जमा नहीं करना था।
- इस अनुग्रह अवधि ने बैंक को संभावित रूप से इन महत्त्वपूर्ण जमाओं को कहीं और निवेश करने के साथ ही इन निवेशों से लाभ कमाने की अनुमति दी।
- RBI के वृद्धिशील CRR के हालिया कदम का तात्पर्य है कि HDFC बैंक समेत बैंकों को इन जमाओं का अतिरिक्त 10% RBI के पास रखना होगा।
अतिरिक्त तरलता को कम करने हेतु RBI के अन्य उपाय:
- रिवर्स रेपो परिचालन: RBI रिवर्स रेपो परिचालन संचालित कर सकता है, जहाँ यह बैंकों को धन के बदले में सरकारी प्रतिभूतियों को प्रस्तुत करके अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करता है।
- हालाँकि हाल ही में RBI ने रिवर्स रेपो रेट बढ़ाने के बजाय I-CRR का उपयोग करने का विकल्प चुना क्योंकि रिवर्स रेपो रेट बढ़ाने से रेपो रेट भी बढ़ जाता जिससे कठोर मौद्रिक नीति की स्थिति के साथ ही आर्थिक सुधार में बाधा उत्पन्न होती है।
- विदेशी मुद्रा परिचालन: विदेशी मुद्रा भंडार बेचने से घरेलू मुद्रा बाज़ार में तरलता कम हो सकती है।
- इस दृष्टिकोण का उपयोग सावधानी से किया जा सकता है, क्योंकि यह विनिमय दर तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित कर सकता है।
- नैतिक प्रेरणा: RBI बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ संवाद करके उन्हें स्वेच्छा से अपनी तरलता की स्थिति का प्रबंधन करने और अत्यधिक उधार देने पर अंकुश लगाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
नोट:
- CRR: नकद आरक्षित अनुपात, शुद्ध मांग और समय देनदारियों का एक प्रतिशत, बैंकों को तरलता को नियंत्रित करने के लिये केंद्रीय बैंक (RBI) के पास रखना चाहिये।
- वृद्धिशील CRR: अतिरिक्त तरलता का प्रबंधन एवं अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिये RBI द्वारा बैंकों की CRR अधिक करने आवश्यकता है।
- रेपो दर: यह वाणिज्यिक बैंकों हेतु अल्पकालिक ऋण के लिये RBI द्वारा निर्धारित ब्याज दर है। यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने एवं आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये प्रयोग किया जाने वाला एक उपकरण है।
- मुद्रास्फीति: यह एक समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के सामान्य मूल्य स्तर में निरंतर वृद्धि को संदर्भित करता है, जिससे रुपए की क्रय शक्ति में कमी आती है।
- हेडलाइन मुद्रास्फीति: यह उस अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति है, जिसमें वस्तुओं की एक टोकरी शामिल होती है।
- खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति भारत में हेडलाइन मुद्रास्फीति के घटकों में से एक है।
- कोर मुद्रास्फीति: यह हेडलाइन मुद्रास्फीति पर नज़र रखने वाली वस्तुओं की टोकरी से अस्थिर वस्तुओं को बाहर करती है। इन अस्थिर वस्तुओं में मुख्य रूप से भोजन और पेय पदार्थ (सब्जियों सहित) तथा ईंधन एवं प्रकाश (कच्चा तेल) सम्मिलित है।
- कोर मुद्रास्फीति = हेडलाइन मुद्रास्फीति - (खाद्य और ईंधन) मुद्रास्फीति।
- हेडलाइन मुद्रास्फीति: यह उस अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति है, जिसमें वस्तुओं की एक टोकरी शामिल होती है।
- मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण: यह एक मौद्रिक नीति ढाँचा है जिसका उद्देश्य मुद्रास्फीति के लिये एक विशिष्ट लक्ष्य सीमा बनाए रखना है।
- उर्जित पटेल समिति (Urjit Patel Committee) ने मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के उपाय के रूप में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) की सिफारिश की।
- तरलता से तात्पर्य उस सुविधा से है जिसके साथ किसी परिसंपत्ति या सुरक्षा को उसकी कीमत पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाले बिना बाज़ार में जल्दी से खरीदा या बेचा जा सकता है।
- यह वित्तीय दायित्वों को पूरा करने या निवेश के लिये नकदी या तरल संपत्ति की उपलब्धता को दर्शाता है। सरल शब्दों में तरलता का अर्थ है जब भी आपको ज़रूरत हो अपना पैसा प्राप्त करना।
भारत में अतिरिक्त तरलता के प्रभाव:
- सकारात्मक प्रभाव:
- कम ब्याज दरें: अतिरिक्त तरलता से अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम हो सकती हैं।
- जब धन की प्रचुरता होती है, तो बैंक तथा वित्तीय संस्थान उधारकर्त्ताओं को आकर्षित करने के लिये अपनी उधार दरें कम कर देते हैं।
- यह उधार लेने और निवेश गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकता है तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
- निवेश को प्रोत्साहित करना: कम ब्याज दरों के साथ व्यवसायों को अपने परिचालन का विस्तार करने, नई परियोजनाएँ शुरू करने और नौकरियाँ प्रदान करने के लिये उधार लेना और निवेश करना सस्ता पड़ सकता है।
- इसका आर्थिक गतिविधि और रोज़गार सृजन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- कम ब्याज दरें: अतिरिक्त तरलता से अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम हो सकती हैं।
- नकारात्मक प्रभाव:
- मुद्रास्फीति का दबाव: अतिरिक्त तरलता, अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के दबाव में योगदान कर सकती है।
- जब वस्तुओं और सेवाओं की सीमित आपूर्ति के पीछे बहुत अधिक पैसा व्यय होता है, तो कीमतें बढ़ सकती हैं।
- इससे उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति नष्ट हो सकती है तथा उनके समग्र जीवन स्तर में कमी आ सकती है।
- विनिमय दर में अस्थिरता: विदेशी पूंजी के अचानक प्रवाह से मुद्रा के मूल्य में वृद्धि हो सकती है, जिससे निर्यात अधिक महँगा हो जाएगा तथा आयात सस्ता हो जाएगा।
- दूसरी ओर, बहिर्प्रवाह से मुद्रा का अवमूल्यन हो सकता है, जो व्यापार संतुलन और बाहरी ऋण को प्रभावित कर सकता है।
- एसेट प्राइस बबल्स: अतिरिक्त तरलता द्वारा परिसंपत्ति की कीमतों में वृद्धि होने से स्पेकुलेटिव बबल्स (परिसंपत्तियों की कीमतों में तीव्र वृद्धि) की स्थिति भी हो सकती है।
- परिसंपत्तियों की कीमतों में वृद्धि को बुनियादी सिद्धांतों द्वारा समर्थित नहीं किये जाने के परिणामस्वरूप कीमतों में अचानक गिरावट आ सकती है, जिससे वित्तीय अस्थिरता पैदा हो सकती है।
- इससे अर्थव्यवस्था में आय असमानता में वृद्धि हो सकती है।
- आय असमानता: जिन अमीरों का परिसंपत्तियों में अधिक निवेश है, वे अतिरिक्त तरलता के लाभों, जैसे कि उच्च परिसंपत्ति मूल्यों से असंगत रूप से लाभ कमा सकते हैं।
- मुद्रास्फीति का दबाव: अतिरिक्त तरलता, अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के दबाव में योगदान कर सकती है।
उच्च मुद्रास्फीति और उच्च तरलता का एक साथ प्रबंधन:
- ब्याज दर समायोजन: RBI ब्याज दरों के समायोजन के लिये सतर्कतावादी दृष्टिकोण का सहारा ले सकता है।
- उच्च तरलता ब्याज दरों को कम करने की मांग कर सकती है, लेकिन मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाना भी आवश्यक है।
- तरलता और मुद्रास्फीति दोनों को प्रबंधित करने के लिये वृद्धिशील ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना एक संतुलित मार्ग हो सकता है।
- ओपन मार्केट ऑपरेशंस: RBI नियंत्रित ओपन मार्केट ऑपरेशंस का भी उपयोग कर सकता है, इसके तहत मौद्रिक व्यवस्था में निवेश हेतु तरलता को संतुलित करने के लिये सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री की जाती है।
- इससे अति तरलता के मुद्रास्फीतिकारी प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है।
- लक्षित राजकोषीय उपाय: भारत सरकार मुद्रास्फीति उत्पन्न करने वाले व्यवसायों से निपटने के लिये केंद्रित राजकोषीय रणनीतियों को लागू कर सकती है।
- उदाहरण के लिये कृषि संबंधी बुनियादी ढाँचे और आपूर्ति शृंखला में सुधार हेतु निवेश से खाद्य कीमतों को स्थिर करने में मदद मिल सकती है, यह भारत में मुद्रास्फीति का वर्तमान प्रमुख कारक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019) |