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सामाजिक न्याय

IPC की धारा 498A और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 का दुरुपयोग

  • 07 Oct 2024
  • 16 min read

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

सुप्रीम कोर्ट, धारा 498A भारतीय दंड संहिता, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस) की धारा 84, संज्ञेय और गैर-जमानती,

मुख्य परीक्षा के लिये:

घरेलू कानूनों का दुरुपयोग और संबंधित मुद्दे, लैंगिक न्यायपूर्ण कानून की आवश्यकता।

स्रोत: इकोनाॅमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (अब भारतीय न्याय संहिता) और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, सबसे अधिक दुरुपयोग किये जाने वाले कानूनों में शामिल हैं। 

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A क्या है?

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 498A विवाहित महिलाओं को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता का शिकार होने से बचाने के लिये वर्ष 1983 में पेश की गई थी। 
  • दंड:
    • अपराधी को तीन साल तक का कारावास हो सकता है और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। 
  • क्रूरता की परिभाषा:
    • जानबूझकर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिससे किसी स्त्री को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित करने के साथ उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य की (जो चाहे मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा होने की संभावना हो। 
  • शिकायत दर्ज करना:
    • इसके तहत शिकायत अपराध से पीड़ित महिला या उसके रक्त, विवाह या दत्तक ग्रहण संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा दर्ज की जा सकती है और यदि ऐसा कोई रिश्तेदार नहीं है, तो राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित कोई लोक सेवक शिकायत दर्ज करा सकता है। 
  • समय सीमा: कथित घटना के तीन वर्ष के अंदर शिकायत दर्ज की जानी चाहिये।
  • संज्ञेय और गैर ज़मानती: यह अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती है, जिसका अर्थ है कि इसमें अभियुक्त की तत्काल हिरासत संभव है।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 क्या है?

  • उद्देश्य: 
    • घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 घरेलू हिंसा के विरुद्ध महिलाओं की सुरक्षा के संबंध में एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करने के लिये लागू किया गया था, जिसमें पारिवारिक परिस्थितियों में शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों की हिंसा को शामिल किया गया था।
  • घरेलू हिंसा की परिभाषा: 
    • इस अधिनियम में घरेलू हिंसा को व्यापक रूप से परिभाषित करते हुए इसमें शारीरिक, भावनात्मक, यौन, मौखिक और आर्थिक दुर्व्यवहार को शामिल किया गया है। 
    • इसमें किसी महिला के स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान या चोट या ऐसी धमकी को शामिल किया गया है जिसमें जबरदस्ती, उत्पीड़न और संसाधनों या अधिकारों से वंचित करना शामिल है।
  • दायरा और कवरेज: 
    • इसमें घरेलू संबंधों में शामिल सभी महिलाएँ शामिल हैं जिनमें पत्नियाँ, माताएँ, बहनें, बेटियाँ और लिव-इन पार्टनर शामिल हैं। 
    • यह महिलाओं को उनके पति, पुरुष साथी, रिश्तेदारों या घर के अन्य सदस्यों द्वारा की जाने वाली हिंसा से बचाता है।
  • निवास का अधिकार: 
    • यह अधिनियम महिलाओं को संपत्ति पर उनके कानूनी स्वामित्व या हक से परे साझा घर में रहने का अधिकार प्रदान करता है।
  • संरक्षण आदेश:
    • घरेलू हिंसा के पीड़ित न्यायालय जा सकते हैं, जिससे दुर्व्यवहार या हिंसा को रोकने के साथ पीड़ित के कार्यस्थल या निवास में प्रवेश करने या पीड़ित के साथ किसी भी प्रकार का संचार या संपर्क करने से रोकने संबंधी मुद्दों का समाधान होता है।
  • मौद्रिक राहत और मुआवजा: 
    • इस अधिनियम के तहत महिलाओं को घरेलू हिंसा के कारण होने वाली क्षति (जिसमें चिकित्सा व्यय, आय की हानि या अन्य कोई वित्तीय हानि शामिल है) के लिये वित्तीय मुआवज़ा मांगने का अधिकार दिया गया है। न्यायालय पीड़ित को भरण-पोषण के भुगतान का निर्देश भी दे सकते हैं।
  • परामर्श और सहायता सेवाएँ: 
    • इस अधिनियम के तहत सुरक्षा चाहने वाली महिलाओं के लिये विधिक सहायता, परामर्श, चिकित्सा सुविधाएँ और आश्रय गृह (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण जैसी योजनाओं के तहत) सहित सहायक सेवाओं के प्रावधान को अनिवार्य बनाया गया है।
  • त्वरित न्यायिक प्रक्रिया: 
    • इस अधिनियम के तहत घरेलू हिंसा के मामलों के समाधान के लिये समयबद्ध प्रक्रिया सुनिश्चित की गई है। 
    • मजिस्ट्रेटों को 60 दिनों के अंदर शिकायतों का निपटारा करना आवश्यक है ताकि पीड़ितों को समय पर राहत मिल सके।
  • गैर-सरकारी संगठनों (NGO) की भूमिका: 
    • नागरिक समाज की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए यह अधिनियम गैर सरकारी संगठनों और महिला संगठनों को शिकायत दर्ज करने तथा पीड़ितों को सुरक्षा और सहायता प्रदान करने में सहायता करने की अनुमति देता है।

घरेलू हिंसा में योगदान देने वाले कारक क्या हैं?

  • पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना: पितृसत्तात्मक मानदंड गहरी जड़ें जमाए हुए हैं, जो लैंगिक असमानता को बनाए रखते हैं, पुरुषों के वर्चस्व और महिलाओं पर नियंत्रण को सुदृढ़ करते हैं। इससे घरों में अधिकार जताने के साधन के रूप में हिंसा सामान्य बन गई है।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड: विभिन्न समाजों में घरेलू हिंसा को मौन स्वीकृति दी जाती है या अनदेखा कर दिया जाता है, विशेषकर जब यह निज़ी स्थानों पर घटित होती है। 
    • सांस्कृतिक मान्यताएँ अक्सर महिलाओं को अपनी बात कहने या सहायता मांगने से हतोत्साहित करती हैं, जिससे दुर्व्यवहार का चक्र मज़बूत होता है।
  • आर्थिक निर्भरता: परिवार के पुरुष सदस्यों पर आर्थिक निर्भरता अक्सर महिलाओं को घरेलू हिंसा सहने के लिये मज़बूर करती है। आर्थिक स्वायत्तता की कमी उनके अपमानजनक संबंधों को छोड़ने या कानूनी सहायता लेने की क्षमता को सीमित करती है।
  • मादक द्रव्यों का सेवन: शराब और मादक औषधियों का सेवन घरेलू हिंसा में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। 
    • नशे में धुत्त व्यक्ति आक्रामक व्यवहार कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप परिवारों में शारीरिक या भावनात्मक दुर्व्यवहार हो सकता है।
  • शिक्षा और जागरूकता का अभाव: विधिक अधिकारों और सहायता तंत्र के संबंध में सीमित शिक्षा और जागरूकता घरेलू हिंसा को बढ़ावा देती है। 
  • मनोवैज्ञानिक कारक: क्रोध प्रबंधन की समस्याएँ, आत्मसम्मान की क्षति या अनसुलझे आघात जैसे मुद्दे व्यक्तियों को अपने परिवार के सदस्यों के विरुद्ध हिंसक व्यवहार करने के लिये प्रेरित कर सकते हैं। दुर्व्यवहार करने वाले लोग नियंत्रण और अधिकार की विकृत धारणाओं के माध्यम से भी अपने कार्यों को उचित ठहरा सकते हैं।
  • दहेज और वैवाहिक विवाद: दहेज संबंधी हिंसा घरेलू हिंसा का एक महत्त्वपूर्ण कारक बनी हुई है। दहेज की मांग या विवाह से असंतुष्टि के कारण होने वाले विवाद अक्सर महिलाओं के विरुद्ध भावनात्मक या शारीरिक हिंसा का कारण बनते हैं।
  • हिंसा का अंतर-पीढ़ी संचरण: जो बच्चे अपने घरों में घरेलू हिंसा देखते हैं, उनके वयस्क होने पर अपने संबंधियों में भी दुर्व्यवहारपूर्ण व्यवहार दोहराने की अधिक संभावना होती है, जिससे पीढ़ियों तक हिंसा का चक्र चलता रहता है।
  • कमज़ोर कानून प्रवर्तन और न्यायिक विलंब: अप्रभावी कानून प्रवर्तन, विलंबित न्याय, तथा अपराधियों के लिये कठोर दंड का अभाव घरेलू हिंसा की पुनरावृत्ति में योगदान देता है। 
    • पीड़ितों को प्रतिशोध के भय या व्यवस्था में अविश्वास के कारण विधिक संरक्षण हासिल करने में हतोत्साहित महसूस हो सकता है।

इन कानूनी उपायों का दुरुपयोग कैसे किया जाता है?

  • व्यक्तिगत लाभ हेतु झूठे आरोप: घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 और धारा 498a का कभी-कभी पति और उनके परिवारों को परेशान करने के लिये झूठी शिकायतें दर्ज करके दुरुपयोग किया जाता है। 
  • इन प्रावधानों का उपयोग व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिये या वैवाहिक विवादों में लाभ उठाने के लिये किया जाता है, जिसमें संपत्ति के निपटान, रखरखाव के दावे या हिरासत के प्रति लड़ाई शामिल हैं।
  • वित्तीय समझौते के लिये दबाव: विभिन्न मामलों में, झूठे मामलों का इस्तेमाल पतियों और उनके संबंधियों को बड़े वित्तीय समझौते करने या गुज़ारा भत्ता देने के लिये मज़बूर करने के लिये किया जाता है। 
  • गिरफ्तारी या लम्बी कानूनी लड़ाई के भय से प्रायः आरोपी अनुचित मांगों को मानने के लिये मज़बूर हो जाता है।
  • तत्काल गिरफ्तारी और प्रारंभिक जाँच का अभाव: धारा 498a एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है, जिसके कारण पूर्व जाँच की आवश्यकता के बिना तत्काल गिरफ्तारी की संभावना रहती है। 
  • इस प्रावधान का दुरुपयोग अभियुक्त पर दबाव बनाने के लिये किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप अनुचित तरीके से हिरासत में लिया गया या दोष सिद्ध होने से पहले ही उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा है।
  • अभियुक्त को सामाजिक और मनोवैज्ञानिक क्षति: घरेलू हिंसा के आरोपों से संबंधित कलंक अभियुक्त की सामाजिक प्रतिष्ठा, मानसिक स्वास्थ्य और पेशेवर जीवन को अपूरणीय क्षति पहुँचा सकता है। 
  • यदि आरोपी को बरी भी कर दिया जाता है, तो भी आरोपों से संबंधित नकारात्मक धारणा के कारण उसे दीर्घकालिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
  • दुरुपयोग पर न्यायिक टिप्पणियाँ: विभिन्न निर्णयों में न्यायालयों ने धारा 498a और घरेलू हिंसा अधिनियम के दुरुपयोग को स्वीकार किया है। 
  • इसकी प्रतिक्रिया में न्यायपालिका ने सुधारों की मांग की है, जिसमें गिरफ्तारी से पहले उचित जाँच की आवश्यकता तथा तुच्छ या दुर्भावनापूर्ण मामले दर्ज करने पर दंड की बात शामिल है।

आगे की राह

  • विधि के अंतर्गत जमानती और गैर-संज्ञेय अपराधों के बीच स्पष्ट अंतर स्थापित करने की आवश्यकता है। किसी भी गिरफ्तारी से पहले गहन जाँच की जानी चाहिये।
  • महिलाओं को हुए नुकसान की सीमा को ध्यान में रखते हुए, परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार करते समय आनुपातिकता के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिये।
  • मिथ्या और भ्रामक शिकायतों के लिये व्यक्तियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये।
  • भारत को लैंगिक-न्यायपूर्ण कानून लागू करना चाहिये (जिसमें पुरुषों के विरुद्ध घरेलू हिंसा को भी मान्यता दी जाए) जो समानता को बढ़ावा देते हों तथा लैंगिक परवाह किये बिना प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करना।
  • भेदभाव, हिंसा और आर्थिक असमानताओं से निपटने के लिये विधिक ढाँचे की स्थापना एक समावेशी समाज के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: लैंगिक समानता प्राप्त करने के संदर्भ में लैंगिक तटस्थ कानूनों को लागू करने से संबंधित संभावित लाभों और चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मुख्य परीक्षा

प्रश्न. हमें देश में महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के बढ़ते हुए दृष्टांत दिखाई दे रहे हैं। इस कुकृत्य के विरुद्ध विद्यमान विधिक उपबन्धों के होते हुए भी, ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस संकट से निपटने के लिये कुछ नवाचारी उपाय सुझाइये। (2014)

प्रश्न. 'भारत में महिलाओं के आंदोलन ने निम्नतर सामाजिक स्तर की महिलाओं के मुद्दों को संबोधित नहीं किया है।' अपने विचार को प्रमाणित सिद्ध कीजिये। (2018)

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