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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में मानसून और खाद्य मुद्रास्फीति

  • 25 Apr 2025
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

खुदरा मुद्रास्फीति, खाद्य मूल्य वृद्धि, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), CPI-संयुक्त (CPI-C), WPI, लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति, ड्रिप सिंचाई, हेडलाइन मुद्रास्फीति, भारतीय मौसम विभाग

मेन्स के लिये:

भारत में खाद्य मुद्रास्फीति पर मानसून का प्रभाव, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये खाद्य मुद्रास्फीति का महत्त्व और चुनौतियाँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने वर्ष 2025 के लिये अपने पहले पूर्वानुमान में सामान्य से अधिक मानसून का अनुमान लगाया है, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होगी तथा खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के सरकार के प्रयासों में मदद मिलेगी, जो वर्षा में बदलाव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। 

वर्ष 2025 के लिये मानसून पर IMD का पूर्वानुमान क्या है?

  • वर्षा का पूर्वानुमान: 
    • IMD ने वर्ष 2025 में “सामान्य से अधिक” दक्षिण-पश्चिम मानसून का अनुमान लगाया है, जिसमें दीर्घावधि औसत (87 सेमी) का 105%, ±5% मार्जिन के साथ वर्षा होने की संभावना है। 
      • IMD मानसून वर्षा को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत करता है: कम (LPA का <90%), सामान्य से कम (90-95%), सामान्य (96-104%), सामान्य से अधिक (105-110%), और अधिक (>110%)।
    • तटस्थ अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) और हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) की स्थिति तथा यूरेशिया में सामान्य से कम हिम आवरण के कारण यह संभव हो पाया है, जो मज़बूत मानसून को समर्थन देता है। 
    • IMD की पूर्वानुमान सटीकता में सुधार हुआ है, औसत विचलन 7.5% (2017-20) से घटकर 2.27% (2021-25) हो गया है।
  • भौगोलिक वितरण: 
    • IMD के पूर्वानुमान में जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, तमिलनाडु, बिहार और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों में सामान्य से कम वर्षा होने का अनुमान है।
    • जबकि, इसने मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सामान्य से अधिक वर्षा का अनुमान लगाया है, जो देश के मुख्य मानसून क्षेत्र (कृषि मुख्य रूप से वर्षा आधारित) हैं।

Spatial_Distribution_of_Monsoon_in_India

भारत में खाद्य मुद्रास्फीति पर मानसून का क्या प्रभाव है?

  • कृषि उपज और फसल कीमतें: मानसून कृषि उत्पादन और खाद्य कीमतों को प्रभावित करता है, लेकिन इसका प्रभाव हमेशा प्रत्यक्ष नहीं होता है। 
    • हालाँकि अच्छे मानसून से आम तौर पर उपज में सुधार होता है और कीमतें कम होती हैं, फिर भी उत्पादन संबंधी समस्याओं के कारण कुछ फसलों की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है।
    • पिछले 10 वर्षों (2015-24) में, 10 में से 6 वर्षों में वर्षा सामान्य या औसत से अधिक रही है। कम वर्षा वाले वर्षों में, जैसे कि वित्त वर्ष 16 और वित्त वर्ष 19 में, कृषि विकास कमज़ोर रहा (वित्त वर्ष 18 में केवल 0.65% और वित्त वर्ष 24 में 2.7%), जो दशक भर में औसतन 4.45% रहा।

Agriculture_Growth,Food_Inflation and_Rainfall

  • आपूर्ति शृंखला व्यवधान और परिवहन लागत: 
    • मज़बूत मानसून प्रायः परिवहन और आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित करता है, जिससे रसद और भंडारण लागत बढ़ जाती है। उदाहरण के लिये, असम और बिहार में वर्ष 2023 की बाढ़ ने खाद्य वस्तुओं की आवाजाही में देरी की, जिससे अस्थायी रूप से कीमतों में वृद्धि हुई।
  • मानसून की कमी और आयात मुद्रास्फीति:
    • मानसून की विफलता से आयात पर निर्भरता बढ़ जाती है, विशेषकर दालों और खाद्य तेलों के लिये, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ जाती है। वर्ष 2023 में, वर्षा में कमी के कारण इंडोनेशिया और मलेशिया से खाद्य तेल का आयात बढ़ गया। वर्ष 2022-23 में, भारत ने 16.5 मीट्रिक टन खाद्य तेलों का आयात किया, जिसमें घरेलू उत्पादन देश की आवश्यकताओं का केवल 40-45% ही पूरा कर पाया।

वर्षा से परे: खाद्य मुद्रास्फीति के प्रमुख कारक

  • वित्त वर्ष 20, वित्त वर्ष 21, वित्त वर्ष 23 और वित्त वर्ष 25 में उच्च वर्षा (LPA के 100% से अधिक) के बावजूद, खाद्य मुद्रास्फीति उच्च (6-7%) रही। इसके विपरीत, वित्त वर्ष 18 और वित्त वर्ष 19 जैसे सामान्य से कम वर्षा वाले वर्षों के दौरान, खाद्य मुद्रास्फीति कम (2.2% और 0.7%) थी। 
    • इससे पता चलता है कि केवल वर्षा ही खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा नहीं देती। 
  • विशेष रूप से, खाद्य मुद्रास्फीति दिसंबर 2024 में 8% से घटकर जनवरी 2025 में 6% से नीचे आ गई, और जुलाई 2023 के बाद पहली बार मार्च 2025 तक हेडलाइन मुद्रास्फीति से नीचे आ गई।

Food_Inflation_Trend_in_India

भारत में खाद्य मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले अन्य प्रमुख कारक क्या हैं?

  • आपूर्ति संबंधी आघात: जमाखोरी और बाज़ार में व्यवधान जैसे कारक भी कीमतों में वृद्धि में योगदान करते हैं, भले ही वर्षा अच्छी हो।
  • वैश्विक वस्तु मूल्य: खाद्य तेलों और दालों जैसे प्रमुख आयातों की वैश्विक कीमतों में वृद्धि से घरेलू लागत बढ़ जाती है। 
    • आयात पर भारत की निर्भरता इसे वैश्विक बाज़ार में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बनाती है, जिसका सीधा असर खाद्य मुद्रास्फीति पर पड़ता है।
  • मौद्रिक नीति: जब RBI ब्याज दरें बढ़ाता है तो उत्पादकों के लिये ऋण लेना महँगा हो जाता है। 
    • इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है, विशेष रूप से पैकेज्ड खाद्य पदार्थों के मामले में, जिससे उपभोक्ता कीमतें बढ़ जाती हैं।
  • सरकारी नीतियाँ: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में परिवर्तन से किसानों को लाभ होगा, लेकिन इससे बाज़ार की कीमतें बढ़ सकती हैं। 
    • निर्यात प्रतिबंध से स्थानीय आपूर्ति की रक्षा की जा सकती है, लेकिन इससे वैश्विक व्यापार बाधित हो सकता है और घरेलू कीमतें बढ़ सकती हैं।
  • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान: कमज़ोर भंडारण बुनियादी ढाँचे और परिवहन में विलंब से खाद्य पदार्थों की बर्बादी होती है और इनकी कीमतें बढ़ जाती हैं। खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिये कुशल रसद महत्त्वपूर्ण है।

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये: खाद्य मुद्रास्फीति के मापन हेतु विभिन्न सूचकांक

भारत में खाद्य मुद्रास्फीति की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI), जिससे भारत की खाद्य मुद्रास्फीति का मापन किया जाता है, वित्त वर्ष 2024 में 7.5% था जो वित्त वर्ष 2025 में बढ़कर 8.4% हो गया, जिसका मुख्य कारण सब्जियों और दालों की कीमतों में वृद्धि थी, जो चरम मौसम की घटनाओं के कारण और बढ़ गई।
    • CPI बास्केट में से मूल्य-संवेदनशील सब्जियों (टमाटर, प्याज़, आलू) के अतिरिक्त, वित्त वर्ष 25 में औसत खाद्य मुद्रास्फीति 6.5% थी।

खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने हेतु भारत को क्या उपाय करने चाहिये?

  • आपूर्ति शृंखला का बेहतर प्रबंधन: रसद, भंडारण और वितरण को सुदृढ़ करने से बर्बादी को कम किया जा सकता है और स्थिर खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है। 
    • विकारी (शीघ्र खराब होने वाली) खाद्य के लिये प्रशीतित ट्रकों का उपयोग किये जाने से खराब होने की संभावना कम हो जाती है तथा इसकी स्वच्छता बनी रहती है।
  • मुद्रास्फीति नियंत्रण हेतु कृषि-तकनीक को बढ़ावा देना: परिशुद्ध कृषि, ड्रोन और AI-संचालित फसल प्रबंधन जैसी प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करने से उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है और इनपुट लागत कम हो सकती है, जिससे खाद्य कीमतों को स्थिर करने में मदद मिलेगी।
    • ड्रिप सिंचाई जैसी तकनीकों के उपयोग से जल-अभाव वाले क्षेत्रों में उत्पादकता बढ़ती है, जबकि जलाभाव-सह किस्मों से जल की कमी के दौरान फसल विफलता की रोकथाम करने में मदद मिलती है।
    • इसके अतिरिक्त, AmbiTAG जैसे उपकरण पारगमन तापमान की निगरानी और वास्तविक समय पर अलर्ट प्रदान करके खाद्य अपव्यय को कम करने में मदद करते हैं, जिससे बेहतर संरक्षण और आपूर्ति शृंखला दक्षता सुनिश्चित होती है।
  • कृषि विविधीकरण: किसानों को विविध फसलें उगाने के लिये प्रोत्साहित करने से विशिष्ट  वस्तुओं पर निर्भरता कम हो जाती है। 
    • चावल और गेहूँ के साथ दलहन को बढ़ावा देने से मृदा की उर्वरता में सुधार होता है, वैकल्पिक आय सृजित होती है, तथा अस्थिर मानसून की स्थिति से होने वाले जोखिम कम होते हैं।
  • खाद्य सब्सिडी प्रणाली में सुधार: बेहतर लक्ष्यीकरण, न्यूनीकृत रिसाव और विस्तारित कवरेज के माध्यम से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार कर खाद्य मुद्रास्फीति को कम करने में मदद मिल सकती है। पारदर्शी और कुशल सब्सिडी वितरण के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करके राजकोषीय संसाधनों को अप्रभावित रखते हुए निर्धन व्यक्तियों के लिये वहनीयता सुनिश्चित की जा सकती है।
  • जलवायु लचीलापन की ओर: वर्षा जल संचयन, फसल चक्रण और जलवायु-अनुकूल बीज जैसी जलवायु-अनुकूल पद्धतियों से किसानों को अनियमित मानसून के अनुकूल होने में मदद मिल सकती है। इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम 109 जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों को जारी किया जाना है, जिसका उद्देश्य उपज को स्थिर करना और मौसम से संबंधित नुकसान को कम करना है।

निष्कर्ष:

IMD द्वारा सामान्य मानसून का पूर्वानुमान भारत की खरीफ फसल के लिये सकारात्मक है, लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति पर इसका प्रभाव जटिल है। हाँलाकि वर्षा से फसल उत्पादन में वृद्धि होती है किंतु वर्षा के समय, क्षेत्रीय विविधताएँ और विशिष्ट फसल सुभेद्याताओं (जैसे, दलहन, सब्जियाँ) जैसे कारकों से कीतें प्रभावित होती हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में खाद्य मुद्रास्फीति पर मानसून परिवर्तनशीलता के प्रभाव का परीक्षण कीजिये। इसके साथ ही, खाद्य मूल्य अस्थिरता में योगदान देने वाले अन्य संरचनात्मक और नीतिगत कारकों की विवेचना कीजिये।

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. खाद्य वस्तुओं का ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ (CPI) भार (Weightage) उनके ‘थोक मूल्य सूचकांक’ (WPI) में दिये गए भार से अधिक है।
  2. WPI, सेवाओं के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों को शामिल नहीं करता है, जैसा कि CPI करता है।
  3. भारतीय रिज़र्व बैंक ने अब मुद्रास्फीति के मुख्य मान तथा प्रमुख नीतिगत दरों के निर्धारण हेतु WPI को अपना लिया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन
  2.  सीमांत स्थायी सुविधा दर में बढ़ोतरी
  3.  बैंक रेट और रेपो रेट में कटौती

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. एक मत यह भी है कि राज्य अधिनियमों के तहत गठित कृषि उत्पाद बाज़ार समितियों (APMCs) ने न केवल कृषि के विकास में बाधा डाली है, बल्कि यह भारत में खाद्य मुद्रस्फीति का कारण भी रही हैं। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2014)

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