शासन व्यवस्था
मृत्यु दंड में कमी लाने और इसको बढ़ाने की परिस्थितियाँ
- 25 Jan 2025
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प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य मामला, 1980, सर्वोच्च न्यायालय, विधि आयोग, भारतीय न्याय संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, UAPA, 1967, NDPS अधिनियम, 1985 मेन्स के लिये:मृत्यु दंड में कमी लाने और इसको बढ़ाने की परिस्थितियाँ, भारत में मृत्युदंड का घटनाक्रम, मृत्युदंड पर न्यायपालिका एवं विधि आयोग की भूमिका |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
कोलकाता के एक न्यायालय ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी व्यक्ति को आजीवन कारावास के लिये दण्डादेशित किया जबकि CBI ने उक्त व्यक्ति को मृत्युदंड दिये जाने के पक्ष में प्रभावशाली तर्क दिये थे।
- हालाँकि बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले, 1980 में, सर्वोच्च न्यायालय ने अभिपुष्ट किया कि इस मामले में मृत्युदंड सांविधानिक है किंतु मृत्युदंड में कमी लाने और इसको बढ़ाने वाली दोनों परिस्थितियों पर विचार करने के बाद इसे "विरले मामलों में से विरलतम" माना जाना चाहिये।
मृत्युदंड की गुरुतकारी और शमनकारी परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
- मृत्युदंड: गुरुतकारी (दंड बढ़ाने वाली) और शमनकारी (घटाने वाली) परिस्थितियां वे कारक हैं जिन पर न्यायालय, विशेष रूप से मृत्युदंड के मामले में, दंड की गंभीरता तय करते समय विचार करते हैं,।
- गुरुतकारी परिस्थितियों की दशा में न्यायालय मृत्युदंड दिये जाने की ओर अग्रसर होता है, जबकि शमनकारी परिस्थितियों की दशा में न्यायालय द्वारा मृत्युदंड दिये जाने की संभावना कम होती जाती है।
- मार्गदर्शक कारक: सर्वोच्च न्यायालय ने मृत्युदंड किस दशा में लागू किया जाना चाहिये, यह निर्धारित करने के लिये विशिष्ट गुरुतकारी और शमनकारी परिस्थितियाँ प्रदान नहीं कीं, बल्कि मार्गदर्शक कारकों की एक अपूर्ण सूची प्रदान की।
- गुरुतकारी परिस्थितियाँ:
- यदि हत्या पूर्व नियोजित, सुनियोजित और अत्यधिक क्रूरतापूर्ण हो।
- यदि हत्या में “असाधारण दुराचारिता” शामिल है
- यदि अभियुक्त, ड्यूटी पर रहते हुए या वैध कर्तव्यों का पालन करते हुए किसी लोक सेवक, पुलिस अधिकारी या सशस्त्र बल के कर्मी की हत्या का दोषी है।
- शमनकारी परिस्थितियाँ:
- क्या अपराध के समय अभियुक्त अत्यधिक मानसिक या संवेगात्मक विक्षोभ का अनुभव कर रहा था।
- अभियुक्तों की आयु; यदि उनकी आयु अत्यंत कम अथवा बहुत अधिक है तो उन्हें मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा।
- अभियुक्त द्वारा समाज के लिये निरंतर खतरा उत्पन्न किये जाने की संभावना।
- अभियुक्त के सुधार की संभावना।
- यदि अभियुक्त किसी अन्य व्यक्ति के निर्देश पर कार्य कर रहा था।
- यदि अभियुक्त को विश्वास हो कि उनके कार्य नैतिक रूप से उचित थे।
- यदि अभियुक्त मानसिक रूप से पीड़ित है और अपने कृत्य की आपराधिकता को समझने में असमर्थ है।
- गुरुतकारी परिस्थितियाँ:
बच्चन सिंह मामले के बाद किस प्रकार से उग्र और शमनकारी परिस्थितियाँ उत्पन्न हुईं?
- अभियुक्त की आयु: रामनरेश बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामला, 2012 तथा रमेश बनाम राजस्थान राज्य मामला, 2011 जैसे मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय ने अभियुक्त की आयु (30 वर्ष से कम) को एक मज़बूत निवारक कारक माना, तथा उनमें सुधार की संभावना पर विश्वास किया।
- शंकर किसनराव खाड़े बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले, 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय ने उन मामलों में अंतर करके सजा की व्यक्तिपरक प्रकृति पर प्रकाश डाला जहाँ आयु एक कम करने वाला कारक था।
- वर्ष 2015 में जारी 262वें विधि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अपराध को कम करने वाले कारक के रूप में आयु का प्रयोग बहुत असंगत रूप से किया गया है।
- शंकर किसनराव खाड़े बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले, 2013 में, सर्वोच्च न्यायालय ने उन मामलों में अंतर करके सजा की व्यक्तिपरक प्रकृति पर प्रकाश डाला जहाँ आयु एक कम करने वाला कारक था।
- अपराध की प्रकृति: उच्चतम न्यायालय ने मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले, 1983 में निर्णय दिया था कि मृत्युदंड तब दिया जा सकता है जब समाज की"सामूहिक अंतरात्मा (Collective Conscience)" इतनी क्षुब्ध हो कि न्यायपालिका से इसे लागू करने की अपेक्षा की जाती है।
- इसने अपराधी की परिस्थितियों और सुधार की संभावना की तुलना में अपराध की प्रकृति पर अधिक ज़ोर देने की ओर बदलाव को चिह्नित किया।
- सुधार की संभावना: संतोष बरियार बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले, 2009 में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायालय को स्पष्ट साक्ष्य प्रस्तुत करना होगा कि दोषी सुधार या पुनर्वास के लिये अयोग्य क्यों है।
- 262वीं विधि आयोग की रिपोर्ट, 2015 में बरियार मामले में साक्ष्य की आवश्यकता को सजा सुनाने में निष्पक्षता के लिये "आवश्यक" बताया गया है।
- मुकदमे का चरण: बच्चन सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि अदालतों को दोषसिद्धि के बाद एक अलग मुकदमा चलाना चाहिये ताकि इस बात पर “वास्तविक, प्रभावी और सार्थक सुनवाई” हो सके कि मृत्युदंड क्यों नहीं दिया जाना चाहिये।
- दत्तात्रेय बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले, 2020 में, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि उचित सुनवाई का अभाव मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का एक वैध कारण था।
मृत्युदंड क्या है?
- मृत्युदंड: मृत्युदंड (Capital punishment), भारतीय न्यायिक प्रणाली में सजा का सबसे कठोर रूप है क्योंकि इसमें अन्य प्रकार की सजाओं की तरह निष्पादन के बाद परिवर्तन नही किया जा सकता है।
- इसमें राज्य द्वारा किसी व्यक्ति को गंभीर अपराधों के लिये दंड स्वरूप मृत्युदंड दिया जाता है।
- कानूनी ढाँचा: भारत में मृत्युदंड भारतीय न्याय संहिता, 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और अन्य विशेष कानूनों के प्रावधानों द्वारा शासित होता है।
- BNS बलात्संग से मृत्यु (धारा 66), नाबालिगों के साथ सामूहिक बलात्संग (धारा 70(2)), बार बार बलात्संग (धारा 71) और अन्य अपराधों के लिये मृत्युदंड का प्रावधान करता है।
- मृत्यु दंड योग्य अपराधों में हत्या (धारा 302), आतंकवाद ( UAPA, 1967 ) और NDPS अधिनियम, 1985 के तहत कुछ मादक पदार्थों की तस्करी के अपराध शामिल हैं।
मृत्युदंड से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के कौन से फैसले हैं?
- जगमोहन सिंह मामला, 1972: सर्वोच्च न्यायालय ने मृत्युदंड की संवैधानिकता को बरकरार रखा तथा निर्णय दिया कि यदि उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए तथा संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन न किया जाए तो मृत्युदंड दिया जा सकता है।
- शत्रुघ्न चौहान मामला, 2014: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि मृत्युदंड के निष्पादन में अधिक विलंब, सजा को आजीवन कारावास में बदलने का एक वैध आधार हो सकता है।
- मनोज बनाम महाराष्ट्र राज्य मामला, 2022: सर्वोच्च न्यायालय ने दोषी की परिस्थितियों की गहन जाँच का आदेश दिया और सज़ा सुनाने के लिये संतुलित दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला।
- मृत्युदंड पर स्वप्रेरणा रिट, 2022: स्वप्रेरणा रिट में सर्वोच्च न्यायालय ने दोषी की मृत्युदंड के खिलाफ बहस करने हेतु "सार्थक अवसर" देने के मुद्दे को निष्पक्ष सुनवाई के क्रम में पाँच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष भेजा।
मृत्युदंड पर विधि आयोग का क्या दृष्टिकोण है?
- 35वीं रिपोर्ट, 1967: वर्ष 1967 में विधि आयोग की 35वीं रिपोर्ट में मृत्युदंड का समर्थन किया गया।
- 187वीं रिपोर्ट, 2003: वर्ष 2003 में विधि आयोग की 187वीं रिपोर्ट में सज़ा सुनाने में प्रक्रियागत खामियों को स्वीकार किया गया, हालांकि इसमें इसे समाप्त करने की वकालत नहीं की गई।
- 262वीं रिपोर्ट, 2015: वर्ष 2015 में विधि आयोग की 262वीं रिपोर्ट में आतंकवाद और संबंधित अपराधों को छोड़कर सभी अपराधों के लिये मृत्युदंड को समाप्त करने का आह्वान किया गया था।
विश्व भर में मृत्युदंड की स्थिति
- वर्ष 2022 के अनुसार 55 देशों में मृत्युदंड का प्रावधान है जिनमें से 9 देशों ने इसे सबसे गंभीर अपराधों जैसे हत्याओं या युद्ध अपराधों के संदर्भ में लागू करने का प्रावधान किया है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान ही ऐसे उन्नत औद्योगिक लोकतंत्र हैं जहाँ अभी भी मृत्युदंड का प्रचलन है।
- वर्ष 2022 तक 112 देशों ने मृत्युदंड को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है जबकि वर्ष 1991 में यह संख्या 48 थी।
- वर्ष 2022 में कज़ाखस्तान, पापुआ न्यू गिनी, सिएरा लियोन और मध्य अफ्रीकी गणराज्य ने मृत्युदंड को समाप्त कर दिया जबकि इक्वेटोरियल गिनी और जाम्बिया ने इसे सबसे गंभीर अपराधों तक सीमित कर दिया।
- इस तरह के मामलों में 91% हिस्सेदारी पाँच देशों (चीन, ईरान, पाकिस्तान, सूडान और संयुक्त राज्य अमेरिका) की रही।
निष्कर्ष
मृत्युदंड पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले अपराधों की गंभीरता तथा सुधार की संभावना दोनों को शामिल करने के लिये विकसित हुए हैं जिसमें सज़ा में निष्पक्षता पर प्रमुख ध्यान दिया गया है। न्यायालय ने दोनों कारकों पर विचार करते हुए एक संतुलित दृष्टिकोण पर बल दिया है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में मृत्युदंड पर सर्वोच्च न्यायालय के दृष्टिकोण के विकास का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: मृत्यु दंडादेशों के लघूकरण में राष्ट्रपति के विलंब के उदाहरण न्याय प्रत्याख्यान (डिनायल) के रूप में लोक वाद-विवाद के अधीन आए हैं। क्या राष्ट्रपति द्वारा ऐसी याचिकाओं को स्वीकार करने/अस्वीकार करने के लिये एक समय सीमा का विशेष रूप से उल्लेख किया जाना चाहिये? विश्लेषण कीजिये। (2014) |